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इस प्यार को क्या नाम दूं?

नवंबर 2022 को दिल्ली के महरौली  में आफताब अमीन पूनावाला ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वाकर की कथित रूप...
इस प्यार को क्या नाम दूं?

नवंबर 2022 को दिल्ली के महरौली  में आफताब अमीन पूनावाला ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वाकर की कथित रूप से हत्या कर दी। शव के 35 टुकड़े किए और उन्हें फ्रिज में रखने के बाद दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में  फेंक दिया। 

- फरवरी, 2023 में दिल्ली के साहिल गहलोत ने अपनी लिव-इन पार्टनर निक्की यादव की हत्या करके शव को एक फ्रिज में रख दिया। 

- 20 फरवरी, 2023 को खबर आई कि असम की एक महिला ने अपने पति और सास की हत्या करके शवों के टुकड़ों को मेघालय में फेंका। महिला ने इस हत्याकांड को बीते साल सितंबर में अंजाम दिया था।

रिलेशनशिप में जान लेने के ये मामले नए नहीं हैं, बल्कि इतिहास भी ऐसी घटनाओं का साक्षी रहा है। पिछले साल नवंबर में यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने अंतरराष्ट्रीय दिवस 'महिलाओं के खिलाफ हिंसा का उन्मूलन' के अवसर पर टिप्पणी की थी कि हर 11 मिनट में एक महिला या लड़की को एक अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य द्वारा मार दिया जाता है।’ ज्यादातर मामलों में कोई पुरुष ही अपराधी होता है तो इक्का-दुक्का महिलाएं अपराधी होती हैं। अब सवाल ये है कि ऐसा क्यों है?

किसी पुरुष द्वारा प्रेम में हत्या जैसे मामलों की तह तक जाते हुए सोशल वर्कर और मेंटर सतीश कुमार सिंह कहते हैं कि प्यार में ‘न’ मिली तो लड़की की हत्या, लड़के का लड़की से मन भर गया तो लड़के ने उसकी हत्या कर दी, किसी लड़की ने अपनी मर्जी का जीवन साथी चुन लिया तो किसी ‘मुखिया’ ने उसकी हत्या कर दी, कहीं जला देते हैं तो कहीं तेजाब डाल देते हैं। समाज को ये सोचना होगा कि ज्यादातर मामलों में हत्यारा कोई पुरुष ही क्यों बनता जा रहा है? 

अपनी जीत के लिए महिला को सबक सिखाते पुरुष

सतीश कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘पुरुष की पढ़ाई और परवरिश उसे कमाना, बीवी पर नियंत्रण, आक्रामक होना, सुरक्षा करना, लीडर बनना और जीतना सिखाती है। जब पुरुष को हार मिलती है तो वह उसे मैनेज नहीं कर पाता। हार अगर किसी महिला से मिले तो वह उसे पचा नहीं पाता, क्योंकि महिला पर नियंत्रण तो जैसे उसका अधिकार है।

महिला से मिली हार उसे अपनी मर्दानगी पर प्रहार लगती है। पुरुष को न सुनना नहीं सिखाया गया। अपनी जीत स्थापित करने के लिए वे महिला को सबक सिखाते हैं। जब पुरुष सबक सिखाता है तो दूसरे पुरुष उसका विरोध नहीं करते। इससे पुरुष प्रधान सोच रखने वालों को समर्थन मिलता है और समस्या जस की तस बनी रहती है।

नकारात्मक मर्दानगी कहीं अपराधी तो नहीं बना रही!

सबक सिखाना पुरुष जाति की भलाई में काम करता है। ऐसा करके वो केवल अपनी नहीं बल्कि समस्त पुरुष जाति की नाक बचाता है। जीत का ये मामला सीधे मर्दानगी से जुड़ा है। यही नकारात्मक मर्दानगी कहीं न कहीं पुरुष को अपराधी बना देती है। 

श्रद्धा और निक्की जैसे लिव-इन रिलेशनशिप में यह समझने वाली बात है कि पुरुषों ने लिव-इन में रहना तो सीख लिया है, लेकिन महिलाओं पर नियंत्रण करने की प्रवृत्ति बदली नहीं है। महिलाएं चाहें लिव-इन में रहें या शादी में, हिंसा महिलाएं ही सहती हैं। 

आज की पढ़ी-लिखी और सशक्त महिला के साथ पुरुष को कैसे व्यवहार करना है, यह नहीं सिखाया जाता। लिव-इन में रहने भर से पुरुष की सोच नहीं बदलती बल्कि वह भीतर से वही धौंसपूर्ण मर्दानगी दिखाने वाला पुरुष होता है। आफताब पूनावाला और साहिल गहलोत ने जिस तरह की आक्रामक मर्दानगी का शिकार होकर अपनी प्रेमिकाओं की हत्या की, ऐसे केस पहले भी देखने को मिले हैं।’

वे हत्याएं जिन्होंने दिल दहला दिया था….

दिल्ली में साल 1995 में सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की अवैध संबंधों के शक में हत्या करके उसकी लाश को तंदूर में जला दिया था। उस मामले को ‘तंदूर कांड’ के नाम से भी जानते हैं। सुशील शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन फिर साल 2018 में जेल से उसे रिहा कर दिया गया था।

तमिलनाडु के रहने वाले एम. जयशंकर पर 30 से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार और 15 हत्याओं का आरोप था। अपने शिकार का रेप करने के बाद उसकी हत्या कर देता था। साल 2018 में उसने जेल में सुसाइड कर ली थी। उस पर  'साइको शंकर' नाम की फिल्म भी बनी थी। कई साल जेल में गुजारने के बाद जयशंकर ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी।

नोएडा का सुरेंद्र कोली भी लड़कियों से रेप कर उनका मर्डर कर देता था। वह लड़कियों को मारने के बाद उसके मांस के टुकड़े पकाकार खाता था। सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाई गई।

साल 2010 में देहरादून के राजेश गुलाटी ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की हत्या करके उसके शव के 72 टुकड़े किए और डीप फ्रीज में रख दिए। शव के टुकड़ों को रोजाना मसूरी की पहाड़ियों में फेंकता था। राजेश को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

लड़कियों के हत्यारे के मन में चलता क्या है?

भोपाल के बंसल अस्पताल में वरिष्ठ साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि ऐसे लोगों के मन में ऑब्जेक्ट रिलेशनशिप रहती है। उनके मन में दया, करुणा, प्रेम, सहिष्णुता… ऐसे किसी भी प्रकार के भाव नहीं होते। ऐसे लोग जो इनकी बात नहीं मानते उन्हें नुकसान पहुंचाने में ‘प्लेजर’ महसूस करते हैं, जिसे सैडिस्टिक प्लेजर कहा जाता है।

ऐसे प्रेमियों की पहचान होती है कि ये अचानक बहुत प्रेम दिखाते हैं। ‘लव बॉम्बर’ बन जाते हैं। एक समय में प्रेम की बरसात कर देते हैं। बहुत सारे पैसे लुटाना, बहुत बड़े-बड़े सपने दिखाना, प्यार में जीने-मरने की कसमें खाना…ये सभी लुभावने वादे एपिसोड्स में होते हैं। कभी प्यार दिखता है और कभी टॉर्चर। ऐसे प्रेमियों में सुधार की गुंजाइश बहुत कम होती है। रिलेशनशिप के ‘रेड फ्लैग’ को पहचानें और उससे बचें।

रिश्ते के ‘रेड फ्लैग’ को कैसे पहचानें?

रिलेशनशिप में ‘रेड फ्लैग’ पहचानने से पहले जरूर है खुद को समझना। हम रिलेशनशिप से सम्मान, समझदारी, कृतज्ञता या लाड़-दुलार क्या चाहते हैं, ये समझना जरूरी है। इन सब से इतर अगर आप रिश्ते में निरादर, झूठ,  पीछा छुड़ाना, सबकुछ किसी एक के हिसाब से तय होना, हेल्दी कम्यनिकेशन की कमी, उपलब्धियों पर सराहना न मिलना जैसे लक्षण देखते हैं तो थोड़ा संभलने की जरूरत है।

अव्वल कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनसे बाहर निकलना मुश्किल होता है। दोनों व्यक्ति साथ रहना चाहते हैं, लेकिन कुछ कमियां अच्छाइयों पर भारी पड़ जाती हैं। ऐसे में रिलेशनशिप एक्सपर्ट और ओन्टोलॉजिस्ट आशमीन मुंजाल कहती हैं कि ऐसी परिस्थितियों में जरूरी है कि हम अपने पार्टनर की उन बातों पर कृतज्ञता महसूस करें जिनसे हमें खुशी मिलती है। उसकी छोटी-छोटी बातों पर खुश हों। हम रिश्ते में ढूंढ़ क्या रहे हैं, अगर उसका छोटा सा भी हिस्सा उस रिलेशनशिप में दिखता है तो उसके प्रति कृतज्ञ हों। आप जितना कृतज्ञ होंगे उतना रिश्ते को मजबूत बनाएंगे। दूसरा, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि परफैक्ट कोई नहीं होता लेकिन किसी दूसरे को समझाने से बेहतर हम खुद को समझें और सही फैसला लें। 

भविष्य में आपका बच्चा कैसा पार्टनर बनेगा?

दिल्ली में क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट डॉ. प्रज्ञा मलिक बताती हैं कि बच्चा बड़ा होकर कैसा पार्टनर बनेगा, इसकी नींव बचपन से पड़ जाती है। यहां कुछ बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है:

बच्चे अनुकरण से सीखते हैं। घर में जैसे रिश्ते माता-पिता के होंगे, बड़े होने पर वह भी वैसे ही पार्टनर बनेंगे जैसा वे अपने पेरेंट्स को देखते आए हैं।

अगर बच्चों को हम बोलने की आजादी दें तो वे मन की बात खुलकर कह पाएंगे। खुलकर बात कहने पर अपनी प्राथमिकताएं तय कर पाएंगे। बच्चे खुद को दूसरे के सामने कैसे प्रेजेंट करें, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को हर परिस्थिति में ‘चुनने की आजादी’ होनी चाहिए। माता-पिता उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास करें। 

बच्चों में सुनने की आदत का विकास करना। अगर बच्चे किसी की बात को ठीक से सुनेंगे तो समझ भी पाएंगे और भविष्य में बेहतर इंसान बनेंगे। बच्चा जिस भी तरह का बिहेवियर तय करता है, उसके पीछे के क्यों को सोचे। इसी को दूर दृष्टि व्यवहार कहते हैं।

जाते-जाते…

सभी रिश्तों की नींव परवरिश है। परिवार में जिस तरह से बेटियों को पाला जाता है उसी तरह से बेटों को भी पाला जाए। बेटों को हमें क्रूर नहीं बल्कि सौम्य, शांत और संतुलित बनाना है, ताकि वे बड़े होकर किसी पर नियंत्रण न करें बल्कि जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलें।   

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