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पाक में दिखा करप्शन पर असली 'ज़ीरो टॉलरेंस', भारत में तो मजे में हैं पनामा वाले

शुक्रवार को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को पनामा पेपर लीक मामले में दोषी पाया। नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ गया। उसी दिन भारत में एक और राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा था। बिहार के मुख्यमंत्री,जिन पर एक मर्डर और आर्म्स एक्ट होने का आरोप लगा है, वे विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर रहे थे।
पाक में दिखा करप्शन पर असली 'ज़ीरो टॉलरेंस', भारत में तो मजे में हैं पनामा वाले

इन दोनों बातों का आपस में क्या ताल्लुक है?

ताल्लुक है। पाकिस्तान को राजनैतिक तौर पर बेहद कमजोर माना जाता है। सेना का सरकार पर ज्यादा प्रभाव होता है। कहा जाता है कि अमेरिका के सामने पाकिस्तान नतमस्तक रहता है। उस पर आतंक को पालने पोसने के आरोप भी लगते रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामले में भी उसकी स्थिति अच्छी नहीं है।

ऐसे में भ्रष्टाचार के आरोप में वहां के प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ जाए, यह पाकिस्तान के लिए बने तमाम ''स्टीरियोटाइप'' को तोड़ता ही है। वहीं भारत के नेता हत्या, अपराध के तमाम आरोपों के बाद पद पर बने रहते हैं। लोगों पर दंगे भड़काने से लेकर, हवाला, आय से अधिक संपत्ति के मामले चल रहे हैं, फिर भी सत्ता की मलाई उनसे नहीं छूटती.

फिर दूसरी चीजों की बात ना भी करें तो जिस मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को गद्दी छोड़नी पड़ी है, उसी मामले में हमारे यहां तयशुदा चुप्पियां हैं। जैसे कि यह कोई मामला ही ना हो। पनामा पेपर लीक में आरोपी यहां के नेता, अभिनेता, पूंजीपति ना सिर्फ सरकारों के चहेते बने हुए हैं बल्कि
बेहद निश्चिंत भी रहते हैं।

इसी मामले में आरोपी देश के बड़े अभिनेता (नाम बताने की ज़रुरत है क्या?) सरकार की स्वच्छ भारत योजना से लेकर, जीएसटी तक का प्रचार कर रहे हैं। ना सिर्फ सरकारी योजनाएं बल्कि सुई से लेकर जहाज तक सब बेच रहे हैं।

पनामा पेपर्स

बता दें कि पनामा पेपर्स पनामा की कंपनी मोंसेक फोनसेका द्वारा इकट्ठा किया हुआ 1 करोड़ 15 लाख गुप्त फाइलों का भंडार है। इनमें कुल 2,14,000 कंपनियों से सम्बन्धित जानकारियां है। अगर आपके पास बहुत पैसा है तो यह कंपनी उसे विदेशों में मैनेज करती है। नकली कंपनियों खोलकर उनमें निवेश करवाती है और लोगों को टैक्स बचाने में मदद करती है।

मोंसेक फोनसेका कंपनी की स्थापना वर्ष 1977 में जुरगेन मोस्साक और रोमन फोन्सेका ने की थी। इसके 500 से अधिक कर्मचारी पूरे विश्व में 40 कार्यालयों में फैले हुए हैं। यह लगभग 3 लाख कंपनियों के लिए कार्य करती है और उसमें सबसे अधिक कंपनी ब्रिटेन में है या उसके आयकर के अंतर्गत आते हैं।

2016 में इससे जुड़े कागज लीक हो गए थे।

पनामा पेपर्स के नाम से लीक हुए दस्तावेजों को सामने लाने में मुख्य भूमिका अमेरिका स्थित एक एनजीओ खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय महासंघ (ICIJ) की है। आईसीआईजे ने दस्तावेजों की गहरी छानबीन की। आईसीआईजे को किसी अज्ञात सूत्र ने इन दस्‍तावेजों को उपलब्‍ध कराया था। जांच में नवाज शरीफ के अलावा कई फिल्मी और खेल जगत की हस्तियों समेत करीब 140 लोगों की संपत्ति का भी खुलासा हुआ था। भारत से भी कुछ लोगों के नामों का जिक्र पनामा पेपर्स में किया गया था।

जांच में जो डेटा सामने आया था वह 1977 से लेकर 2015 तक का था। जर्मनी के एक अखबार के मुताबिक, इस पेपर लीक से 2.6 टेराबाइट डेटा सामने आया है जो लगभग 600 डीवीडी में आ सकता है। शरीफ समेत अन्‍य लोगों ने टैक्स हैवन कंट्रीज में पैसा निवेश किया। इन लोगों ने शैडो कंपनियां, ट्रस्ट और कॉरपोरेशन बनाए और इनके जरिए टैक्स बचाया।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के जिन लोगों के नाम पनामा पेपर्स में आए थे, उनमें अमिताभ बच्चन,ऐश्वर्या राय बच्चन, इंडिया बुल्स के मालिक समीर गहलोत, डीएलएफ के केपी सिंह, गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी के नाम शामिल हैं।

ऐसे में यह सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है कि अपनी छवि के विपरीत पाकिस्तान में इतना बड़ा उलटफेर भ्रष्टाचार के आरोप पर हो सकता है तो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने का दंभ भरने वाले भारत में ऐसी क्या मजबूरियां हैं कि कथित भ्रष्टाचारियों को शह दी जाती है। इस तरह के सवाल कल से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। देखिए, ट्विटर पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही।

 
 
 
 
 
 
 
href="https://twitter.com/Chutkla">@Chutkla— Being Mahaan™❄(@manojpnd) https://twitter.com/manojpnd/status/891149222963159040">July 29, 2017
 

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