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संगीत में घरानों की अहमियत

परंपरागत शास्त्रीय संगीत-नृत्य में भूले-बिसरे ऊर्जस्वी और प्रतिभावान कलाकारों को कला रसिकों के...
संगीत में घरानों की अहमियत

परंपरागत शास्त्रीय संगीत-नृत्य में भूले-बिसरे ऊर्जस्वी और प्रतिभावान कलाकारों को कला रसिकों के समक्ष मंच पर प्रस्तुत करने में उल्लेखनीय कार्य संगीत की सम सोसायटी के अध्यक्ष पंडित विजय शंकर मिश्र ने किया है। वे खुद मंचीय कलाओं के गहरे जानकार हैं। सम के जरिए पूरे साल भर कला-संस्कृति की गतिविधियों और कार्यक्रम का सिलसिला चलता रहता है। हाल ही सम के कार्यक्रम की शृंखला घराना संगीतोत्सव में एक भव्य आयोजन हेबिटाट सेंटर के अमलतास सभागार में हुआ। इसमें अलग-अलग घरानों से जुडे गायक-गायिकाओं ने घराने की परंपरा पर आधारित गायन की प्रस्तुतियां दी।

संगीत मर्मज्ञ पंडित राकेश पाठक की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ बनारस घराने के पंडित राजन साजन मिश्र की शिष्या डॉ. जसमीत कौर के गायन से हुआ। उन्होंने राग पूरिया धनाश्रि में गाने की शुरुआत शुद्ध पारंपरिक चलन में सुंदरता से की। गुरु की खास गायन शैली के आधार पर राग को बरतने, बढ़त करने और खरज से लेकर तार सप्तक पर स्वरों को सुनयोजित ढंग से स्पर्श करने आदि में वे पूरी तरह परिपक्व दिखीं। विलंबित एकताल में निबद्ध बड़ा ख्याल में सदारंग की बंदिश को अपनी संतुलित और खनकती आवाज में उन्होंने रंजकता से गाकर पेश किया। द्रुत तीनताल पर छोटा खयाल की बंदिश ‘छन छन बाजे, पायलिया झंकार’ को सुर-संचार के कई आकारों में सरसता से प्रस्तुत किया। राग अलंकरण में सरगम, बहलावा, खटका, मुर्की, मींड, कई प्रकार की सपाट और गमकदार तानों की निकास आदि पर उनका अच्छा वर्चस्व था। राग बिहाग में रचना ‘अब सुध नही मोरी आए श्याम’ और ‘बंसी बजावत सबको रिझावत, मैं तो सुध खो बैठी हूं’ की प्रस्तुति भी भावुक और सरस थी। उनके गाने के साथ हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी और तबला पर अमन पाधरे ने मनमावन संगत की। 

कैराना घराने की प्रखर गायिका विदुषी मालविका भट्टाचार्य ने अपने प्रभावी गायन से श्रोताओं को आनंदित किया। उन्होंने राग मारु विहाग में विलंबित की बंदिश ‘रसिया न जाओ वाहु के देस’ को रस भाव से प्रस्तुत करने में विविध प्रकार से लय की गति में स्वरों को संचारित करने का उनका अनोखा अंदाज था। राग रागेश्री में भी गायन कर्णप्रिय था। उन्होंने उस्ताद अब्दुल करीम खां की रचित प्रचलित बंदिशों को भी कंठ स्वर में प्रस्तुत किया। उनके गायन के साथ तबला पर उदयशंकर मिश्र और हारमोनियम वादन में जाकिर धौलपुरी ने बेहतरीन संगत की। मशहूर बांसुरीवादक राजेंद्र प्रसन्न और सुश्री शोभना नारायण की उपस्थिति में दूसरे दिन की शाम संगीत नायक पंडित दरगाही मिश्र संगीत अकादमी के छात्र-छात्राओं अर्चना बरूआ, अमित कुमार, गार्गी योग आनंद, पल्लवी राज और श्यामला ने गुरु पं. दामोदर लाल घोष के निर्देशन में झपताल और एकताल में निबद्ध राग दुर्गा की दो स्तुतियों को भक्तिभाव में तन्मयता से प्रस्तुत किया।

रामपुर-सहसवान घराने की युवा गायिका ऋचा जैन ने द्रुत एकताल में इनायत हुसैन खां की रचना ‘तरपत दिन रैन’ को राग खमाज और उस्ताद मुस्ताक हुसैन खां की रचना ‘बोल बांट की बुमरी’ को राग जंगला और उस्ताद इनायत हुसैन खां रचित टप्पा को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। समारोह का समापन श्री रामनारायण के द्वारा राग बागेश्री अंग में चंन्द्रकौंस की बंदिश, राग जयजयवंती में बनारस घराने की बंदिश और आखिर में राजन मिश्र द्वारा द्रुत एकताल में रचित तराना को ओजपूर्ण ढंग से पेश किया। तबला पर सागर गुजराती ने भी अच्छी संगत की।

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