चौदह साल के लंबे इंतजार के बाद 2002 के गुजरात नरसंहार में जिंदा जलाए गए कांग्रेस के सासंद एहसान जाफरी की बेवा 76 वर्षीय जाकिया जाफरी को अभी भी पूरे न्याय का इंतजार है। जाकिया जाफरी इस फैसले से नाखुश है और इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी। लेकिन उनके साथ इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे लोगों को कम से कम यह संतोष है कि कुछ लोगों को सजा दिलाने में सफलता मिली।
आज गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड पर विशेष अदालत ने इस हत्याकांड को साजिश का हिस्सा नहीं माना और इस वजह से कानूनी लड़ाई लड़ रहे तबके में निराशा है। हालांकि गुजरात नरसंहार के कई मामलों में कानूनी लड़ाई लड़ने वाली तीस्ता सीतलवाड़ ने आउटलुक को बताया कि कम से कम गुजरात नरसंहार मामलों में लोगों को सजा हो रही है। लोग हिंसा फैलाने, मारने काटने के दोषी पाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज जिन 36 लोगों को छोड़ा है उनमें से 35 पहले से ही जमानत पर थे और इसमें बिपिन पाटिल भी शामिल है, जो भाजपा का नेता है । तीस्ता का कहना है कि गुजरात में जिस तरह से कानूनी लड़ाई इतनी प्रतिकूल स्थितियों में लड़ी गई उससे यह सबक मिलता है कि बिना सांगठिनक मदद के और बिना गवाहों को सरंक्षण दिए इंसाफ की लंबी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। उन्होंने बताया कि 15 मामले इस स्तर तक पहुंचे और आज के फैसले को मिला लें तो करीब 150 लोगों को सजा हो चुकी है।
अनहद से जुड़ी और गुजरात मामले में कानूनी लड़ाई से संबद्ध शबनम हाशमी ने बताया कि 14 साल के इंतजार के बाद कम से कम इतने लोगों को सजा हुई, यह बड़ी बात है। दुख इस बात का है कि अदालत ने साजिश वाले पहलू को नकार दिया। गुजरात में हुई नाइंसाफी के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर देश भर से जो मदद मिली और समर्थन आया, उसकी वजह से कम से कम इतने मामलों में आरोपियों को सजा हुई।