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दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के, कानपुर नंबर-1 और दिल्ली छठे स्थान पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से साल 2016 के लिए दुनिया के सबसे 15 प्रदूषित शहरों की सूची जारी की...
दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के, कानपुर नंबर-1 और दिल्ली छठे स्थान पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से साल 2016 के लिए दुनिया के सबसे 15 प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गई है, जिनमें भारत के 14 शहर शामिल हैं। इस सूची में कानपुर पहले नंबर पर है। जबकि सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में दिल्ली छठे नंबर पर है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, वायु प्रदूषण के मामले में भारत के 14 शहरों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश का कानपुर पहले स्थान पर है। कानपुर के बाद फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुड़गांव, जयपुर, पटियाला और जोधपुर शामिल हैं। जबकि पंद्रवें स्थान पर कुवैत का अली सुबह अल-सलेम शहर है।

रैंक शहर PM 2.5 लेवल
1 कानपुर 173
2 फरीदाबाद 172
3 वाराणसी 151
4 गया 149
5 पटना 144
6 दिल्ली 143
7 लखनऊ 138
8 आगरा 131
9 मुजफ्फरपुर 120
10 श्रीनगर 113
11 गुरुग्राम 113
12 जयपुर 105
13 पटियाला 101
14 जोधपुर 98
15 अली सुबेह अल-सलेम  94

गौरतलब है कि 2011 की रिपोर्ट में दिल्ली और आगरा प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शामिल थे और उलानबटार दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था। 2012 में हालात बदले। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में अकेले भारत के 14 शहर शामिल थे। 2013, 2014 और 2015 में भी दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के चार से सात शहर शामिल थे। लेकिन इस बार 2016 के डेटा में दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं।

बता दें कि दिल्ली में पीएम 2.5 ऐनुल ऐवरेज 143 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है जो नैशनल सेफ स्टैंडर्ड से तीन गुना ज्यादा है जबकि पीएम 10 ऐवरेज 292 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है जो नैशनल स्टैंडर्ड से 4.5 गुना ज्यादा है।

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'उज्जवला' योजना की विशेष चर्चा हुई है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिला को किफायती दर पर एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराया जाता है। रिपोर्ट में उज्जवला योजना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि हालांकि वायु प्रदूषण के ताजा आंकड़े खतरनाक हैं, लेकिन इसके बाद भी दुनिया के कुछ देशों में सकारात्मक प्रगति देखी जा रही है।

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