विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में है। जबकि अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक रैंकिंग रिपोर्ट में ग्रीनपीस ने बताया था कि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक वाले 17 शहरों में 15 शहरों का प्रदूषण स्तर भारतीय मानकों से कहीं ज्यादा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर के 32 स्टेशनों में 23 स्टेशन में राष्ट्रीय मानक से 70 प्रतिशत अधिक प्रदूषण स्तर दर्ज किया गया है, इससे स्पष्ट है कि आम लोगों का स्वास्थ्य खतरे में है। वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए एक मजबूत प्रणाली लायी जाए जो लोगों को उनके स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचने के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाने के बारे में जानकारी दे। इसके अलावा सरकार खराब वायु प्रदूषण वाले दिनों में रेड अलर्ट जारी करे और लंबी अवधि के लिये नीतिगत फैसले ले। उदाहरण के लिये चीन में, पीएम (परटिकुलेट मैटर) का स्तर 2005 से2011 के बीच 20 प्रतिशत बढ़ गया था। जीवाश्म ईँधन पर निर्भरता की वजह से चीन की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। हालांकि, 2013 में मजबूत नीतियों और व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना की वजह से चीन के पीएम (परटिकुलेट मैटर) का स्तर काफी घटा और 2014 की तुलना में 2015 में 15 प्रतिशत प्रदूषण स्तर में कमी आयी।
भारत का राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक नेटवर्क के पास 39 चालू निगरानी स्टेशन हैं जो चीन के 1500 स्टेशन की तुलना में लगभग नगण्य सा है। उपग्रह से ली गयी तस्वीरें बताती है कि 2005 तक भारत का प्रदूषण पूर्वी चीन की तुलना में काफी कम था। 2015 में, भारत में कण प्रदूषण चीन से भी ज्यादा हो गया और यह पिछले दशक से औसत 2 प्रतिशत ज्यादा हो गया। ग्रीनपीस के कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, “यह अतिआवश्यक है कि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिये समय-सीमा तय की जाये और लंबे अवधि के साथ-साथ तत्काल अंतरिम उपाय लागू किये जाएं। इस योजना में एक व्यवस्था विकसित की जाये जहां होने वाले सुधार की निगरानी हो सके तथा इन योजनाओं के सफल या विफल होने पर संबंधित प्राधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाये। यह वायु प्रदूषण संकट एक अवसर है जब भारत अपने स्वच्छ वायु राष्ट्र के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया देते हुए ठोस योजना बना सकता है।”
भारत-चीन प्रदूषण पर बात करते हुए ग्रीनपीस पूर्व एशिया के वायु प्रदषण विशेषज्ञ लॉरी मिलिविरटा ने कहा, “चीन एक उदाहरण है जहां सरकार द्वारा मजबूत नियम लागू करके लोगों के हित में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सका है। भारत सरकार को भी चीन में वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचने के लिए आवश्यक योजना बनाने की जरुरत है। यह देखते हुए कि प्रदूषण कण हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं, सरकार को राष्ट्रीय,क्षेत्रीय और शहर स्तर पर कार्ययोजना बनाने की जरुरत है और प्रदूषण को कम करने के लिये लक्ष्य तय करने की भी जरुरत है।” भारत में वायु प्रदूषण के संकट को कम करने के लिये एक एकीकृत और समयबद्ध कार्य योजना अपनाए जाने की जरूरत है। हाल ही में सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं जैसे कि ऑड-इवन नीति, कार फ्री डे और थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन पर कठोर मानक। इसके अलावा 2020 तक भारत वाहन उत्सर्जन 6 को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना में क्षेत्रीय और विभिन्न शहरों के स्तर पर अलग कार्ययोजना को भी शामिल किया जाना चाहिए।