अन्ना ने मंच से कहा कि केंद्र सरकार या तो अध्यादेश वापस ले या वर्ष 2013 वाले भूमि अधिग्रहण बिल में परिवर्तन करे। उनका कहना है कि वर्ष 2013 वाले बिल के अनुसार गांव की जमीन अधिग्रहित करने के लिए गांव के 70 फीसदी किसानों की सहमती जरुरी थी। जिसमें सिंचित भूमि अधिग्रहित नहीं की जा सकती थी। अधिग्रहित भूमि पर अगर पांच साल तक विकास कार्य न हो तो वह भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की भी व्यवस्था थी। लेकिन मौजूदा अध्यादेश में यह सब नहीं है। यही नहीं नई व्यवस्था के अनुसार किसान अगर भूमि संबंधी विवाद में अदालत जाना चाहे तो उसे पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। अन्ना ने कहा कि नौ महीने पहले सत्ता में आई सरकार ने इस अध्यादेश को किसान विरोधी बताया। अन्ना के अनुसार 70 फीसदी किसानों के सहमती को निकालना सबसे बडा धोखा है। इस आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों से प्रातिनिधि आए।
जन्तर-मन्तर पर फिर अन्ना आंदोलन
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन जारी है। देश भर से किसान संगठनों का आना जारी है। आज शाम चार बजे तक जंतर-मंतर पर अन्ना को सुनने वालों की तादाद करीब पांच हजार थी। इससे पहले लोकपाल बिल के लिए जब अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू किया था तो उस आंदोलन ने देश की में राजनीति भूचाल ला दिया था। उस समय न केवल आंदोलन की गूंज दूर तक गई थी बल्कि अन्ना टीम के कई सदस्यों को राजनीति में पैर रखने के लिए नया फलक भी मिला। आज वे सदस्य राजनीति ने नए हीरो हैं। शायद इस दफा आंदोलन का कोई राजनीतिक फायदा न उठा सके इसके लिए अन्ना ने किसी को भी मंच सांझा नहीं करने दिया। मंच सिर्फ अन्ना और उनका निजी कामकाज देख रहे दत्ता अवारी ही थे।
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