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सैन्य प्रमुख की न‌ियुक्त‌ि सरकार का ‌‌‌व‌िशेषाध‌िकार

इसमें कोई शक नहीं है कि सेना प्रमुख या सेना के किसी भी अंग के प्रमुख की नियुक्ति करना सरकार का विशेषाधिकार है। ऐसे में लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति पर इतना शोर-शराबा क्यों मचाया जा रहा है। यह पहला मौका नहीं है जब किसी की वरिष्ठता को नकार कर दूसरे को सेना प्रमुख बनाया गया हो। इससे पूर्व 1983 में जनरल एएस वैद्य को सेना प्रमुख बनाया गया था जबकि ले. जनरल उनसे वरिष्ठ थे।
सैन्य प्रमुख की न‌ियुक्त‌ि सरकार का ‌‌‌व‌िशेषाध‌िकार

पूर्वोत्तर के एक अखबार में एक पूर्व सैन्य अधिकारी के आलेख के अनुसार उस समय भी इसके विरोध में स्वर उठे थे पर इतना नहीं जितना आज लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति पर उठे हैं। आज इलेक्ट्रॉनिक से लेकर सोशल मीडिया तक इस बात पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है। 1983 में जनरल वैद्य के अनुभवों को वरीयता दी गई थी। उन्हें 1965 और 1971 में महावीर चक्र दिया जा चुका था। ले.जनरल सिन्हा की तुलना में उनके पास युद्ध क्षेत्र का अनुभव भी ज्यादा था। ऐसे में लेफ्टिनेंट जनरल सिन्हा की जगह जनरल वैद्य को तरजीह देना पूरी तरह से तर्कसंगत था।

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