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मीडिया पर रोक, प्रेस नोट, ब्रीफिंग के सहारे हिंदी सम्मेलन

भोपाल में चल रहे हिंदी सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में मीडिया के प्रवेश पर रोक पर उठे सवाल
मीडिया पर रोक, प्रेस नोट, ब्रीफिंग के सहारे हिंदी सम्मेलन

10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में मीडिया के प्रवेश पर रोक, हिंदी के शीर्षस्थ विद्वानों की उपेक्षा एवं ब्रीफिंग के सहारे सम्मेलन की खबरों को उपलब्ध कराने से हिंदी कैद होकर रह गई है। आयोजकों के इस व्यवहार पर वरिष्ठ पत्रकार  हरदेनिया कहते हैं, ‘‘ऐसा लगता है कि हिंदी को पत्रकारों एवं साहित्यकारों से खतरा है।"

यह पहला ऐसा विश्व हिंदी सम्मेलन है, जहां मीडिया को सत्रों में जाने से मनाही है। हरदेनिया कहते हैं कि ऐसा सिर्फ राजनीतिक दलों की कार्यकारिणियों में ही देखने को मिलता है, पर एक भाषायी सम्मेलन में लेखकों की उपेक्षा, पत्रकारों की उपेक्षा एवं सत्ताधारी भाजपा को ज्यादा महत्व देना यह दर्शाता है कि यह सम्मेलन हिंदी के लिए नहीं है।

उल्लेखनीय है कि सम्मेलन के पूर्व ही यह आयोजन विवादों से घिर गया, जब भोपाल में रह रहे वरिष्ठ साहित्यकारों को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया और इसे लेकर विदेश राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने गैर जिम्मेदाराना बयान दे दिया। इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई। हिंदी सम्मेलन में प्रवेश को सेंसरशिप किए जाने के निर्णय पर प्रतिभागी लेखकों एवं गैर प्रतिभागी लेखकों ने आश्चर्य व्यक्त किया है। सम्मेलन के दौरान मीडिया को सत्रों के विचार-विमर्श को कव्हर करने के लिए सभागार में जाने की अनुमति नहीं है। वे उन सत्रों के ब्रीफिंग को ही कव्हर कर सकते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार मृणाल पांडेय ने भी स्थानीय साहित्यकारों की उपेक्षा पर आश्चर्य व्यक्त किया और उसे अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि भाषा एवं साहित्य गंगोत्री की तरह है। गंगोत्री को काट देने से गंगा सूख जाएगी। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने भी कहा कि सम्मेलन में रमेशचंद्र शाह, गोविन्द मिश्र, राजेश जोशी जैसे लेखकों एवं साहित्यकारों को नहीं बुलाना बहुत ही अनुचित है। एक ओर सारे पोट्रेट एवं पोस्टर पर साहित्यकारों के फोटो एवं विचार हैं और दूसरी ओर सरकार यह कह कर बचना चाहती है कि यह साहित्य का सम्मेलन नहीं है। प्रधानमंत्री भी साहित्य का हवाला देते हैं, पर साहित्यकारों की क्यों उपेक्षा हुई एवं मीडिया से बचने की प्रवृत्ति यहां भी क्यों है, यह समझ से परे है।

हरदेनिया कहते हैं कि हिंदी को पत्रकारों से किस तरह का खतरा है, इस पर सरकार को जवाब देना चाहिए। भाषा को विस्तार देने में साहित्य एवं पत्रकारिता का बड़ा योगदान है और इस सम्मेलन में इन दोनों की उपेक्षा की गई, जो वर्तमान भारत सरकार एवं राज्य सरकार के भाषा के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को दिखाता है।

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