“तुम सब जिन्ना की औलादें हो... पिल्ले हो... मारो इनको...! इन भद्दी गालियों ने पल भर के लिए मेरा हौसला तोड़ दिया और उनकी लाठियों ने मेरा हाथ...ये लाठी किसी और की नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस की थी। लेकिन हमारा दोष क्या था?... बस यही कि हम नारे लगा रहे थे..आईन बचाने निकले हैं आओ हमारे साथ चलो...हमने एक भी मजहबी नारा नहीं लगाया था...” यह कहते हुए 18 साल की ईमान उस्मानी पुलिस लाठीचार्ज के दौरान बुरी तरह जख्मी अपने दाहिने हाथ की ओर देखती हैं और भावुक हो जाती हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बीए अंग्रेजी ऑनर्स की छात्रा ईमान 15 दिसंबर की शाम नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल थीं। उनका कहना है कि उस दिन पुलिस ने काफी बर्बर तरीके से लोकतांत्रिक आवाज को दबाने का काम किया। लेकिन उस्मानी आगे कहती हैं कि पुलिस लाठीचार्ज से ज्यादा दर्द उन्हें सीएए और एनआरसी जैसे विभाजनकारी कानून से है।
दरअसल, मौजूदा मोदी सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया है जिसमें 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध और पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इस कानून के विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें एक खास धर्म को लक्षित करके बाहर रखा गया है जो कि संविधान के खिलाफ है। साथ ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के पूरे भारत में लागू होने की आशंकाओं ने भी लोगों को सड़कों पर उतरने में मजबूर कर दिया। आंदोलित लोग सीएए और एनआरसी को एक साथ मिलाकर भी देख रहे हैं। देश की राजधानी में स्थित जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्र भी इस नए संशोधन के पारित होने के बाद से ही नाराज चल रहे हैं। लेकिन 15 दिसंबर की शाम हुई इस घटना ने उनके आक्रोश को और तेज कर दिया है। लिहाज देश-दुनिया के कई विश्वविद्यालय और नागरिक समूह भी छात्रों के समर्थन में सड़कों पर उतर आए।
‘कैम्पस के भीतर दाखिल हुई पुलिस और फिर....’
‘आखिर उस रात जामिया यूनिवर्सिटी में ऐसा क्या हुआ था?’ ...इस सवाल पर यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे इमरान बताते हैं कि उस दिन पुलिस ने बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तो बल प्रयोग किया ही साथ ही बिना विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के पुलिस कैम्पस के भीतर भी दाखिल हुई। फिर वह लाइब्रेरी में अध्ययन कर रहे छात्र-छात्राओं पर भी टूट पड़ी....”
हालांकि इसे लेकर पुलिस की ओर से कहा जा रहा है कि वह असमाजिक तत्वों को खदेड़ने के लिए परिसर के अंदर दाखिल हुई थी और इस दौरान उन्होंने ‘सीमित बल’ ही प्रयोग किया। लेकिन इमरान इस बात को सिरे से खारिज करते हैं। इमरान बताते हैं, “मैं लाइब्रेरी के अंदर पढ़ाई कर रहा था। अचानक से शोर-शराबा और फायरिंग की आवाज आई। पुलिस कैंपस के भीतर घुस चुकी थी और छात्रों पर डंडे बरसा रही थी। कुछ बाहर खड़े छात्र अंदर आए। फिर हम लोगों ने लाइब्रेरी का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। लेकिन पुलिस वाले दरवाजा तोड़कर अंदर दाखिल हुए और गालियां बकते हुए पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को मारा फिर बाहर ले जाकर हिरासत में ले लिया।”
इमरान का कहना है कि उनके बीच कोई असमाजिक तत्व नहीं था। यूनिवर्सिटी का भी गेट बंद था। जबकि पुलिस विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों को धकेलते हुए परिसर में घूसी। जिनको वह हिरासत में ले गई थी वे भी सब छात्र थे। मेवात के एक गांव से आने वाले इमरान इस घटना से काफी सहम गए हैं। वे बताते हैं, “17 को मेरी परीक्षा थी मगर इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया...ऐसे में मैं क्या परीक्षा देता...”
मुस्लिमों में किस बात का डर?
पुलिस लाठीचार्ज की घटना को लेकर जामिया के छात्रों में अभी भी रोष है लेकिन अब मुख्य रूप से उनका पूरा विरोध सीएए और एनआरसी के खिलाफ केन्द्रीत हो गया है। दंत चिकित्सा संकाय के छात्र सोएब पाशा का कहते हैं, “साफ तौर पर मुस्लिमों के अंदर डर इस बात का है कि सीएए में सभी धर्मों की नागरिकता का प्रावधान है लेकिन हमें अलग रखा गया है। साथ ही एनआरसी लाकर उनसे नागरिकता भी न छीन ली जाए इसे लेकर भी मुस्लिमों के अंदर भय है। पाशा आगे कहते हैं कि सवाल सिर्फ नागरिकता देने या नहीं देने का भी नहीं है बल्कि हमारे संविधान के साथ खिलवाड़ का भी है। यह देश धर्म के आधार पर नहीं चल सकता। उनके पुरखों ने इस देश में रहने का फैसला किया था, वे धर्म के आधार पर बने मुल्क में नहीं गए थे, वे बाई च्वाइस भारतीय हैं। लेकिन एनआरसी और सीएए का घालमेल ऐसा है कि यदि आप मुस्लिम हैं तो आपको बाहर जाना होगा।
पाशा और भी कई किस्म की दिक्कतों, शंकाओं और भय के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा, “असम में हम सबने एनआरसी को लागू होते देखा है। कैसे वहां लाखों लोग भ्रष्टाचार और दस्तावेज नहीं होने की वजह से अलग-थलग कर दिए गए। क्या अब नोटबंदी के बाद एक बार फिर लोग कतार में लगेंगे? हम संविधान को बचाने के लिए सड़क पर उतरे हैं।”
समाजकार्य में एमए कर रहे मोहम्मद फैजल भी इमरान की बात से सहमति रखते हैं। वे कहते हैं, “हमारे देश का एक बड़ा तबका ग्रामीण इलाकों में रहता है। इसमें काफी सारे अशिक्षत भी हैं।” फैजल आगे कहते हैं, “हमारे कई नेता कह रहे हैं कि अधिकतर लोगों को एनआरसी और सीएए के बारे में नहीं पता... अब सोचिए जब सरकार भी इस चीज को मान रही है। ऐसे में हम जनता से कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि वे दस्तावेज संभाल कर रखें?”
जामिया के बाद सुलगा सीलमपुर
16 दिसंबर को जामिया नगर से लगे सराय जुलैना के पास डीटीसी की तीन बसों को आग लगाने से बात शुरु हुई और फिर राजधानी के अलग-अलग हिस्सो में भी इसकी चिंगारी गिरी। 17 दिसंबर को सीलमपुर, जाफराबाद, में हिंसक प्रदर्शन हुए। कई बसों में तोड़-फोड़ की गई और दो पुलिस बूथ को भी आग के हवाले कर दिया गया।
वजह क्या थी?... यह बात तो पान-गुटका बेचने वाले मोहम्मद सोनू को भी ठीक-ठीक नहीं पता लेकिन यह सब उनकी आंखों के सामने हुआ। सोनू का कहना है कि वे इसके बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं जानते लेकिन प्रदर्शन करने वाले लोग अपने लिए लड़ रहे थे। वो लोग सही ही तो कह रहे थे, "अब मुझे मुसलमान होने के नाम पर कहा जाएगा कि आप 70 साल पुराना कागज दिखाइए.. तो मैं ये कहां से लाऊंगा???"
जिस ओर प्रदर्शन हुए उसकी उल्टी ओर कुछ कपड़े-गद्दे ववगैरह की दुकानें हैं। इसमें एक कपड़े की दुकान सीलमपुर के ही रहने वाले मोहम्मद महफूज की है। उस दिन तनाव बढ़ने के बाद महफूज ने अपनी दुकान की शटर गिरा ली थी। वे उस दिन प्रदर्शनकारियों के साथ तो नहीं थे लेकिन वे कैब और एनआरसी का विरोध करते हैं। महफूज ने कहा, "मौजूदा मोदी सरकार का हर फैसला हमको डराने वाला है। मजहब देखकर नागरिकता कोई भी देश नहीं देता। लेकिन मोदी सरकार ने ये रिवायत शुरू कर दी है। सोचिए, कल दूसरे इस्लामिक देश हमारे नागरिकों को निकाल दे तो क्या होगा?"
धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर रही सरकार?
दूसरी ओर सरकार लगातार कह रही है कि वह धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर रही है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी बयान दिया, “किसी भी भारतीय नागरिक को डरने की जरूरत नहीं है। आपको कोई भी बाहर नहीं कर सकता। अल्पसंख्यक समुदाय के लिए सरकार विशेष व्यवस्था करेगी। क्योंकि विपक्ष ने उनमें भय फैलाया है।” इस पर महफूज ने सवालिया लहजे में कहा, "अमित शाह कहते हैं कि अल्पसंख्यक को डरने की ज़रूरत नहीं है। हम उनके लिए स्पेशल कुछ करेंगे। क्या उनका इशारा कुछ और भयानक करने का है?"
मोहम्मद महफूज के बेटे मोहम्मद फैजान दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम के छात्र हैं। उनकी चिंता कुछ अलग है। उनका सवाल है कि मोदी सरकार अपनी ही जनता को संभाल नहीं पा रही है। रोजगार नहीं दे पा रही है लेकिन वह बाहरी लोगों को नागरिकता देने पर क्यों तुली हुई है?
बाकी मोहम्मद फैजान और मोहम्मद महफूज इस बात पर एकमत हैं कि मोदी सरकार उनको सताना चाहती है..सरकार की नियत पर उन्हें संदेह है....
अब आगे क्या?
देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन भले ही जारी है मगर सरकार की ओर से कानून को वापस लेने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है। जामिया में पर्सियन की पढ़ाई कर रहीं फौजिया कहती हैं, “मुझे पता है कि हमें लंबी लड़ाई लड़नी होगी। मैं खुद दो प्रदर्शनों में लाठी डंडे खा चुकी हूं। मगर मेरा संघर्ष जारी है।” इमरान और फैजल इस संघर्ष के लिए गांधीवादी रास्ते को सही मानते हैं। उन दोनों का कहना है कि उन्होंने ‘जिन्ना’ को नहीं ‘गांधी’ को चुना था इसलिए वे अहिंसक और शांतिपूर्वक प्रदर्शन करते रहेंगे। उनकी अपील है कि हिंसा करने वालों को भी यही करना चाहिए।
चिंता, भय, आशंकाओं के साथ आंदोलन जारी
राजधानी दिल्ली की जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों का आंदोलन हो या सीलमपुर के नागरिकों के जैसा हिंसक प्रदर्शन, अब इस तरह के मिले-जुले दृश्य देश के अलग-अलग हिस्सों में भी दिखाई दे रहा है। लेकिन 18 साल की ईमान, 20 साल की फौजिया, 30 साल के इमरान और 44 साल के महफूज समेत देश भर में प्रदर्शन कर रहे अल्पसंख्यकों के मन में चिंता, भय, आशंकाओं की रेखा गहरी होती जा रही है और आंदोलन के साथ-साथ आक्रोश उफान पर है...