केंद्र और राज्य के बीच कार्यकारी शक्तियों का जो बंटवारा संविधान में किया गया है क्या वह केंद्र शासित क्षेत्र दिल्ली पर भी लागू किया जा सकता है। मंगलवार को दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की दलीलें सुनने के बाद यह सवाल प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने किया। पीठ दिल्ली में शासन की शक्तियां किसके पास है इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।
आप सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ‘एक जहाज के दो कप्तान’ रहने पर अव्यवस्था होगी। पीठ ने कहा, ‘केंद्र शासित क्षेत्र दिल्ली के मामले में ये प्रावधान किस तरह से लागू होंगे।’ जयसिंह ने कहा, ‘केंद्र कैसे कह सकता है कि आप (दिल्ली सरकार) के पास कार्यकारी शक्ति नहीं है। मैं विधायी शक्तियों पर इस स्थिति को समझ सकती हूं।’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239एए और दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों की व्याख्या के दौरान न्यायालय को दिल्ली के केंद्र शासित क्षेत्र होने की शब्दावली को लेकर दिशा निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, राज्य और केंद्र के बीच जिम्मेदारियों की अष्पष्टता नहीं होनी चाहिए।
दिन भर चली सुनवाई में जयसिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के पास संविधान की केंद्रीय सूची और समवर्ती सूची में मौजूद विषयों पर केंद्रीय कानून लागू करने की शक्ति है और वह सिर्फ यह कह कर कि ‘आप के पास शक्ति नहीं है‘, इसे हथिया नहीं सकती। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा सूक्ष्म अवलोकन का विषय है कि उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद के बीच विचारों के अंतर के मामले में क्या हो सकता है।
अरविंद केजरीवाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भी कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष भी ‘प्रतिनिधि सरकार’ की जगह ‘जिम्मेदार सरकार’ की अवधारणा की बात करता है और मौजूदा मुद्दा दिल्ली के 1.89 करोड़ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि पुडुचेरी के उलट दिल्ली को संविधान से शक्तियां मिली हुई हैं और इसकी शक्तियां संसद से मिला तोहफा नहीं है।