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2जी में सबको बरी करने वाले जज ने कहा, अटकलों और अफवाहों की चाशनी थे आरोप

2जी घोटाले में सभी आरोपियों को बरी करने वाले जज ओपी सैनी ने 1,552 पन्ने के आदेश में अभियोजन पक्ष  अाैर...
2जी में सबको बरी करने वाले जज ने कहा, अटकलों और अफवाहों की चाशनी थे आरोप

2जी घोटाले में सभी आरोपियों को बरी करने वाले जज ओपी सैनी ने 1,552 पन्ने के आदेश में अभियोजन पक्ष  अाैर आरोप-पत्र की कई खामियों की ओर इशारा किया है। इस फैसले के बाद विशेष अभियोजक आनंद ग्रोवर की तीखी आलोचना हो रही है। आदेश में कहा गया है कि शुरुआत में अभियोजन ने बहुत उत्साह दिखाया, लेकिन सुनवाई पूरी होते-होते दिशाहीन हो गया। उल्लेखनीय है कि शुरुआत में यूयू ‌ललित इस मामले में विशेष अभियोजक थे। उनके सुप्रीम कोर्ट जज बनने के बाद ग्रोवर को शीर्ष अदालत ने विशेष अभियोजक नियुक्त किया था।

पढ़िए, सैनी के आदेश के कुछ मुख्य अंश;

-मैं सात सालों तक इंतजार करता रहा, काम के हर दिन, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतजार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आए। लेकिन कोई भी नहीं आया।

-सभी अफवाहों, गप्प‍बाजी और अटकलबाजियों से बनी जनधारणा पर चल रहे थे। कुछ लोग चुनिंदा तथ्यों का उल्लेख बेहद कलाकारी से कर इसे हवा दे रहे थे। अदालती कार्यवाही में जनधारणा कोई मायने नहीं रखती।

-शुरुआत में अभियोजन ने बहुत उत्साह दिखाया। पर जैसे-जैसे केस आगे बढ़ा, ये समझना मुश्किल हो गया कि वे साबित क्या करना चाहते है। सुनवाई खत्म होते-होते अभियोजन दिशाहीन और सशंकित हो गया।

-अभियोजन की तरफ से कई आवेदन और जवाब दाखिल किए गए। कोई वरिष्ठ अधिकारी या अभियोजक इन आवेदनों और जवाबों पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं था। एक कनिष्ठ अधिकारी ने इन पर दस्तखत किए। न तो कोई जांच अधिकारी और न ही कोई अभियोजक इस बात की जिम्मेदारी लेना चाहता था कि अदालत में क्या कहा जा रहा है या क्या दाखिल किया जा रहा है।

 -सबसे दुखद यह रहा कि विशेष अभियोजक उस दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं थे जो वो खुद कोर्ट में पेश कर रहे थे। ऐसे दस्तावेज का कोर्ट के लिए क्या इस्तेमाल है जिस पर किसी के दस्तखत नहीं हों।

 -बेहद नाटकीय तरीके से आरोप-पत्र तैयार किया गया। इसमें गलत तथ्य थे जो आरोप प्रमाणित करने में बुरी तरह विफल रहे। अभियोजन पक्ष किसी भी अभियुक्त के खिलाफ कोई भी आरोप साबित करने में बुरी तरह से नाकाम रहा है।

-अदालत के सामने जो दस्तावेज रखे गए, उनमें सबूत नहीं थे। 30,000 पन्नों में जो कुछ रखा गया, वो सब कुछ अटकलों और अफवाहों की चाशनी थी। कुछ लोगों ने चालाकी से कुछ चुनिंदा तथ्यों का इंतजाम किया और एक घोटाला पैदा कर दिया जबकि कुछ हुआ ही नहीं था।

 

 

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