चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ बयान दिया है। चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत से कहा कि इससे राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। चुनाव आयोग ने इसे प्रतिगामी कदम करार दिया। सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड की संवैधानिक मान्यता पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने यह बात कही।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आयेाग ने कहा कि ‘एफसीआरए 2010’ कानून में बदलाव से राजनीतिक दल बिना जांच वाला विदेशी चंदा प्राप्त करेंगे जिससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं। शीर्ष अदालत में हलफनामा दायर करने वाले चुनाव आयोग ने कहा कि 26 मई 2017 को उसने विधि एवं न्याय मंत्रालय को पत्र लिखकर अपने इस नजरिये से अवगत कराया था कि आयकर कानून, जनप्रतिनिधित्व कानून और वित्त कानून में बदलाव राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता के खिलाफ होंगे।
चुनाव आयोग के निदेशक (कानून) विजय कुमार पांडेय द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने मंत्रालय को सूचित किया है कि "वित्त अधिनियम, 2017 के कुछ प्रावधान और आयकर अधिनियम, आरपी अधिनियम, 1951 में किए गए संशोधन। और कंपनी अधिनियम, 2013 में राजनीतिक दलों के राजनीतिक पहलू / वित्त पोषण के पारदर्शिता पहलू पर गंभीर प्रभाव / प्रभाव पड़ेगा।"
हलफनामे में कहा गया है, 'कानून एवं न्याय मंत्रालय को सूचित किया गया है कि ऐसी स्थिति में इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त धन को रिपोर्ट नहीं किया जा सकता है, ऐसे में यह जानकारी प्राप्त करना मुश्किल होगा कि क्या रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट की धारा 29-बी के तहत कानून उल्लंघन हुआ है या नहीं। इस धारा के तहत सरकार कंपनी या विदेशी स्रोत से राजनीतिक पार्टियां धन प्राप्त नहीं कर सकती हैं।'
क्या है मामला?
बता दें कि चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने पिछले साल इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की। सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा है। इस बॉन्ड ने पारदर्शिता लाने की जगह जोखिम और बढ़ा दिया है, यही नहीं विदेशी स्रोतों से भी चंदा आने की गुंजाइश हो गई है।
एडीआर ने हाल में उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर चुनावी बांड योजना, 2018 पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे पिछले वर्ष जनवरी में केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया था। याचिका में दावा किया गया कि सरकार का फैसला राजनीतिक दलों को अपने स्रोत को दर्ज किए बिना असीमित दान प्राप्त करने का अधिकार देता है।