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नष्ट फसल, विनष्ट किसान

जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही थीं या पढ़ी जा रही होंगी, उस समय भी उत्तर भारत में बुरी तरह मायूस कोई किसान अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहा होगा। अन्नदाता की हालत बुरी है, यह हम सब जानते हैं लेकिन उसकी जीवन की डोर काटने के लिए सिर्फ एक फसल की बर्बादी बहुत है।
नष्ट फसल, विनष्ट किसान

 यह सत्य इशारा कर रहा है कि गलत नीतियों की वजह से खेती किसानों की कब्रगाह बनती जा रही है। मार्च की शुरुआत में बेमौसम की बरसात और ओला-वृष्टि ने उत्तर भारत में खासकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में करीब 500 किसानों की जिंदगियां लील ली।

आउटलुक को पड़ताल के दौरान अकेले उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में 93 मौतों का लेखा-जोखा मिला है। आउटलुक के पास जो सूची है उसमें 3 मार्च से लेकर 9 अप्रैल के दौरान बेमौसम बारिश की वजह से सदमे और आत्महत्या करने वाले किसानों के नाम-पते-तारीख दर्ज हैं। केंद्र से लेकर समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव की प्रदेश सरकार ने खबर लिखे जाने तक इनमें से किसी पीडि़त परिवार को किसी भी तरह की कोई राहत या मुआवजा नहीं दिया। उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। किसानों को राहत पहुंचाने की जगह समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में इसे लेकर राजनीतिक खींचतान जारी है। समाजवादी पार्टी पर निशाना साधकर भाजपा ने, जिसके राज्य से 70 से अधिक सांसद है, कहा कि किसान मर रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनकी सुध नहीं ले रहे हैं। भाजपा का कहना है कि राज्य में अब तक 248 किसान आत्महत्या कर चुके हैं और जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार किसानों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। वहीं अखिलेश यादव का आरोप है कि कुछ विपक्षी पार्टियां ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर गंदी राजनीति कर रही हैं।

मध्य प्रदेश में भी किसानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार घटित हो रही हैं। पिछले एक महीने में राज्य में 100 के करीब किसानों की मौत की खबरें आई हैं। मुआवजे को लेकर भी खेल अलग चल रहा है। राज्य स्तर पर घोषणाएं हो रही हैं लेकिन चूंकि स्थानीय प्रशासन इन्हें आत्महत्या मानने को तैयार नहीं होता इसलिए पीडि़त परिवारों को मदद नहीं मिल रही है। पश्चिम बंगाल में भी किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों में नौजवानों की संख्या अधिक है और यह कृषि जगत में फैली हताशा को दिखाता है। अकेले वर्धमान जिले में एक माह के भीतर 16 किसानों ने खुदकुशी कर ली है। फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलने और बेमौसम बारिश की वजह से किसान कीटनाशक पीकर जान दे रहे हैं। वर्धमान में 34 वर्षीय हेंब्रम ने आलू उपजाने के लिए 50, 000 रुपये कर्ज लिया था। फसल खराब होने की वजह से वह अवसाद में आ गया था।

आत्महत्या के अधिकांश मामलों में किसानों ने खेत में जाकर जब फसल को तबाह देखा तो उन्होंने जान दे दी। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के विद्याधाम समिति के राजाभैया ने आउटलुक को बताया कि आत्महत्या करने वाले किसानों के ऊपर 20 से 50 हजार रुपये तक के ऋण थे और उनकी माली हालत खराब थी। इसलिए उनका भविष्य इस फसल पर बहुत निर्भर था। इस फसल के बर्बाद होने के बाद वे पूरी तरह सडक़ पर आ गए थे। बांदा जिले के खरोंच गांव के 38 वर्षीय बच्चीलाल यादव की दर्दनाक कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। उन्होंने 12 मार्च को अपनी जिंदगी समाप्त कर दी। परिवार पूरी तरह बर्बादी के कगार पर है, भुखमरी के हाल हैं, घर टूटा-फूटा है, खाने के लाले पड़े हैं। इस पूरे इलाके में इस आपदा ने अनगिनत परिवारों को बेटियों की शादी टालने पर मजबूर किया है। भाजपा की मथुरा से सांसद हेमामालिनी ने जरूर अपने इलाके में हुए भारी नुकसान की जानकारी लेने के लिए दौरा किया लेकिन अभी तक वहां आत्महत्या कर रहे किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिला। मथुरा के 40 वर्षीय बिशन सिंह ने पांच अप्रैल को अपने खेत में ही पेड़ से लटककर फांसी लगा ली। वह अपनी पूरी तरह बर्बाद फसल को देखकर बहुत परेशान हो गया।

मध्य प्रदेश में पिछले एक महीने में कितने किसानों ने आत्महत्या की, इसका पता लगाना कठिन है क्योंकि हर रोज प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करीब डेढ़ दर्जन किसानों ने पिछले एक महीने में आत्महत्याएं की है, पर सरकार मानने को तैयार नहीं कि सारे किसानों ने फसल बर्बाद होने पर ही आत्महत्या की है। कांग्रेस के अनुसार मध्य प्रदेश में अबतक लगभग दो दर्जन किसानों ने फसल बर्बाद होने के कारण आत्महत्या की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय किसान संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं किसान मजदूर प्रजा पार्टी के संस्थापक शिवकुमार शर्मा के अनुसार प्रदेश में पिछले एक महीने में 62 किसानों ने आत्महत्या की है यानी हर रोज दो आत्महत्याएं।

चंबल एवं बुंदेलखंड में किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की हैं। भिंड जिले में 7 किसानों ने आत्महत्या की है। यहां किसानों की आत्महत्या को लेकर कलेक्टर ने विवादित बयान देकर सरकार को सकते में डाल दिया। भिंड कलेक्टर मधुकर आग्नेय ने एक विवादित बयान दिया कि किसान ज्यादा बच्चे पैदा कर लेते हैं और उनका पालन-पोषण नहीं कर पाते हैं तो आत्महत्या करके सरकार को बदनाम करते हैं। इसकी ऑडियो क्लिप कांग्रेस नेता गोविंद सिंह ने जारी की थी। तब सरकार के एक मंत्री इनका बचाव करते नजर आए तो दूसरे ने आपत्ति की। मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी यह बयान देकर किसानों के दर्द में इजाफा कर दिया कि किसी ने भी फसल बर्बाद हो जाने के चलते आत्महत्या नहीं की। मध्य प्रदेश में किसान अपनी निजी समस्याओं के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।

प्रदेश में बर्बाद फसल का जायजा लेने आई कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी नीमच जिले में दौरे के बाद कहा कि मध्य प्रदेश सरकार किसानों के साथ भेदभाव कर रही है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुक्चय प्रवञ्चता के.के.मिश्रा कहते हैं, 'भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति बैठक में केंद्रीय मंत्री एवं उनके वरिष्ठ नेता प्रदेश में कृषि विकास को लेकर अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे हैं। लगातार तीन सालों से बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और पाले से बर्बाद फसलों के कारण किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है। वे हताश होकर आत्महत्या कर रहे हैं। मोदी से डरे हुए शिवराज जी विशेष पैकेज की मांग नहीं कर रहे हैं और आंकड़ों में फेरबदल किया जा रहा है।’

एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक अनीश कुमार कहते हैं, 'मध्यप्रदेश सरकार अनाज उत्पादन में केंद्रीय सम्मान लेकर खेती-किसानी की बदहाल हालात को छिपा रही है। किसानों को समय पर मुआवजा तक नहीं दिया जा रहा है। खेती में लगातार घाटा उठाने वाले किसान अपनी सिंचित जमीन छोड़ देंगे तो उसे उद्योगपतियों को देना आसान होगा।’ शर्मा का भी मानना है कि किसानों की आत्महत्या की मुख्य वजह है खेती में लगातार घाटा होना और कर्ज से दबना।

हरियाणा और पंजाब में भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने हरियाणा सरकार को नोटिस देते हुए आत्महत्या करने वाले तीन किसानों को मुआवजा देने को कहा है। गौरतलब है कि पहले तमाम राज्य सरकारें 50 फीसदी फसल बर्बादी के बाद मुआवजा देने की बात कह रही थीं, लेकिन केंद्र सरकार ने 33 फीसदी फसल नुकसान होने पर मुआवजा देने की बात कही। लेकिन जहां भी फसलें तबाह होने से किसानों ने आत्महत्याएं की हैं, वहां प्रशासन किसानों की मदद करने के बजाय उनके विरोध में ही खड़ा दिखाई दे रहा है।

अभी तक किसानों की आत्महत्याओं के लिए महाराष्ट्र का नाम आता था। लेकिन पिछले एक महीने में उत्तर भारत में किसानों की मौतें कृषि संकट के डरावने चेहरे को बेनकाब कर रही हैं। इस क्षेत्र में किसानों की स्थिति लंबे समय से खराब चल रही है और क्रमश: खराब होती जा रही है। किसानों को इस बात पर जरा भी भरोसा नहीं है कि फसल खराब होने के बाद उन्हें समय पर सरकारी मदद मिल जाएगी। इस संवाददाता ने जब इस इलाके का दौर किया था, तब किसानों और पीडि़त परिवारों ने खुलकर कहा कि अगर राज्य सरकारें समय रहते मदद करतीं तो इतनी जानें जातीं। पिछली फसल तबाही का सही मुआवजा अभी तक नहीं मिला है।

खेती इस कदर संकटग्रस्त है कि एक फसल बर्बाद होने का बोझ तक किसान झेल पाने की स्थिति में नहीं हैं और न ही उन्हें किसी सरकारी मदद पर कोई भरोसा हो पा रहा है। जिस देश में भूमि अधिग्रहण को लेकर राजनीति गरमाई हुई है और केंद्र सरकार हर हाल में किसानों की जमीन पर कब्जा चाह रही है, वहां खेती की कमर टूट रही है। आलम यह है कि पिछले एक साल में देश भर में ट्रैक्टरों की बिक्री में 37 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। ट्रैक्टर बनाने वाली महेंद्रा एंड महेंद्रा ने माना है कि बेमौसम की बरसात से खेती और अधिक संकटग्रस्त होगी तथा ट्रैक्टरों की बिक्री में और गिरावट आने का अंदेशा जताया है।

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