विश्व विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने एक निजी समाचार चैनल से बातचीत में कहा, नोटबंदी का निर्णय नोटों की अनदेखी है, बैंक खातों की अनदेखी है। उन्होंने कहा, यह भरोसे वाली सारी अर्थव्यवस्था की अनदेखी है। इस लिहाज से यह तानाशाही भरा फैसला है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नोटबंदी को लेकर उनकी यह तात्कालिक राय आर्थिक पहलू के लिहाज से है। सेन ने कहा, भरोसे की अर्थव्यवस्था के लिए यह आपदा के समान है। बीते 20 साल में अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से वृद्धि कर रही थी। लेकिन यह पूरी तरह से एक-दूसरे की जुबान के भरोसे पर आधारित थी। इस तानाशाहीपूर्ण कार्रवाई के जरिये और यह कहते हुए कि हमने वादा तो किया था लेकिन उसे पूरा नहीं करेंगे, आपने इसकी जड़ों पर चोट की है।
नोबल पुरस्कार प्राप्त और भारत रत्न से सम्मानित सेन ने कहा कि पूंजीवाद को अनेक सफलताएं मिलीं जो कि व्यापार में भरोसे के जरिये आईं। उन्होंने कहा कि अगर कोई सरकार लिखित में कोई वादा करती है और उसे पूरा नहीं करती तो यह तानाशाही कदम है। सेन ने कहा, मैं पूंजीवाद का बहुत बड़ा समर्थक नहीं हूं। लेकिन दूसरी ओर पूंजीवाद ने अनेक बड़ी सफलताएं दर्ज की हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की जिसके तहत 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    