सत्यार्थी ने कहा हम बच्चों की स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हैं और मैं अपने जीवनकाल में ही बाल दासता का अंत देखूंगा। मानव जीवन के इतिहास में 35 साल बहुत ज्यादा समय नहीं होता और मेरे देश में तथा पूरी दुनिया में 35 साल पहले यह कोई मुद्दा ही नहीं था। उन्होंने कहा लोग सोचते थे कि दासता पूरी तरह समाप्त हो चुकी है लेकिन अब लोगों ने यह मानना शुरू कर दिया है कि बच्चों को दास बनाया जा रहा है तथा हमें इसका अंत खोजना होगा।
साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सत्यार्थी की हिंदी में लिखी गई पहली किताब आजाद बचपन की ओर का कल शाम उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने विमोचन किया। यह किताब बाल अधिकारों के लिए सत्यार्थी के तीन दशक से चल रहे संघर्ष के दौरान हुए महत्वपूर्ण घटनाक्रम, अदालती फैसलों एवं प्रमुख नीतिगत हस्तक्षेप पर उनके ही लिखे गए लेखों का संकलन है। ये लेख बच्चों के खिलाफ हिंसा समाप्त करने के लिए और संबंधित प्रयासों को एक एेतिहासिक परिदृश्य प्रदान करने के लिए लड़ाई को रेखांकित करते हैं।
सत्यार्थी ने कहा यह मेरी पहली किताब है और मुझे इस बात पर गर्व है कि इसका प्रकाशन मेरी मातृ भाषा में हुआ है। किताब में लेखों का जो संग्रह है वह लेख मेरे जीवन के सर्वाधिक भावुक तथा कठिन समय में लिखे गए हैं जब मैं बच्चों को बचाने के लिए जी जान लगा कर लड़ रहा था।