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किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रदर्शन किसानों का हक, तरीके पर विचार संभव

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन और तेज हो गया है। वहीं किसान आंदोलन के विरुद्ध...
किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रदर्शन किसानों का हक, तरीके पर विचार संभव

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन और तेज हो गया है। वहीं किसान आंदोलन के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वो किसानों के प्रदर्शन करने के अधिकार को स्वीकार करती है और वो किसानों के 'राइट टू प्रोटेस्ट' के अधिकार में कटौती नहीं कर सकती है। सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि 'हमें यह देखना होगा कि किसान अपना प्रदर्शन भी करे और लोगों के अधिकारों  का उलंघन भी न हो।'वहीं सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई अभी टल गई है। कोर्ट में किसी किसान संगठन के ना होने के कारण कमेटी पर फैसला नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वो किसानों से बात करके ही अपना फैसला सुनाएंगे। आगे इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टी है, ऐसे में वैकेशन बेंच ही इसकी सुनवाई करेगी।

वहीं तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि वो फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उनमें से कोई भी फेस मास्क नहीं पहनता है, वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं। कोविड-19 एक चिंता का विषय है, वे गांव जाएंगे और वहां कोरोना फैलाएंगे। किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। इस पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि दिल्ली को ब्लॉक करने से यहां के लोग भूखे रह सकते हैं। आपका(किसानों) मकसद बात करके पूरा हो सकता है। सिर्फ विरोध प्रदर्शन पर बैठने से कोई फायदा नहीं होगा।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि ‘‘यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है।’’ उधर, सरकार की ओर से बातचीत का नेतृत्व कर रहे केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि दिल्ली के बॉर्डर पर जारी आंदोलन केवल एक राज्य तक सीमित है और पंजाब के किसानों को विपक्ष ‘गुमराह’ कर रहा है। हालांकि, उन्होंने आशा जतायी कि इस गतिरोध का जल्दी ही समाधान निकलेगा। वहीं, प्रदर्शन कर रहे किसान यूनियनों का कहना है कि नए कृषि कानूनों पर समझौते के लिए नए पैनल का गठन कोई समाधान नहीं है, क्योंकि उनकी मांग कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की है। उन्होंने यह भी कहा कि संसद द्वारा कानून बनाए जाने से पहले सरकार को किसानों और अन्य की समिति बनानी चाहिए थी।

आंदोलन में शामिल राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कोहर ने कहा कि उन्होंने हाल ही में ऐसे पैनल के गठन के सरकार की पेशकश को ठुकराया है। वहीं स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने ट्विटर पर कहा है, ‘‘सुप्रीम कोर्ट तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिकता तय कर सकता है और उसे ऐसा करना चाहिए। लेकिन इन कानूनों की व्यवहार्यता और वांछनीयता को न्यायपालिका तय नहीं कर सकती है। यह किसानों और उनके निर्वाचित नेताओं के बीच की बात है। न्यायालय की निगरानी में वार्ता गलत रास्ता होगा।’’ स्वराज इंडिया भी किसान आंदोलन के लिए गठित समूह संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल है और यादव फिलहाल अलवर में राजस्थान सीमा पर धरने पर बैठे हैं।

टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) का कहना है कि इस समय नयी समिति के गठन का कोई मतलब नहीं है। सितंबर में आए तीन कृषि कानूनों को केन्द्र सरकार कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधारों के रूप में पेश कर रही है, जो बिचौलियों को समाप्त कर देगी और किसानों को अपना फसल देश में कहीं भी बेचने की इजाजत देगी। संयुक्त किसान मोर्चा ने केन्द्र सरकार को एक पत्र लिखकर विवादास्पद कानूनों पर अन्य किसान संगठनों के साथ ‘समानांतर वार्ता’ करना बंद करने की मांग की है। सरकार एक ओर जहां कह रही है कि वह किसान नेताओं के जवाब का इंतजार कर रही है, वहीं मोर्चा का कहना है कि जवाब देने का कोई अर्थ ही नहीं बनता है, क्योंकि उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों के साथ अंतिम दौर की बातचीत में अपना रुख साफ कर दिया है कि वे कानूनों की पूर्ण वापसी चाहते हैं। केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल को लिखे पत्र में मोर्चा ने कहा कि केन्द्र को कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे प्रदर्शन को ‘‘बदनाम’’ करना बंद करना चाहिए।


इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके समाधान के लिए वह एक समिति का गठन करेगी। सीजेआई एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा, ‘‘उसमें हम सरकार के सदस्य और किसान संगठनों के सदस्यों को शामिल करेंगे। जल्दी ही यह राष्ट्रीय मुद्दे का रूप भी ले सकता है। हम शेष भारत के किसान संगठनों के सदस्यों को भी इसमें शामिल करेंगे। आप समिति के सदस्यों के नाम की एक सूची प्रस्तावित करें।’’ कोर्ट ने इस मामले में किसान संगठनों को पक्ष बनाते हुए उनसे गुरुवार तक जवाब देने को कहा है। पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आपकी बातचीत से लगता है कि बात नहीं बनी है। पीठ ने कहा, ‘‘उसे असफल होना ही था। आप कह रहे हैं कि आप बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ इसपर मेहता ने कहा, ‘‘हां, हम किसानों से बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ इसपर जब पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल से पूछा कि क्या वह उन किसान संगठनों के नाम मुहैया करा सकते हैं जिनके साथ सरकार बातचीत कर रही है। मेहता ने कहा, ‘‘वे भारतीय किसान यूनियन और दूसरे संगठनों के सदस्य हैं, जिनके साथ सरकार बात कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठनों से बातचीत कर रही है और उन्होंने न्यायालय को उनके नाम बताये। मेहता ने कहा, ‘‘अब, ऐसा लगता है कि दूसरे लोगों ने किसान आन्दोलन पर कब्जा कर लिया है।’’ न्यायालय ने केंद्र और अन्य को उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नोटिस भी जारी किये जिनमें दिल्ली की विभिन्न सीमाओं को अवरुद्ध किये हुए किसानों को हटाने और इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने का अनुरोध किया गया है।

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