एमसीसीआई के निदेशक और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से तालीम हासिल करने वाले डॉ.जसिम मोहम्मद बताते हैं ‘इसके गठन का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम व्यापारियों को वित्तिय सहायता देना, विकसित करना, उनके बनाए सामान को बाजार देना और छोटे उद्यमियों की समस्याओं को सुलझाना है। ’ इस चैंबर का काम सरकार, प्रशासन और व्यापारियों के बीच तालमेल कायम करना भी है।
डॉ.जसिम के अनुसार कौशल विकास को लेकर केंद्र सरकार की अनेकों ऐसी योजनाएं हैं जिनकी जानकारी न होने से व्यापारी वर्ग उनका फायदा नहीं उठा पाता है। इस मंच की ओर से व्यापारी वर्ग को उन योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। भारत में अधिकतर व्यापार जातियों एवं धार्मिक समूहों ने अपने व्यापार संगठनों को संचालित कर रखा है। स्वंय मुसलमानों में भी जाति आधारित व्यापारिक संगठन हैं लेकिन वे केवल अपने सदस्य समूहों एवं जातियों के हितों को ध्यान में रखते हैं। इस कारण मुस्लिम चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का गठन किया गया है।
डॉ.जसिम खुद भी व्यवसायी हैं। अभी तक मुस्लिम चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के साथ 3500 व्यवसायी जुड़ चुके हैं। डॉ. जसिम का कहना है कि मुसलमानों का शीशा, कपड़ा, कढ़ाई, जरदारी, ताले, चमड़ा, पीतल, बुनाई और कालीन आदि उद्योगों में खासा नाम है। यह कला मरे नहीं इसलिए बाकायदा बिना ब्याज के मुसलमानों को इसे विकसित करने के लिए कर्ज दिया जाएगा। इसकी खास बात यह भी होगी कि मुस्लिम चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में मुसलमानों के सभी फिरके होंगे। डॉ. जसिम का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि ताकि मुसलमान आरक्षण के भरोसे न रहकर अपने पैरों पर स्वंय खड़े हों और कुटीर उग्योग छोड़ चुके मुसलमानों को हर प्रकार की सहायता मुहैया करवाई जा सके।