मुख्यमंत्री तो वह बहुत बाद में बनीं। जयललिता ने मात्र दो से आठ वर्ष की आयु तक माता से दूर रहने का मानसिक दुःख झेला। पिता के आकस्मिक निधन के कारण प्रारंभिक वर्षं में ही पहले मौसी के पास रहना पड़ा। मासूम बच्ची ने मौसी और मां को अभिनय करते देखा। लेकिन अकेलेपन ने पढ़ने में खूब मन लगाया। तमन्ना रही कि पढ़-लिखकर वकील बनेंगी, लेकिन मजबूरियों और मां के बड़े आग्रह पर 13 वर्ष की उम्र से एक्टिंग भी शुरू कर दी। इसी दौर में एम.जी. रामचंद्रन की फिल्मों में अपने हीरो की तलवारबाजी से प्रेरित होकर घर में भाई के साथ छद्म तलवारबाजी की और स्वयं को एम.जी.आर. मानते हुए ऐसी फुर्ती से खेलती रहीं कि हमेशा विजयी होती रहीं। बस, इस तरह प्रतिद्वंद्वी और विजय के दृढ़ निश्चय के साथ वह सचमुच ताकतवर विरोधियों से ‘आयरन लेडी कम मैन’ की तरह लड़ती रहीं। जयललिता के 68 वर्ष की उम्र में अधिक अस्वस्थ होने का बड़ा कारण कानूनी लड़ाई से हुई मानसिक यंत्रणा एवं अल्प अवधि की जेल यात्रा भी रही। उच्च और सुप्रीम अदालत में उनके विरुद्ध आरोप साबित नहीं हुए और वह मुक्त होकर स्वछंद राज करती रहीं। लेकिन विरोधी द्रमुक नेताओं के साथ ही कभी अपने कहलाने वाले नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी के आरोपों से बने कानूनी प्रकरणों ने उन्हें बहुत विचलित किया।
बहरहाल, तमिलनाडु के लाखों लोग जयललिता के प्रति अपार स्नेह के साथ कल्याण योजनाओं से कृतज्ञता के कारण उनके निधन पर रोते-बिलखते दिखाई दे रहे हैं। सत्ता में रहते हुए कार्यकर्ताओं और जनता की भीड़ में घुसकर उन्हें आश्वासन देने के बजाय जयललिता ने 1 से 5 रुपये में पेट भर भोजन देने और मुफ्त दवाई-चिकित्सा की सुविधाएं देने के क्रांतिकारी कार्यक्रम लागू किए। असहाय बच्चों का पालन-पोषण या गरीब लड़कियों की शिक्षा और शादी, हर गरीब की आर्थिक मदद का अभियान, बड़े पैमाने पर उद्योगों के साथ रोजगार लाखों लागों का दिल-दिमाग जीतने के लिए पर्याप्त था। इसी तरह राजनीति में राजीव गांधी, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी तक से सीधे राजनीतिक एवं व्यक्तिगत संबंध बनाना असाधारण चातुर्य ही कहा जाएगा। निश्चित रूप से अम्मा का व्यक्तित्व निराला था। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं पर अधिकार के बावजूद संयमित बोलना और सफल होना किसी अन्य राजनेता के लिए शायद संभव नहीं दिखता। सिम्मी ग्रेवाल से एक इंटरव्यू के दौरान जयललिता ने कहा था- ‘एम.जी.आर. मेरे मार्गदर्शक, माता-पिता-दोस्त सब कुछ और प्रेरक थे। पहले मैं लड़ने से बचती थी। लेकिन उनके बिछोह के बाद मैं एक हमला करने वाले पर दस घातक हमले की लड़ाई करती हूं।’ ईश्वर के प्रति गहरी आस्था के बावजूद अंतिम समय वह मृत्यु के समक्ष पराजित हो गईं। लेकिन ‘तारों के पास’ अपने मार्गदर्शक दोस्त के साथ मिलने चली गईं। ऐसी वीरांगना नेत्री को विनम्र श्रद्धांजलि।