दिल्ली हाइकोर्ट ने 17 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। साथ ही, उसकी इस दलील को भी खारिज कर दिया कि दोनों दोस्त थे। अदालत ने कहा कि दोस्ती पीड़िता के साथ बार-बार बलात्कार करने, उसे बंधक बनाने या बेरहमी से पीटने का लाइसेंस नहीं देती।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने बाल यौन अपराध निवारण (पोक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामले में व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी और कहा कि आरोपी अभी तक जांच में शामिल नहीं हुआ है, जबकि उसकी अग्रिम जमानत याचिका पहले चार बार या तो वापस ले ली गई है या खारिज कर दी गई है।
उन्होंने यह भी कहा, "आवेदक की ओर से यह तर्क कि आवेदक और शिकायतकर्ता मित्र थे और इसलिए यह सहमति से संबंध का मामला हो सकता है, इस अदालत द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
न्यायाधीश ने 17 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा, "यदि संबंधित पक्ष मित्र भी थे, तो भी मित्रता आवेदक को पीड़िता के साथ बार-बार बलात्कार करने, उसे अपने मित्र के घर में बंधक बनाने तथा उसकी निर्दयतापूर्वक पिटाई करने की अनुमति नहीं देती, जैसा कि प्रथम दृष्टया शिकायतकर्ता ने अपने बयान में बताया है, जिसकी पुष्टि मेडिकल रिकॉर्ड से भी होती है।"
नाबालिग लड़की की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी के अनुसार, वह आरोपी को कई सालों से पड़ोसी के रूप में जानती थी। उसने आरोप लगाया कि वह उसे अपने दोस्त के घर ले गया, जहाँ उसने उसके साथ मारपीट की और बार-बार उसका यौन उत्पीड़न किया, और किसी को भी घटना के बारे में बताने पर जान से मारने की धमकी दी।
आरोपी ने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि एफआईआर दर्ज करने में 11 दिन की देरी हुई थी, तथा उसने यह भी कहा था कि उसके और पीड़िता के बीच संबंध सहमति से बने थे।
आरोपी के विलंब के तर्क को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, "स्वाभाविक रूप से, उक्त घटना के डर और आघात के कारण शिकायतकर्ता ने शुरू में अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताने से परहेज किया था।"
न्यायाधीश ने कहा, "अतः उपरोक्त परिस्थितियों तथा वर्तमान मामले में लगाए गए आरोपों की गंभीर प्रकृति को देखते हुए, तथा प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पुष्टि होने के बाद, यह न्यायालय पाता है कि अग्रिम जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता। तदनुसार, वर्तमान आवेदन खारिज किया जाता है।"