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दिल्ली में गुजरात भवन कैंटीन नहीं है कैशलेस

दीया तले अंधेरे की कहावत दिल्ली के गुजरात भवन में साकार हो रही है। देश भर को कैशलेस बनाने की मुहिम में जुटे नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि नकद की जगह कार्ड का इस्तेमाल हो, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित गुजरात भवन के कैंटीन में अभी तक यह व्यवस्था नहीं हो पाई है।
दिल्ली में गुजरात भवन कैंटीन नहीं है कैशलेस

500-1000 रुपये के नोट बंद होने के बाद पेटीएम, एसबीआई बडी और डेबिट या क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल के लिए सरकार खूब प्रचार प्रसार कर रही है। प्रधानमंत्री खुद जहां मौका मिल रहा है वहीं कैशलेस का पक्ष ले रहे हैं। नोटबंदी के एक महीना बीत जाने के बाद भी दिल्ली में कौटिल्य मार्ग स्थित गुजरात भवन के कैंटीन में सिर्फ नकद लेन-देन चल रहा है। वहां मौजूद स्टाफ ने बताया कि अभी मशीन के लिए आवेदन दिया गया है लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है। जल्द ही मशीन आ जाएगी। 

सवाल यह उठता है कि जब मोदी ने नोटबंदी की थी तभी से वह नकद में लेन-देन को कम करने की बात कर रहे हैं। ऐसे में उनके राज्य के भवन को सबसे पहले यह व्यवस्था लागू करने की कवायद करनी चाहिए थी। लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी कार्ड या ई वॉलेट से पैसा देने की कोई व्यवस्था नहीं है। दिल्ली में सभी राज्यों के भवन हैं और लगभग सभी राज्य कैंटीन चलाते हैं। ये कैंटीन खाने के अच्छे ठिकानों के बारे में जाने जाते हैं। गुजराती खाना खाने के लिए हर दिन भोजन प्रेमी और खाने के शौकीन यहां जुटते हैं। गुजरात के बड़े अधिकारी भी यहां आकर ठहरते हैं, आश्चर्य है कि उन्होंने भी इस बारे में कुछ नहीं सोचा। हर दिन इतने लोग यहां आते हैं लेकिन अभी तक यह सोचा ही नहीं गया कि नकद लेन-देन को कैसे कार्ड के लेनदेन में बदला जाए। 

संभव है इसके जवाब में कोई अधिकारी यह कहे कि यह कैंटीन कॉन्ट्रेक्ट पर चलता है, लेकिन जब देश मोदी के साथ खड़ा है तो फिर उनके राज्य का भवन क्यों इस तरह पिछड़ रहा है। सरकारी अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे कैशलेस के फायदे बताएं और आम लोगों को इसे इस्तेमाल करना सिखाएं। तो क्या कोई अधिकारी कैंटीन के कॉन्ट्रेक्टर को यह प्रेरणा नहीं दे सकता या मदद नहीं कर सकता कि वहां कैशलेस भुगतान की व्यवस्था की जा सके। 

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