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कैसे हुई थी मदर्स डे की शुरुआत, जानिए, इससे जुड़ी दिलचस्प बातें

आज (रविवार) मदर्स डे है। मदर्स डे पूरी दुनिया में उन मांओं को समर्पित है जो अपना पूरा जीवन अपने बच्चों को...
कैसे हुई थी मदर्स डे की शुरुआत, जानिए, इससे जुड़ी दिलचस्प बातें

आज (रविवार) मदर्स डे है। मदर्स डे पूरी दुनिया में उन मांओं को समर्पित है जो अपना पूरा जीवन अपने बच्चों को समर्पित कर देती हैं और अपने इस त्याग और ममता के बदले में कुछ भी नहीं मांगती हैं।

पुरानी चली आ रही परपंरा के अनुसार, मदर्स डे मई महीने के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है। ऐसे तो कुछ अन्य देशों में इसे दूसरे दिनों में भी मनाया जाता है लेकिन अधितकर मदर्स डे को मार्च या मई के महीने में मनाते हैं।

माना जाता है कि इसे मनाने की शुरूआत अमेरिका से हुई थी। बाद में धीरे-धीरे दूसरे देशों ने भी इसे अपना लिया।

मदर्स डे सबसे पहले 1908 में अमेरिका में मनाया गया था। ऐना जार्विस नाम की एक महिला ने अपनी मां की याद में अमेरिका के वर्जीनिया में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था।

ऐना की मां की मृत्यु 1905 में हुई थी। वह अमेरिका के सिविल वॉर के घायल सैनिकों की सेवा करती थीं। जार्विस अपनी मां के काम को पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत थीं। इसके लिए वह चाहती थीं कि पूरी दुनिया में मांओं को अपने बच्चों का ख्याल रखने के लिए एक दिन निश्चित किया जाए।

हालांकि अमेरिका में आधिकारिक तौर पर मदर्स डे को हॉलिडे घोषित किए जाने के बाद कंपनियों ने इसका व्यावसायिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसके बाद मदर्स डे को अवकाश बनाने के लिए अभियान चलाने वाली ऐना ही इस दिन को मनाए जाने का विरोध करने लगीं।

कहा जाता है कि माताओं को अंगूठी देने की परंपरा के कारण अमेरिका के गहने उद्योग के वार्षिक राजस्व का 7.8% मदर्स डे के दिन ही प्राप्त होता है।

मदर्स डे ना सिर्फ यूरोपिय और अमेरिकी देशों में लोकप्रिय है बल्कि वह चीन जैसे कम्यूनिस्ट देश में भी इसकी लोकप्रियता है। चीन में ये दिन अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है और इस दिन उपहार के रूप में गुलनार का फूल, जो बहुत लोकप्रिय हैं सबसे अधिक दाम में बिकते हैं। इस दिन को गरीब माताओं की मदद के लिए 1997 में निर्धारित किया गया था। खासतौर पर लोगों को उन गरीब माताओं की याद दिलाने के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे कि पश्चिम चीन में रहती थीं। चीन के कम्युनिस्ट पार्टी की पत्रिका पीपुल्स डेली में छपे एक लेख में कहा गया था कि ‘संयुक्त राष्ट्र में इस दिन के पैदा होने के बावजूद, चीन के लोग इस छुट्टी को बिना किसी हिचकिचाहट के मनाते हैं क्योंकि ये परम्परागत नीतियों, बुजुर्गों के प्रति सम्मान और संतानों का माता-पिता के प्रति धर्मनिष्ठा, के अंतर्गत आते हैं।

 

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