गौरतलब है कि वर्ष 2012 में डॉसाल्ट ने 10 अरब डॉलर में बेचने का आवेदन का प्रस्ताव किया था। इस बयान के बाद गेंद भारतीय खेमे में आ गई है और उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी है। हालांकि दोनों ही पक्ष ये बयान दे रहे हैं कि इस समझौते को अंतिम रूप जल्द से जल्द दे दिया जाएगा।
डॉसाल्ट एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक ट्रेपीयर ने कहा, कीमतों का मसला बिल्कुल साफ है। हमने जितनी कीमत पहले दिन कही थी (न्यूनतम बोली लगाने वालों के रूप में) वही आज भी है। इसमें कोई तब्दीली नहीं।
वर्ष 2012 में 126 विमानों की खरीद के लिए रैफेल का चुनाव किया गया था लेकिन समझौते की कई शर्तों पर बात अटक गई थी। इसकी वजह यह बताई गई कि समझौते की शर्तों के अनुसार 108 जेट विमानों को सरकारी उद्यम हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में बनना है और इसके लिए स्टैंड गारंटी देने के लिए डॉसाल्ट तैयार नहीं है। उधर रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार गांरटी प्राधान और कीमतों में बेतहाशा वृद्धि की वजह से फ्रांस के साथ होने वाला यह सौदा खटाई में पड़ गया।
इन विमानों के जीवनकाल तक रखरखाव की लागत भी अधिक होने की बात है और उसे लेकर भी दोनों पक्षों के बीच स्थिति स्पष्ट नहीं है। इसी बीच डॉसॉल्ट ने मिस्र को 24 रेफेल जेट 5.1 अरब डॉलर में बेचने का सौदा किया है, जबकि वह भारत को 126 रेफेल जेट 10 अरब डॉलर में बेच रहा है। इससे भी यह आशंका फैल गई थी कि डॉसॉल्ट विमानों की कीमत में इजाफा कर रहा है।
संभवतः कंपनी की तरफ से यह स्पष्टीकरण भी इसीलिए आया है कि कीमतों में कोई रद्दोबदल नहीं हो रही। उधर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह कहकर इंतजार को और बड़ा दिया है कि मार्च से पहले रेफैल जेट खरीद पर कोई फैसला नहीं होने जा रहा है।