10 मई को राज्य के बर्खास्त मुख्यमंत्री हरीश रावत विधानसभा में विश्वासमत हासिल करेंगे। न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी ने दोनों पक्षों के बीच करीब तीन घंटे की दलीलों के खत्म होने के बाद कहा, ‘सुनवाई संपन्न हो गई है। मैं नौ मई को पूर्वाह्न सवा दस बजे निर्णय सुनाउंगा।’
उच्चतम न्यायालय ने सदन में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश देते हुए कहा था कि अयोग्य घोषित किए गए विधायक उस सूरत में मतदान में भाग नहीं ले सकेंगे जबकि उनकी अयोग्यता बरकरार रहती है। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि यदि मतदान के समय उनकी (अयोग्य विधायकों की) वही स्थिति रही तो वे सदन में हिस्सेदारी नहीं कर पाएंगे।
न्यायालय ने यह भी कहा था, हालांकि वर्तमान मामले में हमारी टिप्पणी से विधानसभा के अयोग्य घोषित सदस्यों के मामले के गुण-दोष के मामले में किसी तरह का पूर्वाग्रह नहीं होगा। वर्तमान में 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 28 विधायक, कांग्रेस के 27, बसपा के दो, तीन निर्दलीय और एक उत्तराखंड क्रांति दल का है। दस बागी विधायकों में से नौ कांग्रेस के और एक भाजपा का है। अयोग्य घोषित किए गए विधायकों की ओर से पेश हुए वकील सी.ए. सुंदरम ने कहा कि उनके विरूद्ध विधानसभा अध्यक्ष का कदम पूर्वाग्रह से प्रेरित था जो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध था।
उन्होंने उन तीन आधारों का विरोध किया जिनके आधार पर विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। उन्होंने पूछा कि कांग्रेस के विधायकों का भाजपा के विधायकों के साथ संयुक्त रूप से एक ज्ञापन देकर राज्यपाल से विनियोग विधेयक पर मतविभाजन की मांग करने में क्या गलत था? सुंदरम ने कहा कि संयुक्त ज्ञापन लिखना असहमति का एक कृत्य है जो लोकतंत्र के लिहाज से स्वस्थ प्रक्रिया है तथा यह संविधान के अनुच्छेद 10 के तहत दल-बदल नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि यदि विधानसभा अध्यक्ष के अनुसार विनियोग विधेयक विधानसभा द्वारा पारित कर दिया गया था तो बागी विधायकों के भाजपा के साथ विधानसभा में मतदान करने की बात कहां से आ गई।
अध्यक्ष के कदम का बचाव करते हुए वकील अमित सिब्बल ने कहा कि बागी विधायकों का भाजपा विधायकों के साथ एक ही बस में राज्यपाल के पास जाना तथा बाद में भाजपा महासचिव विजयवर्गीय के साथ चार्टर्ड विमान में उत्तराखंड से बाहर जाना उनकी वैचारिक समानता दर्शाता है। सिब्बल ने दावा किया कि राज्यपाल के समक्ष भाजपा विधायकों के साथ बागी विधायकों का परेड करना भी दल-बदल विरोधी कानून के तहत दल-बदल है। हालांकि सुंदरम ने कहा कि बागी विधायकों का भाजपा विधायकों के साथ जाना, गलत नहीं है तथा यह न तो विचारधारा का मुद्दा है और न ही इस पर दल-बदल विरोधी कानून लग सकता है क्येंकि वह दल-बदल नहीं है।