रिपोर्ट कहती है कि भारत भीतरी भ्रष्टाचार का सामना कर रहा है। हालांकि ऐसा माना जाता है कि यह पाकिस्तान या रूस के मुकाबले कम है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2014 में कलपक्कम परमाणु ऊर्जा स्टेशन में तैनात सीआईएसएफ के हेड कांस्टेबल विजय सिंह ने अपनी सर्विस राइफल से हमला कर तीन लोगों को मार डाला था।
रिपोर्ट कहती है कि सीआईएसएफ में कर्मचारी विश्वसनीयता कार्यक्रम है लेकिन वह सिंह की बिगड़ती मानसिक हालत का पता लगाने में नाकाम रहा। हालांकि उसने कई बार खतरे के संकेत दिए थे जिसमें एक बार उसने यह तक कहा था कि वह किसी पटाखे की तरह फट पड़ेगा। रिपोर्ट आगे कहती है, भारत के परमाणु सुरक्षा उपायों के संबंध में उपलब्ध सीमित जानकारी को देखते हुए यह तय कर पाना मुश्किल है कि क्या भारत की परमाणु सुरक्षा इन खतरों से सुरक्षा करने में सक्षम है। हालांकि भारत ने अपने परमाणु स्थलों की सुरक्षा के लिए अहम उपाय किए हैं लेकिन हालिया रिपोर्ट बताती हैं कि उसके परमाणु सुरक्षा उपाय पाकिस्तान के सुरक्षा उपायों से कमजोर हैं। हालांकि भारत में बाहरी खतरों की संभावना उतनी अधिक नहीं है। कुल मिलाकर, मध्यम स्तर का खतरा है ।
रिपोर्ट में इस बात पर गौर किया गया है कि भारत के पास परमाणु हथियारों का एक छोटा जखीरा है तथा परमाणु सामग्री इस्तेमाल करने में सक्षम हथियार कुछ सीमित जगहों पर ही हैं जिनके बारे में समझा जाता है कि उनकी भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान के विपरीत भारत का प्लूटोनियम प्रसंस्करण कार्यक्रम गैर सैन्य प्रकृति का है। इसमें बताया गया है कि अमेरिकी अधिकारियों ने भारतीय परमाणु सुरक्षा उपायों को पाकिस्तान और रूस के समान कमजोर माना है और वर्ष 2008 में भाभा परमाणु शोध केंद्र का दौरा करने वाले अमेरिकी विशेषज्ञों ने वहां के सुरक्षा इंतजाम को बेहद निम्न स्तर का बताया था।
पाक परमाणु हथियारों की चोरी का अत्यधिक खतरा
इसी रिपोर्ट में चेताया गया है कि पाकिस्तान ने गैर सामरिक परमाणु हथियारों की तरफ रूख किया है और इसी के साथ उसके परमाणु हथियारों की चोरी का खतरा बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में परमाणु चोरी का खतरा बहुत बढ़ गया है। इसके अनुसार, पाकिस्तान के परमाणु जखीरे का विस्तार हो रहा है और यह गैर सामरिक परमाणु हथियारों की ओर रुख कर रहा है और इस चलन से खतरा बढ़ता प्रतीत हो रहा है, जबकि प्रतिकूल क्षमताएं अत्यधिक बनी हुई हैं। दीर्घकालीन आधार पर देश के ढहने या उसपर अतिवादियों के कब्जे की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। बहरहाल, निकट अवधि में इस तरह की आशंका की गुंजाइश कम प्रतीत हो रही है। अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक ने एक सप्ताह पहले कुछ इसी तरह की चिंता जाहिर की थी जिसके बाद हार्वर्ड केनेडी स्कूल की यह रिपोर्ट सामने आई है।