केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देने वाले फैसले के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। हालांकि केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल दिए गए फैसले पर दोबारा विचार की कोई जरूरत नहीं है। राज्य सरकार ने कहा कि किसी अन्य आधार पर चुनौती से फैसला प्रभावित नहीं होगा।
केरल सरकार ने न्यायालय में कहा कि सबरीमला सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा है और इसे संवैधानिक वैधता की परीक्षा में खरा उतरना होगा। सबरीमला प्रकरण पुनर्विचार याचिकाओं के माध्यम से फिर से नहीं खोला जा सकता। वहीं, नैयर सर्विस सोसाइटी की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील के. परासरन ने पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष दलीलें रखनी शुरू की और फैसले को रद्द करने की मांग की। इस मामले में याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट को तब तक दखल नहीं देना चाहिए जब तक कुछ गलत ना हो।
पांच सदस्यीय बेंच के सामने 56 पुनर्विचार याचिकाएं, चार रिट, केरल सरकार द्वारा 2 ट्रांसफर, 2 स्पेशल लीव पेटिशन और एक त्रावणकोर देवास्म बोर्ड की ओर से फैसला लागू कराने के लिए वक्त की अनुमति मांगने की याचिका शामिल हैं। इन सब याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नारिमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पीठ सुनवाई कर रही है।
सुनवाई शुरू होने पर सीजेआई ने बताया कि इस मामले में 54 पुनर्विचार याचिका दाखिल गई हैं। 5 रिट याचिका है, इसके अलावा ट्रांसफर पिटीशन भी है। कुल 64 याचिकाएं हैं। हम पहले पुनर्विचार याचिकाओं को सुनेंगे। चीफ जस्टिस ने सभी वकीलों से रिव्यू पिटीशन के दायरे में ही अपनी बात सीमित रखने को कहा है।
चार महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट चार महीने पहले ही मंदिर में महिलाओं को प्रवेश देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट के फैसले के विरोध में केरल के कई इलाकों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। इस मुद्दे को लेकर सत्ताधारी सीपीएम और बीजेपी-कांग्रेस के बीच जमकर राजनीतिक बयानबाजी भी हुई थी।
कोर्ट में करीब 54 समीक्षा याचिकाएं दायर
इस मुद्दे को लेकर कोर्ट में करीब 54 समीक्षा याचिकाएं दायर की गई है, इसके अलावा अदालत की अवमानना की याचिकाएं भी दायर की गई हैं। समीक्षा याचिकाओं पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। यह बेंच उन याचिकाओं की वैधता की जांच के बाद विचार करेगी कि उन पर समीक्षा की जा सकती है या फिर उन्हें खारिज किया जाए।
सबरीमला मंदिर में प्रवेश करने वाली दो महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रिव्यू पिटीशन की सुनवाई में खुद को पक्षकार बनाने की मांग की है। याचिका कनक दुर्गा और बिंदु अम्मानि ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि उन्हें सबरीमला मंदिर से जुड़े मामलों के रिव्यू पिटीशंस पर सुनवाई में पक्षकार बनाया जाए। दोनों महिलाओं ने सबरीमला मंदिर के अगली बार खोलने पर फिर से प्रवेश करने की अनुमति भी मांगी है।
दोनों महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी सुरक्षा की मांग की थी। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को निर्देश दिया था कि वो दोनों महिलाओं को पूरी सुरक्षा प्रदान करें। इन दो महिलाओं ने अपनी सुरक्षा की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर इन संगठनों ने जताई नाराजगी
सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के दिए इस निर्णय पर कई हिंदूवादी और सामाजिक संगठनों ने नाराजगी जताई थी। उनके मुताबिक इससे उनकी धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं पर चोट पहुंची है। नेशनल अयप्पा डिवोटीज एसोसिएशन (नाडा) और नैयर सेवा समाज जैसे 17 संगठन मुख्य रूप से इस पुनर्विचार याचिका को दायर करने में शामिल हैं।
निर्णय के खिलाफ केरल में जारी भारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच सबरीमला तीर्थयात्रा के बाद बीते 19 जनवरी को भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट को बंद कर दिया गया था।
इससे पहले 22 जनवरी को होनी थी सुनवाई
बता दें कि शीर्ष कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तारीख तय की थी लेकिन न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के चिकित्सा अवकाश पर रहने की वजह से सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाकर 6 फरवरी करनी पड़ी। मंदिर में प्रवेश करने में सफल होने वालीं 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग में शामिल बिंदु और कनक दुर्गा ने समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई के खिलाफ एक याचिका दायर की है। उनका कहना है कि 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने मासिक धर्म से गुजरने वाली महिलाओं के गौरव और स्वतंत्रता को बरकरार रखा था।
सबरीमला मंदिर पर क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में हर आयु की महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मंदिर में 10 से लेकर 50 वर्ष उम्र की महिलाओं के प्रवेश करने को लेकर फैसला सुनाया था।
तत्कालीन चीफ जस्टिस (सीजेआई) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने 4-1 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया था। इस बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि मासिक धर्म (Menstruation Cycle) उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देना उनके मूलभूत अधिकारों और संविधान में बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है।
भगवान अयप्पा का मंदिर है सबरीमला
केरल का सबरीमला मंदिर अयप्पा भगवान का है। इनके अनुयायियों का कहना है कि यहां विराजमान अयप्पा भगवान ब्रम्हचारी हैं और इसलिए 10 से 50 वर्ष की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं। माना जाता है कि इस आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी उनके मासिक धर्म के कारण है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 28 सितंबर को बहुमत से फैसला सुनाते हुए मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव करार दिया था। जिसका अयप्पा अनुयायी भारी विरोध कर रहे हैं।