विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, हमारा ध्यान यूएससीआईआरएफ की एक रिपोर्ट की ओर आकर्षित किया गया है, जिसमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर फैसला सुनाया गया है। उन्होंने कहा, यह रिपोर्ट भारत, उसके संविधान और उसके समाज के बारे में सीमित समझ पर आधारित लगती है। उन्होंने कहा, हम ऐसी रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेते हैं।
गौरतलब है कि अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक रूप से प्रेरित और सांप्रदायिक हिंसा बीते तीन वर्षों में लगातार बढ़ने की खबर है। आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, ओडिशा, कनार्टक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में धार्मिक रूप से प्रेरित हमलों और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सर्वाधिक देखने को मिली हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान गैर सरकारी संगठनों और मुस्लिम, ईसाई एवं सिख समुदायों सहित धार्मिक नेताओं ने धार्मिक रूप से विभाजित करने वाले अभियान में शुरुआती इजाफा किया। रिपोर्ट में कहा गया है, चुनाव के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों को सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की ओर से अपमानजनक टिप्पणियों और आरएसएस एवं विहिप जैसे हिंदू राष्ट्रवादी समूहों की ओर से हिंसक हमलों और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ा है।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिसंबर, 2014 में उत्तर प्रदेश में घर वापसी अभियान के तहत हिंदू समूहों द्वारा क्रिसमस के दिन कम से कम 4,000 ईसाई परिवारों और 1,000 मुस्लिम परिवारों को जबरन हिंदू धर्म में लाने की योजना के ऐलान का जिक्र किया है। आगरा में मुस्लिम समुदाय के कई लोगों का कथित तौर पर लालच देकर धर्मांतरण कराए जाने की घटना का भी उल्लेख है। आयोग ने कहा कि सितंबर, 2014 में दलित सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट्स ने उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट दायर की कि उनके वर्ग के लोगों को जबरन हिंदू बना दिया गया और उनके गिरजाघर को हिंदू मंदिर में तब्दील कर दिया गया। यह पता नहीं है कि इस मामले में पुलिस जांच की गई या नहीं।
आयोग ने ओबामा प्रशासन से मांग की है कि वह भारत सरकार से उन अधिकारियों एवं धार्मिक नेताओं को फटकार लगाने के लिए दबाव बनाए जो अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं। ओबामा से मांग की गई है कि इस बहुलतावादी देश में धार्मिक स्वतंत्रता के मानकों को बढ़ावा देने के लिए भी भारत सरकार से कहें। वैसे खास बात यह है कि खुद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दो बार भारत में धार्मिक सहिष्णुता की जोरदार हिमायत कर चुके हैं।
अपनी रिपोर्ट में आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में व्यक्त किए गए धार्मिक स्वतंत्रता पर उनके विचारों का भी उल्लेख किया है। रिपोर्ट के मुताबिक इस साल फरवरी में कैथोलिक संतों को सम्मानित करने के एक समारोह में मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उनकी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि धर्म की संपूर्ण स्वतंत्रता हो तथा हर किसी को बिना किसी उत्पीड़न अथवा अनुचित प्रभाव के अपनी इच्छा के अनुसार धर्म में रहने अथवा अपनाने की पूरी स्वतंत्रता हो। आयोग ने कहा, यह बयान उन आरोपों के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि गुजरात में 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों में मोदी की संलिप्तता थी। गौरतलब है कि 2002 में दंगों के मामलों में अब तक किसी भी भारतीय अदालत ने मोदी को कुछ भी गलत करने का दोषी नहीं ठहराया है।