अपने उद्गम से सूख चुकी क्षिप्रा को करीब 432 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना के जरिये नर्मदा के सहयोग से जीवित किया गया है। प्रदेश सरकार के नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) ने दोनों नदियों को नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के जरिये जोड़ा है।
एनवीडीए के संयुक्त निदेशक आदिल खान ने कहा, सिंहस्थ मेले के मद्देनजर हम इस परियोजना के चारों पंपिंग स्टेशनों को उनकी कुल 28,370 किलोवाट की क्षमता से चला रहे हैं। फिलहाल क्षिप्रा में हर सेकंड 5,000 लीटर नर्मदा जल प्रवाहित किया जा रहा है।
क्षिप्रा नदी में आमतौर पर गर्मियों में सूखकर नाले में तब्दील हो जाती है और इसका पानी आचमन के लायक भी नहीं रह जाता है। इसके मद्देनजर साधु-संतों ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह सिंहस्थ मेले के दौरान क्षिप्रा में स्वच्छ जल छोड़कर इसे प्रवाहमान बनाए ताकि देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धालु इसमें अच्छी तरह स्नान कर सकें।
खान ने कहा, हमने इसकी पूरी व्यवस्था की है कि महीने भर चलने वाले सिंहस्थ मेले के दौरान क्षिप्रा में स्वच्छ जल की लगातार आपूर्ति होती रहेगी। उन्होंने बताया कि नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना 25 फरवरी 2014 को लोकार्पित हुई थी। तब से अब तक इसके जरिये क्षिप्रा में नर्मदा का तकरीबन 86.5 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा जा चुका है।
खान ने बताया कि नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के तहत नर्मदा नदी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के खरगोन जिले स्थित सिसलिया तालाब से पानी लाकर इसे क्षिप्रा के प्राचीन उद्गम स्थल पर छोड़ा जा रहा है। यह जगह इंदौर जिले के उज्जैनी गांव की पहाड़ियों पर स्थित है। हालांकि, क्षिप्रा इस स्थल पर लुप्त नजर आती है।
सिसलिया तालाब से उज्जैनी की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। यह जगह सिसलिया तालाब से 350 मीटर की उंचाई पर स्थित है। नर्मदा का जल उज्जैनी से करीब 112 किलोमीटर की दूरी तय कर अपनी स्वाभाविक रवानी के साथ उज्जैन के रामघाट पहुंच रहा है।
उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई तक चलने वाले सिंहस्थ मेले में करीब पांच करोड़ श्रद्धालुओं के उमड़ने की उम्मीद है। उज्जैन में वर्ष 2004 में लगे पिछले सिंहस्थ मेले के दौरान गंभीर नदी पर बने बांध के पानी को क्षिप्रा में छोड़ा गया था। इसके साथ ही, बड़े टैंकरों से क्षिप्रा में पानी डाला गया था।