राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने इस संबंध में किसी नियामक इकाई के प्रभाव में आने तक यह रोक लगाई है। न्यायाधिकरण ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही गंगा नदी में कचरा बहाने वाले दोषी होटलों, धर्मशालाओं और आश्रमों पर 5000 रूपए रोजाना के दर से जुर्माना लगाने का भी निर्देश दिया। एनजीटी अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कौडियाला से ऋषिकेश तक के क्षेत्र में कैंपिंग गतिविधियों पर रोक लगाते हुए कहा, इस फैसले के संदर्भ में नियामक इकाई के प्रभाव में आने और प्रभावी ढंग से क्रियान्वित होने तक कौडियाला से लेकर ऋषिकेश तक समूचे क्षेत्र में कोई कैंपिंग गतिविधि नहीं होगी। हालांकि हरित अधिकरण ने यह स्पष्ट किया कि राफ्टिंग से नदी या वातावरण में कोई गंभीर प्रदूषण नहीं होता है और इसलिए हम राफ्टिंग गतिविधि को तत्काल प्रभाव से जारी रखने की अनुमति देते हैं। न्यायाधिकरण ने फैसले के अंतर्गत आने वाले समूचे क्षेत्र में प्लास्टिक की किसी भी वस्तु के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई है। पीठ का यह आदेश एनजीओ सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट (सेफ) की याचिका पर आया जो गंगा नदी के किनारे राफ्टिंग शिविरों के अनियंत्रित संचालन के खिलाफ दायर की गई थी। इस सिलसिले में अधिकरण ने एक नियामक इकाई तैयार करने के लिए केंद्र और उत्तराखंड सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारियों की एक समिति भी गठित की है जिसकी रिपोर्ट अधिकरण को तीन हफ्ते के भीतर सौंपी जाएगी।
वहीं एक अन्य आदेश में न्यायाधिकरण ने गंगा नदी को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए कई निर्देश जारी किए। उसने कहा कि यदि कोई भी होटल, धर्मशाला या आश्रम अपना घरेलू कचरा या जलमल गंगा या उसकी सहायक नदियों में बहाता है तो उसे नदी को प्रदूषित करने को लेकर 5000 रूपए रोजाना के हिसाब से पर्यावरण क्षतिपूर्ति का भुगतान करना होगा। हरित न्यायाधिकरण ने गंगा के सफाई कार्य को कई खंडों, गोमुख से हरिद्वार, हरिद्वार से कानपुर, कानपुर से उत्तर प्रदेश की सीमा तक, उत्तर प्रदेश की सीमा से लेकर झारखंड की सीमा तक और झारखंड की सीमा से बंगाल की खाड़ी तक में बांट दिया है। प्लास्टिक पर पाबंदी के अलावा अधिकरण ने निगम अपशिष्ट, भवन निर्माण एवं तोड़फोड़ वाले मलबे को गंगा और उसकी सहायक नदियों में फेंके जाने पर भी रोक लगा दी है और घोषणा की है कि उल्लंघनकर्ता को 5000 रूपए प्रति घटना की दर से पर्यावरण मुआवजा का भुगतान करना होगा। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्रा कुमार की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि गोमुख से हरिद्वार तक गंगा और उसकी सहायक नदियों के आसपास बसे शहरों एवं नगरों में प्लास्टिक के इस्तेमाल यानी उसकी थैलियों, प्लेट, ग्लास, चम्मच, पैकेट पर पूर्ण प्रतिबंध होगा। किसी भी परिस्थिति में चाहे थैलियों की मोटाई कुछ भी क्यों न हो उसकी इजाजत नहीं होगी। ये प्रतिबंध एक फरवरी, 2016 से लागू होगा। हालांकि हरित न्यायाधिकरण ने उत्तराखंड में नौ पनबिजली परियोजनाओं, जिनका मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है, के संबंध में कोई आदेश जारी नहीं करते हुए कहा कि सभी परियोजनाओं को अपना मल शोधन संयंत्र बनाना होगा और तीन महीने में उन्हें चालू करना होगा। हरित पीठ ने कहा कि उत्तराखंड पर्यावरण सुरक्षा एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सहमति के बगैर चल रही गंभीर प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयां तत्काल प्रभाव से बंद कर दी जाएंगी।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने लगातार फसल अवशेष जलाने वालों के खिलाफ भी कठोर और दंडात्मक कार्रवाई करने का राज्य सरकारों को निर्देश दिया और ऐसे किसानों को मुहैया की गई सहायता वापस लेने का भी आदेश दिया। अधिकरण ने कहा कि फसल जलाने की हर घटना पर पर्यावरण मुआवजा के तौर पर दो एकड़ से कम जमीन वाले को 2,500 रूपया, दो से पांच एकड़ के बीच जमीन के मालिक को 5,000 रूपया और पांच एकड़ से अधिक जमीन वाले को 15,000 रूपया अदा करना पड़ेगा। एनजीटी अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने कहा कि फसल अवशेष (फसल कटाई के बाद खेत में बची पुआल) लगातार जलाने के मामले में संबद्ध राज्य सरकार द्वारा एक उपयुक्त कठोर और दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें मुकदमा शुरू करना भी शामिल है। एनजीटी ने फसल अवशेष जलाए जाने के निषेध की अधिसूचना जारी कर चुके उत्तर भारत के पांच राज्यों, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये अधिसूचनाएं कठोरता से लागू की जाएं और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ उपयुक्त कड़ी कार्रवाई की जाए।