अमरीका की मशहूर टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत में समाज को बांटने वाला (India’s Divider in Chief) बताया है। टाइम मैगजीन में पीएम मोदी के पिछले 5 साल के काम पर लीड स्टोरी की गई है। बता दें कि ‘टाइम’ इकलौती विदेशी मैगजीन नहीं है जिसने पीएम मोदी की आलोचना की हो बल्कि इससे पहले ब्रिटेन की चर्चित साप्ताहिक मैगजीन 'द इकॉनमिस्ट' ने भी उनकी तीखी आलोचना की थी।
बीते 2 मई को द इकॉनमिस्ट ने अपने संपादकीय में नरेंद्र मोदी ‘’एजेंट ऑरेन्ज’’ की संज्ञा दी थी। मई को प्रकाशित स्टोरी का शीर्षक था, ‘’नरेंद्र मोदी के मातहत भारत की सत्ताधारी पार्टी लोकतंत्र के लिए खतरा है।’’ इसमें लिखा था था कि मतदाताओं को मोदी सरकार को अपना मत देकर सत्ता से बाहर कर देना चाहिए या फिर गठबंधन सरकार बनाने के लिए मजबूर करना चाहिए।
ऑरेंज एजेंट शीर्षक से छपे संपादकीय में कहा गया कि मोदी समर्थकों की उम्मीदों को पूरा कर पाने में असफल रहे हैं। द इकॉनमिस्ट अपने संपादकीय में कहा है कि पीएम मोदी के पास उपलब्धियों के नाम पर जितना कुछ है उससे कहीं ज्यादा वह असफलता ढो रहे हैं। हालांकि वह उतने बुरे नहीं रहे जितना आलोचकों ने अनुमान लगाया था।
पत्रिका का संपादकीय लिखता है, “नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरूद्ध मजबूत नेता के रूप में खुद को प्रचारित करते रहे हैं।” संपादकीय में पाकिस्तान पर हवाई हमले के केन्द्र सरकार के फैसले को लापरवाही भरा कदम बताया गया है। कहा गया है कि परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी देश पर हवाई हमले का अंत एक बड़ी त्रासदी के साथ हुआ।
‘छद्म उग्रता’ की वजह से आर्थिक नीति प्रभावित
पत्रिका ने नोटबंदी, जीएसटी और दिवालिया कोड को सरकार की असफलता माना है। पत्रिका के मुताबिक, नरेन्द्र मोदी की ‘छद्म उग्रता’ के कारण से आर्थिक नीति भी प्रभावित हुई है। पत्रिका में लिखा है, “साल 2016 में नरेन्द्र मोदी ने मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाने के लिए अचानक से लगभग-लगभग सारे नोट को अमान्य करार दिया। यह योजना नाकाम हुई और इसके कारण किसान और छोटे व्यापारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने देश भर में जीएसटी और दिवालिया कोड को लागू किया। जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। कांग्रेस सरकार के 10 साल के मुकाबले नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में अर्थव्यवस्था में मामूली वृद्धि देखने को मिली जबकि इस दौरान तेल के दामों में वैश्विक कमी रही है।”
‘भड़काऊ भाषण खतरनाक’
पीएम मोदी और उनकी पार्टी की ओर से लगातार दिए जा रहे भड़काऊ भाषण की आलोचना करते हुए संपादकीय में कहा गया कि यह सब न सिर्फ घिनौना है बल्कि खतरनाक भी है।
मोदी के शासनकाल में स्वघोषित गौरक्षकों के द्वारा मुसलमानों को पीट-पीटकर मारने के चलन का जिक्र करते हुए संपादकीय में कहा गया है कि भारत की एक बड़ी आबादी खुद को दोयम दर्जे का नागरिक अनुभव कर रही है।
2017 में भी इस पत्रिका ने की थी आलोचना
इससे पहले जून 2017 में 'द इकॉनमिस्ट' ने प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक सुधारों पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि 'वह उतने बड़े सुधारक भी नहीं है, जितना लगता है।' इकॉनमिस्ट के लेख में कहा गया है कि पीएम मोदी की ओर से आर्थिक मामलों में किए गए सुधार पूरी तरह से 'दिखावे' जैसे हैं। उन्होंने देश और दुनिया भर की मौजूदा परिस्थितियों से लाभ उठाने का अवसर गंवा दिया है। इतना ही नहीं इस पत्रिका ने अपने लेख में जीएसटी को भी गैरजरूरी जटिलता और नौकरशाही की ताकत को बढ़ाने वाला करार दिया था।
वहीं इस साप्ताहिक पत्रिका ने ने अपने एक लेख में पीएम मोदी की ओर से लिए गए नोटबंदी के फैसले की भी आलोचना की थी। इकॉनमिस्ट ने नोटबंदी के फैसले को काउंटर-प्रॉडक्टिव और अपराधियों पर शिकंजा कसे बिना लोगों के कारोबार को प्रभावित करने वाला करार दिया था। इकॉनमिस्ट ने अपने लेख में कहा था, 'इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि इकॉनमी ने पिछड़ना शुरू कर दिया है। इस साल के पहले तीन महीनों में यग 6.1% की दर से आगे बढ़ी है। यह उस दौर से बेहद कम है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश की सत्ता संभाली थी।'