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एनएसजी मुद्दे को आगे बढ़ाना अनावश्यक और गलत सलाह थी: श्रीनिवासन

प्रसिद्ध वैज्ञानिक और परमाणु उर्जा आयोग (एईसी) के सदस्य एम आर श्रीनिवासन ने शनिवार को कहा कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के मुद्दे पर केंद्र का जोर देना अनावश्यक, अवांछित और गलत सलाह पर उठाया गया कदम था। शुक्रवार को भारत की 48 सदस्यीय समूह की सदस्यता हासिल करने की कई दिनों से जारी कोशिश नाकाम हो गई थी।
एनएसजी मुद्दे को आगे बढ़ाना अनावश्यक और गलत सलाह थी: श्रीनिवासन

वैज्ञानिक श्रीनिवासन ने कहा कि यदि इस बारे में परमाणु उर्जा आयोग (एईसी) से सलाह ली जाती तो वह सरकार को इससे बचने को कहता। परमाणु उर्जा विभाग (डीएई) के अधीन आने वाला एईसी देश में परमाणु उर्जा संबंधी गतिविधियां देखता है। एईसी के पूर्व प्रमुख श्रीनिवासन ने कहा कि एनएसजी की सदस्यता से भारत के परमाणु व्यापार पर कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि भारत ने रियेक्टरों और यूरेनियम की आपूर्ति के लिए दूसरों देशों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किया हुआ है। उन्होंने कहा, भारत ने एनएसजी में प्रवेश को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। यह बिल्कुल अनावश्यक था क्योंकि 2008 में मिली छूट से हम पहले ही परमाणु उन्नत देशों के साथ परमाणु व्यापार करने में सक्षम हो गए थे और हम रियेक्टर परियोजनाओं के लिए पहले ही रूस, फ्रांस एवं अमेरिका से समझौते कर चुके हैं। श्रीनिवासन ने कहा कि भारत ने कजाकिस्तान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के साथ यूरेनियम की खरीद के लिए समझौता भी किया हुआ है।

 

पद्मभूषण से सम्मानित वैज्ञानिक ने कहा कि एनएसजी सदस्य बनने में नाकामी का देश के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत के पास रियेक्टरों के डिजाइनिंग एवं निर्माण और ईंधन निर्माण, प्रसंस्करण वगैरह के लिए अपनी खुद की क्षमता है। उन्होंने कहा, हम महत्वपूर्ण देशों और यूरेनियम की आपूर्ति में सक्षम देशों के साथ पहले ही सहयोग कर रहे हैं। हमें खुद को शर्मिंदा कराने की जरूरत नहीं थी। बदकिस्मती से हमारे आत्मसम्मान को इससे (नाकामी) चोट पहुंची। 86 वर्षीय वैज्ञानिक ने कहा, अगर मामला पहले परमाणु उर्जा आयोग के पास आता, जिसका मैं अब भी सदस्य हूं, और अगर उन्होंने(सरकार) पूछा होता कि क्या हमें इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहिए तो मैं कहता कि यह मुद्दा न उठाएं। उन्होंने कहा, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि परमाणु उर्जा आयोग के पास यह मामला नहीं आया। है। इसे विदेश मंत्रालय का मामला माना गया, मुझे नहीं पता। उन्होंने कहा, कई दिनों तक (एनएसजी सदस्यता के लिए देश के कूटनीतिक जोर का) अनावश्यक नाटक चला।

 

भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम और दाबित भारी जल रियेक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले श्रीनिवासन ने कहा कि एनएसजी सदस्यता के कथित लाभों को लेकर कोई मूल्यांकन नहीं किया गया। उन्होंने कहा, क्या हमें इतनी कोशिशें करनी चाहिए थीं, समर्थन मांगने के लिए प्रधानमंत्री को इतने देशों का दौरा करना चाहिए था। विदेश कार्यालय में मूल्यांकन सही तरह से नहीं किया गया। मैं नाखुश हूं कि हमने इसे इतना महत्व दिया। श्रीनिवासन ने कहा कि समूह का सदस्य बनने को लेकर गैरजरूरी अपेक्षाएं पैदा की गईं और भारत सरकार के सर्वोच्च स्तर पर इतनी राजनीतिक पूंजी तथा प्रधानमंत्री को इस उद्देश्य के लिए तैनात किया गया। उन्होंने कहा, हमें इससे बिल्कुल बचना चाहिए था और हम इस शर्मिंदगी से बच सकते थे। चीन तथा दूसरे देशों के भारत की सदस्यता पर आपत्ति करने के साथ भारत को मिजाज भांप लेना चाहिए था। श्रीनिवासन ने साथ ही मीडिया द्वारा एनएसजी को एक प्रतिष्ठित समूह बताने पर भी सवाल किया। प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 45 सदस्यों का एनएसजी एक प्रतिष्ठित समूह कैसे हो सकता है। न्यूजीलैंड, आयरलैंड जैसे देश इसके सदस्य हैं। ये ऐसे सदस्य हैं जिनका किसी तरह का कोई परमाणु कार्यक्रम नहीं है।

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