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'माेदी काे असहमति के सुर भी सुनने चाहिए, अहंकार और अकुशलता से पहला कार्यकाल अच्छे से नहीं चला सकी सरकार'

पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी का मानना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को असहमति की आवाज...
'माेदी काे असहमति के सुर भी सुनने चाहिए, अहंकार और अकुशलता से पहला कार्यकाल अच्छे से नहीं चला सकी सरकार'

पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी का मानना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को असहमति की आवाज सुननी चाहिए और विपक्ष को समझाने  देश को अवगत कराने के लिए एक मंच के रूप में उपयोग करते हुए संसद में अक्सर बोलना चाहिए। वे सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानते थे। मुखर्जी के मुताबिक संसद में प्रधानमंत्री की उपस्थिति मात्र से इस संस्था के कामकाज पर बहुत फर्क पड़ता है।

दिवंगत मुखर्जी ने अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017’ में बातों का उल्लेख किया है। उन्होंने यह पुस्तक पिछले साल अपने निधन से पहले लिखी थी। रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक मंगलवार को बाजार में आई।

पुस्तक में उन्होंने कहा है, ‘‘चाहे जवाहलाल नेहरू हों, या फिर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी अथवा मनमोहन सिंह, इन सभी ने सदन के पटल पर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया।’’उनके अनुसार, ‘‘अपना दूसरा कार्यकाल संभाल रहे पीएम मोदी को अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और संसद में उपस्थिति बढ़ाते हुए एक नजर आने वाला नेतृत्व देना चाहिए ताकि वैसी परिस्थितियों से बचा सके जो हमने उनके पहले कार्यकाल में संसदीय संकट के रूप में देखा था।’’

मुखर्जी ने कहा कि मोदी को ‘‘असहमति की आवाज भी सुननी चाहिए और संसद में अक्सर बोलना चाहिए। विपक्ष को समझाने और देश को उसके बारे में अवगत कराने के लिए उन्हें इसका एक मंच के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान वह विपक्षी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ-साथ यूपीए के भी वरिष्ठ नेताओं के साथ लगातार संपर्क में रहते थे और जटिल मुद्दों का हल निकालते थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा काम सुचारू रूप से संसद चलाना था चाहे इसके लिए मुझे बैठकें करना हो या विपक्षी गठबंधन के नेताओं को समझाना हो। जब भी कभी जटिल मुद्दे सामने आए उसके समाधान के लिए मैं हर समय संसद में उपस्थित रहता था।’’

हालांकि, मुखर्जी ने इस किताब में नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान संसद को सुचारू से चलाने में विफलता को लेकर एनडीए सरकार की आलोचना की। उन्होंने लिखा है, ‘‘मैं सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानता हूं। विपक्ष भी इसके लिए जिम्मेवार था। उसने भी गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया।’’ इसमें मुखर्जी ने कहा कि उनका सदैव यह मानना रहा है कि संसद में व्यवधान सरकार से अधिक विपक्ष को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि व्यवधान करने वाला विपक्ष सरकार को घेरने का अपना नैतिक अधिकार खो देता है। उन्होंने कहा, ‘‘इससे सत्ताधारी दल को व्यवधान का हवाला देकर संसद सत्र को छोटा करने का लाभ मिल जाता है।’’

 

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