सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह फरमान गृह मंत्रालय के पास पहुंचा है कि देश की आर्थिक सुरक्षा के मद्देनजर विदेश सहयोग नियमन कानून (फॉरेन कान्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-एफसीआरए) के नए नियमों को 15 जून तक लागू कर दिया जाए। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने गृह सचिव एल.सी. गोयल को लिखा कि बिना किसी विलंब के एनजीओ को मिलने वाले विदेशी पैसे पर पर निगरानी रखने की प्रणाली विकसित हो जानी चाहिए।
केंद्र सरकार को आखिर एनजीओ को मिलने वाले विदेशी पैसे पर निगरानी रखने की प्रणाली में फेरबदल करने की इतनी हड़बड़ी क्यों है और आखिर वह इन संस्थाओं पर कमान कसकर क्या हासिल करना चाहती है, इस पर अलग से चर्चा हो सकता है। अभी यह तय है कि बड़े परिवर्तन होने है और वह भी सीधे प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय के नेतृत्व में। यह सब देश की आर्थिक सुरक्षा के नाम पर किया जा रहा है।
गृह मंत्रालय इस मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट के आधार पर काम कर रहा है। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही आईबी ने सिफारिशओं की एक लंबी चौड़ी फहरिस्त मंत्रालय को सौंपी थी। बताया जाता है कि इस सुझावों में यह भी शामिल है कि एनजीओ 48 घंटे के भीतर विदेशी पैसा का ब्यौरा सरकार को सौंपे। इसके साथ ही संस्था के पास एक वेबसाइट होनी चहिए जिसमें वह विदेशी पैसा मिलने के 48 घंटे के भीतर इसकी विस्तृत जानकारी डाले। इसमें किसने पैसा दिया है, किस काम के लिए पैसा मिला है और किसके साथ मिलकर वह इस पैसे को खर्च करने जा रहा है, यह सब बताना होगा। सिर्फ इतना ही नहीं पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट भी सार्वजनिक करनी होगी।
यानी हर कोने पर सरकारी नजर होनी चाहिए।
अब इस पहल के बारे में एनजीओ क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यह सामाजिक सुधार के लिए काम कर रही संस्थाओं को डराने के अलावा और कुछ नहीं है। उनका कहना है कि अभी भी जो विदेशी पैसा संस्थाओं को मिल रहा है, वह बैंक के जरिए ही आ रहा है और एक एक पैसे की जानकारी सरकार को है। मौजूदा कानून के तहत एक रुपया भी बिना सरकारी संज्ञान के किसी भी एनजीओ तक नहीं पहुंच सकता है। इसलिए ये सारी कोशिशें विरोध के स्वर को दबाने की कोशिश के तहत हो रही है।
इस बारे में इंसाफ संस्था के अनिल चौधरी ने आउटलुक को बताया कि अभी तक उन्होंने श बारे में खबर ही सुनी है, क्योंकि सरकार ने कोई सर्कुलर नहीं जारी किया है। वैसे मिली जानकारी के हिसाब से सरकार जो कदम उठा रही है वह एनजीओ क्षेत्र को डराने और बैठाने के लिए कर रही है। यह सरकार किसी भी तरह का कोई विरोध नहीं सुनना चाहती, इसलिए ये सारे चक्कर चला रही है। उन्होंने कहा कि पैसा मिलने के 48 घंटे में सरकार और वेबसाइट पर इसकी जानकारी देना तकरीबन असंभव है। बैंक से संस्था तक पैसा आने में ही कई दफा एक हफ्ते तक का समय मिलता है, ऐसे में यह परेशान करने की बात है और कुछ नहीं।
वैसे भी ग्रीन पीस और फोर्ड फाउंडेशन के खिलाफ कार्यवाई करने के बाद सरकार बाकी एनजीओ को यह स्पष्ट संकेत देना चाहती है कि अगर आप हमारे साथ नहीं तो फिर हम आपके साथ नहीं।