दिल्ली के लोधी एस्टेट स्थित बंगला खाली करने के नोटिस के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी दिल्ली से लखनऊ शिफ्ट हो सकती हैं। प्रियंका पार्टी की महासचिव होने के साथ-साथ यूपी की इंचार्ज भी हैं। लिहाजा उनका ये कदम बेहद सधी हुई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कोरोना संक्रमण के दौरान प्रियंका का यूपी में दौरा कम हो गया था। ऐसे में लखनऊ शिफ्ट होना राजनीतिक दृष्टि से भी अहम है।
कांग्रेस सूत्रों ने आउटलुक को बताया कि नेहरू-गांधी परिवार के भाई-बहन ने यूपी में पार्टी के कुछ सहयोगियों को संकेत दिया है कि वह एक महीने के भीतर लखनऊ आ सकते हैं।
दरअसल, केंद्र सरकार ने बुधवार को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से दिल्ली के लोधी एस्टेट वाला सरकारी बंगला खाली करने को कहा है। उन्हें इसके लिए 1 अगस्त, 2020 तक की मोहलत दी गई है। शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा एक महीने के भीतर सरकारी आवास खाली करने को कहा गया है।
डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एस्टेट्स की ओर से प्रियंका को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि तय वक्त के बाद भी बंगले में रहने पर किराया/जुर्माना देना होगा। पत्र में बंगला खाली कराने के पीछे एसपीजी सुरक्षा हटने को वजह बताया गया है। प्रियंका को एक महीने का नोटिस देकर बंगला खाली करने के लिए कहा गया है।
बता दें कि प्रियंका महासचिव बनाए जाने के बाद से यूपी में ज्यादा सक्रिय रही हैं। चाहे वो प्रवासी मजदूरों को ले जाने के लिए बसों के इंतजाम का मुद्दा हो या फिर सोनभद्र के किसानों के नरसंहार के बाद का आंदोलन।
कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को बंगला खाली करने को लेकर भेजे गए नोटिस को लेकर केंद्र के कदम की आलोचना करते हुए दावा किया कि यह उन्हें और पार्टी को डराने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि बंगला खाली कराने को लेकर पार्टी केंद्र पर हमला जारी रखेगी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि केंद्र इस कदम से प्रियंका और पार्टी को भाजपा के खिलाफ भारत-चीन संकट और कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण हुई आर्थिक तबाही पर हमला बोलने से नहीं रोक पाएगी।
कांग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी का एक वर्ग यह भी मानता है कि अगर पार्टी प्रियंका के लुटियंस दिल्ली बंगले को लेकर बड़ा मुद्दा बनाती है, तो "भाजपा इसे फायदे की तरह इस्तेमाल करेगी और नेहरू-गांधी परिवार के एक और सेंस ऑफ एंटायटलमेंट की तरह प्रोजेक्ट करेगी। पार्टी के सूत्रों ने कहा कि अगर पार्टी इस मुद्दे पर बीजेपी की आलोचना करती है तो वो भारत-चीन तनाव पर फोकस रखकर करेगी। इस सोच का एक इशारा तब मिला जब बुधवार को कई कांग्रेस नेताओं ने केंद्र पर निशाना साधा और इस बात पर जोर दिया कि सरकार चीन को भारत की सीमा से नहीं निकाल पाई लेकिन विपक्ष के नेताओं को बंगले से निकालने में ज्यादा रुचि रखती है।
कहा जा रहा है कि प्रियंका वैसा मुखर स्टैंड नहीं लेना चाहती जैसा पार्टी ने तब लिया था, जब नेहरू-गांधी परिवार का एसपीजी कवर केंद्र की तरफ से पिछले साल हटा लिया गया था। एक कांग्रेस नेता ने कहा, ''वह यूपी की समस्याओं पर फोकस करना चाहती हैं और दिखाना चाहती हैं कि बीजेपी की इस ओछी और प्रतिशोध वाली राजनीति से विचलित नहीं होंगी।''
बता दें कि पिछले कई महीनों से प्रियंका विभिन्न मुद्दों पर भाजपा पर आक्रामक रूप से हमला कर रही हैं। विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान केंद्र की आलोचना करने में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और सांसद राहुल गांधी संयमित रहे। हालांकि, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरूद्ध एकजुटता दिखाते हुए लखनऊ की सड़कों पर उतर गई थी। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जब 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई, तब से प्रियंका उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली यूपी सरकार की लगातार आलोचना कर रही हैं। मई में प्रियंका गांधी वाड्रा ने फंसे प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए एक हजार बसों का प्रस्ताव दिया था।
इस दौरान यूपी पुलिस ने विभिन्न आरोपों के मद्देनजर यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार 'लल्लू' और अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था जिसका प्रियंका ने तीखे हमले के साथ विरोध किया था। देश में लागू किए गए लॉकडाउन के विभिन्न चरणों के दौरान प्रियंका गांधी ने अपनी पार्टी द्वारा प्रदेश में किए जा रहे राहत प्रयासों की देखरेख कर रही थीं। इस दौरान प्रवासियों और गरीबों को मुफ्त भोजन व अन्य चीजें मुहैया कराई गई। साथ ही कांग्रेस महासचिव ने राज्य सरकार को घेरने के लिए कई मुद्दों का सहारा लिया। राज्य में सरकारी स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति में बड़े पैमाने पर घोटाले का आरोप, छोटे वाणिज्यिक गतिविधियों में शामिल विभिन्न समुदायों द्वारा आर्थिक कठिनाइयाें का सामना और यूपी की गरीब जनता पर ईंधन की बढ़ रही कीमतों के बोझ को लेकर राज्य सरकार पर जमकर हमलावर रहीं।
जबकि इससे इतर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रहीं। शायद प्रियंका ने योगी सरकार के खिलाफ मुख्य राजनीतिक विपक्ष के रूप में खुद को और कांग्रेस पार्टी को जगह देने की कोशिश की। हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों ने इस बात की चेतावनी दी है कि केवल भाजपा और योगी आदित्यनाथ पर हमला कर प्रियंका गांधी राज्य में पार्टी के पुनर्निर्माण की उम्मीद नहीं कर सकती हैं। राज्य में पार्टी तीन दशकों से सत्ता से दूर है। राज्य के एक पूर्व कांग्रेस सांसद आउटलुक को बताते हैं, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि वो महत्वपूर्ण मुद्दों को उठा रही हैं और प्रवासी संकट पर उनके रुख ने आम नागरिकों का साथ दिया है और अराजकता पर प्रहार किया है। लेकिन, उन्हें राज्य में कैडर निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है ताकि वह अपने संदेश को ब्लॉक और गांव तक पहुंचा सकें। यह अभी भी एक चुनौती है और वह अपने राजनीतिक आधार को यूपी में पूरे समय के लिए स्थापित कर इसे बेहतर तरीके से संबोधित कर सकती हैं।"
यूपी विधानसभा चुनाव को अभी 16 महीने बाकी हैं। राहुल गांधी ने अपनी बहन के लिए पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला था, जब 2019 की शुरुआत में प्रियंका को यूपी के प्रभारी महासचिव के रूप में शामिल किया गया था। हालांकि, उन्होंने इस दौरान पार्टी में नई ऊर्जा भरने की कोशिश की है। इससे पहले कि कांग्रेस राज्य में खुद के पुनरुत्थान का दावा करे, उन्हें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। पार्टी के लिए प्रियंका का लखनऊ जाना और अधिकांश समय राजधानी दिल्ली में बिताना पार्टी को फिर से जीवित करने में बल देगा।