भारत और फ्रांस के बीच जितनी भी घनिष्टता का दावा सरकारें करें लेकिन दो बड़ी परियोजनाओं का मामला अब भी अटका हुआ है। गणतंत्र दिवस पर फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के आने से यह कयास लगाया जा रहा था कि राफैल फाइटर जेट विमान की खरीद का सालों से अटका सौदे पर हस्ताक्षर हो जाएगा। और साथ ही जैतापुर में फ्रांसिसी कंपनी एरेवा द्वारा लगाए जा रहे देश के सबसे बड़े परमाणु सयंत्र को लेकर भी दुविधा पूरी खत्म नहीं हुई है। राफैल की खरीद को लेकर अभी सहमति प्रत्र पर ही हस्ताक्षर हुए हैं। राफैल फाइटर जेट की कीमत को लेकर अभी खींचतान जारी है।
अंतर्रदेशीय समझौते (इंटर गवर्मेंटल एग्रीमेंट-आईजीए) अभी भी पूरा नहीं हुआ है क्योंकि कीमतों को लेकर सहमति नहीं बनी है। सहमति पत्र पर हस्ताक्षर इसलिए किए गए हैं ताकि यह बताया जा सके कि पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान राफैल समझौते को लेकर जो घोषणा की थी, उसे लेकर कुछ प्रगति हुई है। सहमति पत्र में इस बात का उल्लेख किया गया है कि कुछ वित्तीय मुद्दे अभी लंबित है जिन्हें जल्द सुलझा लिया जाएगा। इस तरह से पिछले साल पेरिस में 36 राफैल विमान खरीदने के समझौते को आगे बढ़ाने के उपक्रम के तौर पर सहमति पत्र की बात कही गई, लेकिन कीमत को लेकर अटका मामला, अभी अटका ही हआ है। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक एक राफैल फाइटर जेट विमान की कीमत 740 करोड़ रुपये है और कोशिश हो रही है कि इसकी कीमत को कम किया जाए। इसके अलावा भारतीय पक्ष ने देसीय आवश्यकताओं के अनुसार कुछ फेर-बदल करने की मांग भी की थी और इससे भी सौदे में देर लग रही थी। ऐसी ही दुविधा में जैतापुर परमाणु संयत्र में फंसा हुआ है, संयंत्रों की दक्षता और तकनीकी हस्ताक्षर को लेकर खींचतान चल रही है।
भारत-फ्रांस के रिश्तों में आई गरमाहट और लंबित सौदों पर मुहर लगाने की कवायद कमोबेश ऐसी ही है, जैसे पिछले साल अमेरकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के बाद माहौल बना था। लेकिन वर्ष 2008 में हुए भारत-अमेरिकी परमाणु करार पर अटकी गाड़ी के आगे बढ़ने की उम्मीद ओबामा की भारत यात्रा के दौरान लगाई जरूर गई थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कमोबेश ऐसा ही राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की भारत यात्रा के दौरान दिखाई दे रहा है।