राफेल लड़ाकू विमान समझौते को लेकर चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संबंध में लिए गए ‘निर्णय की प्रक्रिया’ की जानकारी मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अदालत ने केंद्र से सीलबंद लिफाफे में उस फैसले की प्रक्रिया की पूरी जानकारी मांगी है, जिसके तहत राफेल की खरीद को लेकर फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन से समझौता हुआ था।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एस.के. कौल और के.एम. जोसफ की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि राफेल समझौते से संबंधित जानकारी में उसने मांगी है, उसमें तकनीकी और कीमतों की जानकारी नहीं मांगी गई है। अब मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में होगी।
इस मामले में अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है, इसलिए इस तरह की याचिका को खारिज कर देना चाहिए। इस पर खंडपीठ ने कहा, “फिलहाल हम कोई नोटिस नहीं जारी कर रहे हैं। हम सिर्फ बंद लिफाफे में राफेल समझौते में खरीद प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी मांग रहे हैं।”
वकील और याचिकाकर्ताओं में एक मनोहर लाल शर्मा ने कहा कि राफेल समझौता कानून का प्रत्यक्ष उल्लंघन है और यह एक भ्रष्टाचार है। यह समझौता विएना समझौता का उल्लंघन है और मामले में जो भी आरोपी है उसे सजा मिलनी चाहिए। एक अन्य याचिकाकर्ता विनीत ढांडा ने अदालत में कहा कि इस समझौते में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई और यह बेहद ही स्वैच्छिक तरीके से की गई। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका तीन लोगों ने दायर की थी, लेकिन अंतिम समय में कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने अपना नाम वापस ले लिया।
विवाद के बीच रक्षा मंत्री फ्रांस रवाना
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार को फ्रांस यात्रा पर रवाना हो रही हैं। वे अपने फ्रांसीसी समकक्ष फ्लोरेंस पार्ली के साथ दोनों देशों के बीच सामरिक संबंधों को मजबूत बनाने के तौर-तरीकों और परस्पर हित के मुद्दों पर चर्चा करेंगी।
केंद्र पर कांग्रेस हमलावर
कांग्रेस इस समझौते में बड़ी गड़बड़ी का आरोप लगा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार 1670 करोड़ रुपये प्रति राफेल की दर से यह विमान खरीद रही है। जबकि यूपीए के समय इसकी कीमत 526 करोड़ रुपये तय की गई थी। कांग्रेस का यह भी कहना है कि पहले 126 राफेल की खरीद की बात की गई थी, जिसे घटाकर 36 कर दिया गया।