Advertisement

याकूब पर दो जजों में नहीं बन पायी सहमति

1993 बम धमाकों में मिली फांसी की सजा पर रोक के लिए दायर याकूब मेमन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय जजों की एक पीठ ने सुनवाई की। दोनें पक्षों को सुनने के बाद पीठ के दोनों सदस्य जज किसी एक फैसले पर एकमत नहीं हो पाए। इस वजह से पीठ के दोनों जजों ने अलग अलग निर्णय सुनाया और मामले को मुख्य न्यायाधीश को सुनवाई के लिए हस्तांतरित किया। मुख्य न्यायाधीश ने मामले को न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, प्रफुल्ल सी. पंत और अमिताव रॉय की पीठ को भेजा है जो 29 जुलाई को इसपर सुनवाई करेंगे।
याकूब पर दो जजों में नहीं बन पायी सहमति

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने मंगलवार को बम विस्फोट मामले में मौत की सजा पाए एकमात्र दोषी याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन की उस याचिका पर खंडित निर्णय दिया जिसमें उसने 30 जुलाई को निर्धारित अपनी फांसी पर रोक लगाने का आग्रह किया था। फैसले पर एकमत न होने की स्थिति में पीठ ने मामला प्रधान न्यायाधीश को भेज दिया।

क्या कहा न्यायमूर्ति एआर दवे ने 

पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एआर दवे ने याकूब की याचिका को खारिज कर दिया, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने 30 जुलाई को फांसी दिए जाने के लिए 30 अप्रैल को जारी डेथ वारंट पर रोक लगाने का आदेश दिया।न्यायमूर्ति दवे ने मेमन की याचिका खारिज करते हुए कहा कि महाराष्ट के राज्यपाल को अब याकूब की सजा पर अमल के लिये निर्धारित तारीख से पहले ही उसकी दया याचिका का निबटारा करना होगा। न्यायमूर्ति दवे ने पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति कुरियन से असहमति व्यक्त की।

फैसले में मनु स्मृति का उद्धरण 

न्यायमूर्ति दवे ने अपने फैसले में मनु स्मृति के एक श्लोक को उद करते हुये कहा, मुझे खेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा। प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिये।

क्या रही न्यायमूर्ति कुरियन की राय

वहीं पीठ के दूसरे सदस्य न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि वह न्यायमूर्ति दवे से सहमत होने में असमर्थता व्यक्त करते हैं क्योंकि मेमन की सुधारात्मक याचिका पर फैसला करते समय प्रक्रियात्मक उल्लंघन हुआ है। न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि वह न्यायमूर्ति दवे से सहमत होने में असमर्थता व्यक्त करते हैं क्योंकि मेमन की सुधारात्मक याचिका पर फैसला करते समय प्रक्रियात्मक उल्लंघन हुआ है। न्यामयूर्ति कुरियन ने कहा कि एक बार जब यह पता चल गया है कि सुधारात्मक याचिका पर विचार करते समय कानून में प्रतिपादित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है और वह भी ऐसी स्थिति में जब यह एक व्यक्ति की जिंदगी से संबंधित हो तो इस दोष को दूर करना होगा।

न्यायमूर्ति कुरियन ने मेमन की सुधारात्मक याचिका पर नये सिरे से सुनवाई पर जोर देते हुये कहा कि सुधारात्मक याचिका पर इस न्यायालय द्वारा प्रतिपादित नियमों के अनुसार फैसला नहीं किया गया था। इस दोष को दूर करने की आवश्यकता है और ऐसा नहीं होने पर यह संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन होगा। उन्होंने आगे ने कहा कि इस मामले पर गौर करते समय इसमे निहित तकनीकी बिन्दु न्याय के मार्ग में नहीं आने चाहिए क्योंकि संविधान के तहत इस न्यायालय को एक व्यक्ति की जिंदगी की रक्षा करनी है।

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad