आधार नहीं तो राशन कार्ड नहीं। आधार नहीं तो स्कूल में दाखिला नहीं। आधार नहीं तो छात्रवृति नहीं। आधार नहीं बैंक खाता नहीं। इस तरह से आधार आम जनता को बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों से वंचित करने का एक हथियार बन गया है। यह सब सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2015 को आदेश में साफ कहा था कि आधार कार्ड का इस्तेमाल सिर्फ सार्जनिक वितरण प्रणाली और गैस सब्सिडी के वितरण में किया जा सकता है। किसी भी और चीज में नहीं। राशन और गैस सब्सिडी में भी इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया था। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की हो रही अवहेलना के खिलाफ एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी हो रही है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डालने वाले संगठनों और व्यक्तियों ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि आम नागरिकों को आधार न होने पर बुनियादी सुविधाओं से खुलेआम वंचित किया जा रहा है। आज दिल्ली में इस संबंध में एक संवाददाता सम्मेलन को कानूनविद उषा रमानाथन, मजदूर किसान संघर्ष-- समिति की अरुणा राय, पर्यावरणविद गोपाल कृषणन, भोजन के अधिकार पर संघर्षरत अंजलि और अर्थशास्त्री रितीका खेरा ने आधार को आम नागरिकों के बुनियादी अधिकारों और निजता को छीनने वाला बताया। उन्होंने उदाहरण के साथ बताया कि किस तरह से निजी कंपनियों को फायदे पहुंचाने के लिए इतनी बड़ी कवायद की जा रही है, जिससे नागरिकों को इतनी परेशानी हो रही है।
दिल्ली के नरेला इलाके में रहने वाली तृतीय लिंगी (ट्रांसजेंडर) एमी ने बताया कि उनका आधार कार्ड बनाने के लिए अधिकारी तैयार नहीं हुए क्योंकि यह सिर्फ मर्द या औरत के लिए बन सकता है, हम लोगों के लिए नहीं। आधार नहीं है तो मेरा बैंक खाता नहीं खुला। हालत यह है कि मेरे पास आधार कार्ड न होने की वजह से मेरा लाइसेंस तक नहीं बन पाया। सब जगह लोग यही कहते हैं, तुम तो हिजड़ा हो, तुम्हें क्यों चाहिए।
जगदम्बा कैम्प की लक्ष्मी ने बताया कि उनका बेटा आठ साल का है और उसका आधार कार्ड नहीं है इसलिए उसका नाम राशन कार्ड में शामिल नहीं किया जा रहा।
जगदम्बा कैम्प की ही मीरा ने बताया कि
दो साल पहले उनके पति का निधन हुआ और सारे कागजात होने के बावजूद उन्हें पेंशन नहीं दी जा रही। वजह उनका आधार कार्ड नहीं है। वह कई बार आधार के लिए आवेदन कर चुकी है। लेकिन विफल रही हैं।