सूत्र बताते हैं कि एलोपैथिक और चीनी हर्बल दवा कंपनियों के दबाव के कारण देसी दवाओं के मानकीकरण के काम को ठप कर दिया गया। देसी दवा कंपनियों को जहां मानकीकरण न होने से अपने हिसाब से दवाएं बनाने और मनमानी करने का मौका मिल रहा है, वहीं ऐलोपैथिक और चीनी हर्बल दवा कंपनियां नहीं चाहती हैं कि आयुष की दवाओं का कारोबार बढ़े।
प्रधानमंत्री मोदी ने आयुष सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए अलग से एक मंत्रालय का गठन किया था। उनका मानना था कि अलग मंत्रालय होने से आयुष की दवाओं का स्तर बढ़ेगा, वह देश-विदेश में लोकप्रिय होंगी और उन्हें चीन की हर्बल दवाओं से आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। वह खासकर आयुर्वेद को विश्व स्तर की चिकित्सा पद्धति बनाना चाह रहे थे। वर्तमान सरकार से भी पहले 2010 में आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी की दवाओं का स्टैंडर्ड तय करने के लिए फार्माकोपियल कमिशन फॉर इंडियन मेडिसिन्स का गठन किया गया था। 2014 में इस कमिशन के तहत होम्योपैथी को भी लाया गया। इसके बाद चारों सिस्टम की दवाओं के मानक तय करने के लिए चार कमेटियों का गठन किया गया।
इस कमिशन के तहत काम कर रही आयुर्वेदिक फार्माकोपिया कमेटी ने 2011 तक आयुर्वेद की 600 सिंगल दवाओं के मानक तय कराकर आयुर्वेदिक फार्माकोपिया का प्रकाशन कराया। साथ ही च्यवनप्राश जैसे एक से ज्यादा इनग्रीडिएंट्स वाली 150 आयुर्वेदिक औषधियों के स्टैंडर्ड तय किए। इसके बाद उसने 100 और दवाओं तथा 50 अर्क के मानक तय किए। लेकिन तब से चार साल से ज्यादा समय होने के बावजूद आयुष मंत्रालय ने इन मानकों का प्रकाशन नहीं कराया है और न ही नए मानक तय किए हैं। इसके कारण आयुर्वेदिक दवा बनाने वाले इन मानकों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं। तकरीबन यही हाल होम्योपैथी, सिद्ध और यूनानी दवाओं के मामले में है।