सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार संसद के अगले सत्र में इस मुद्दे पर बहस कराने की तैयारी में है। वहीं सरकार इससे पहले एक सर्वदलीय बैठक भी बुला सकती है, जिसमें चुनाव आयोग भी शामिल होगा। सरकार की मंशा है कि फीडबैक के अनुसार चूंकि सामान्य जनमानस लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव साथ कराने के पक्ष में है, दूसरे दल इस मुद्दे पर शायद ही प्रखर विरोध कर सकें। पीएम मोदी ने भी पिछले दिनों संकेत दिया था कि वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ कराने की दिशा में आम सहमति और राजनीतिक बहस चाहते हैं। कांग्रेस कह चुकी है कि वह इस मुद्दे पर बात को तैयार है।
सरकार की वेबसाइट पर मांगी गई राय में अधिकतर लोगों ने माना कि इससे न सिर्फ पैसे और वक्त की बचत होगी बल्कि राजनीतिक रूप से भी देश में स्थिरता आएगी। संसदीय कमेेटी ने कुछ महीने पहले अपने प्रस्ताव में कहा था कि अगले कुछ सालों तक अलग-अलग समय पर होने वाले विधानसभा चुनावों को एक क्रम बनाकर आयोजित किया जाए तो संभव है कि लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ हों। लेकिन अब तक इस मामले में कोई पहल नहीं होने के कारण इस कैलेंडर को पूरा करना संभव नहीं दिखता।
कमेेटी ने रिपोर्ट में कहा था कि अगले कुछ सालों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव का क्रमवार टाइम टेबल बनाया जाए। कमेेटी ने कहा था 2016 के अंत में उन सभी राज्यों के भी चुनाव करा दिए जाएं, जहां एक साल के अंदर चुनाव होने हैं। फिर जब 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे तब उसके एक साल बाद और छह महीने पहले होने वाले सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव उसी आम चुनाव के साथ हो जाए।
एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के विरोध में अधिकतर क्षेत्रीय दल ही हैं। संसदीय कमेेटी के सामने भी टीएसमी, डीएमके, एनसीपी और जेडीयू जैसे दलों ने इस प्रस्ताव को अव्यावहारिक बताया था। दरअसल संसदीय कमेेटी पहले ही पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने को लेकर एक पूरा रोडमैप दे चुकी है। हालांकि कमेेटी ने माना था कि देश में इसे लागू करना बहुत कठिन काम होगा। संसदीय कमेेटी ने कहा कि लगातार चुनाव होने से आचार संहिता प्रभावित होती है जिससे विकास का कार्य प्रभावित होता है। नीति बनाने के काम में देरी होती है। यही तर्क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दिया है।