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जीने की जिद : सेक्‍स वर्कर से हेल्‍थ डायरेक्‍टर तक, चाचा ने किया था शारिरिक शोषण-मां ने 100 रूपए दे घर से निकाला था

"सरकारी सेवा में आने वाली देश की पहली किन्‍नर हेल्‍थ कोआर्डिनेटर, अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर भी किया...
जीने की जिद : सेक्‍स वर्कर से हेल्‍थ डायरेक्‍टर तक, चाचा ने किया था शारिरिक शोषण-मां ने 100 रूपए दे घर से निकाला था

"सरकारी सेवा में आने वाली देश की पहली किन्‍नर हेल्‍थ कोआर्डिनेटर, अंतर्राष्‍ट्रीय मंचों पर भी किया काम, सेक्‍स वर्कर और बार वाला का काम कर जामिया मिल्लिया इस्लामिया से किया स्‍नातक और सिंबोसिस पुणे से मैनेजमेंट"

नन्‍ही सी मासूम को नहीं मालूम था कि उसको लेकर मां-बाप में झगड़े क्‍यों होते रहते हैं। जब तक कुछ समझ पाती मां-बाप के रास्‍ते अलग हो गये थे। तलाक हो गया, उसी की वजह से। उस समय वह तीसरी-चौथी कक्षा में ही पढ़ रही थी। आज सामने थी 38 साल की अमृता सोनी। किसी बॉडी बिल्‍डर की तरह की कद काठी। हकीकत में उससे कहीं बेहिसाब ज्‍यादा फौलादी जिगर की मालिक। जिंदगी जीने की जिद ने पता नहीं कितने खतरानाक मोड़ से उसे घुमाया। इतने मोड़ कि सामान्‍य आदमी कई बार जिंदगी को अलबिदा कह चुका होता।13 लोगों के सामूहिक दुष्‍कर्म से लेकर एचआइवी पीड़‍ित होने का दर्द भी झेला। खाने को पैसे नहीं थे तो सड़क पर गिरे पाव से भूख मिटाई, सेक्‍स वर्कर का काम कर मैनेजमेंट किया। देश की पहली महिला किन्‍नर अधिकारी, बहुत सारे खिताब के साथ हेल्‍थ डायरेक्‍टर तक का सफर उसकी झोली में है। आज एक मुकाम पर है जो बहुतों के लिए एक सपना हो सकता है। नर न नारी, हम बात कर रहे हैं समाज में पूरी तरह उपेक्षित थर्ड जेंडर, अमृता सोनी की।

गठीला बदन, गेहुआं रंग पीछे छोटे से जूड़ा नुमा लपेटी हुई चोटी। अपने सवालों से मैं उसे कुरेदना नहीं चाहता था। जाने कितनी बार इस तरह जख्‍मी कर देने वाले सवालों से उसे गुजरना पड़ा होगा। जब मैने उसके बारे में जानने की कोशिश की तो थोड़ी सी चुप्‍पी के बाद धड़धड़ाते हुए फ्लैश बैक में चली गई और रिकार्डेड कैसेट की तरह बोलती रही। दिन, महीना, तारीख सब जुबान पर। बोलती है, महाराष्‍ट्र के शोलापुर में 14 सितंबर 1983 को एक कैथोलिक परिवार में उसका जन्‍म हुआ था। पिता अधिकारी थे और मां सरकारी अस्‍पताल में हेड मेट्रन। बड़े प्‍यार से मां-बाप ने पॉल जेवियर ( जीवन के सफर में अमृता अल्‍पेश सोनी, अमृता विकास सिंह ने लेकर अब सिर्फ अमृता सोनी है) नाम रखा था। शोलापुर में ही संतजेवियर से दसवीं तक की पढ़ाई की। बताती हैं कि प्रारंभ से ही पहचान की लड़ाई लड़नी पड़ी। किन्‍नर होने के कारण पिता ने कभी पसंद नहीं किया। इसी वजह से उनके बीच का विवाद तलाक के साथ खत्‍म हुआ। मेरी उम्र जब कोई दस साल की हुई तो कमर में लचक आने लगी। लोग मामू, छक्‍का, हिजड़ा, बाहला, गुड़ आदि संबोधन से पुकारने लगे। सिर्फ मां का साथ रहा रहा। कक्षा छह-सात में इंटरनेशनल स्‍वीमिंग प्‍लेयर रही। 15 साल की उम्र में जब दसवीं पास की तो मां ने माहौल बदलने और चिकित्‍सा के लिए चाचा के पास दिल्‍ली भेज दिया। मेडिकल ट्रीटमेंट हुआ, हार्मोनल चेक के बाद डॉक्‍टरों ने हाथ खडे कर दिये। अमृता बोलती जा रही है, उसी दौरान उसने दिल्‍ली के सात सितारा होटल में लाइव गिटार बजाने लगी। एक्‍समस के मौके पर घर लौटने की तैयारी थी। चाचा ने ही उसका शारीरिक शोषण किया। मां को मैं इसकी शिकायत करती उसके पहले ही खुद को बचाने के लिए चाचा ने मेरे चाल-चरित्र को लेकर मां के कान भर दिये। अपने जूड़े के बाल खोल बायें कंधे पर फैला अपने हाथ फेरते हुए फिर शुरू होती है, मैं घर पहुंची। मां नाराज थी। 16 वर्ष की मेरी उम्र थी। मां ने सौ रुपये पकड़ाये और घर से जाने को कहा। पैंसेंजर ट्रेन पकड़कर सोलापुर से पुणे पहुंची। शाम तक सौ रुपये खत्‍म हो चुके थे। तब पेट के भूख की कीमत समझ में आयी। स्‍टेशन के बाहर एक व्‍यक्ति बड़ा पाव खा रहा था। एक पाव गिरा तो उठाकर भूख मिटाई। इसी बीच सामने से एक सुन्‍दर सी किन्‍नर आती दिखी। नगमा नाम था उसका। घर ले गई। आसरा दिया। निहायत अकेली थी, वापस लौटने का कोई ठिकाना नहीं था। अनुष्‍ठान के साथ अपनी जमात में शामिल किया और पॉल जेवियर के बदले नमृता का जन्‍म हो चुका था। ढोलक, तबले के साथ घुंघरू के झनकार मिलाने, बधाई गीत गाने की तालीम मिली। बधाई के लिए जाना शुरू किया। इसी बीच एक अग्रवाल महाशय का साथ मिला। कहा शिक्षा पूरी करो तो शायद परिवार स्‍वीकार कर ले। उन्‍हीं की मदद से इंदिरा गांधी खुला विवि से 12 वीं पास की। नगमा का सिर से हाथ हट गया था।

18-19 साल की उम्र रही होगी दिल्‍ली आ गई। कोई सहारा नहीं था। मदर टेरेसा अस्‍पताल में बेंच पर सोती, एक कप चाय के लिए 35-40 घड़ा पानी भरना पड़ता। अपने बालों को दूसरे कंधे पर झटकते हुए कहती है, पेट की भूख बड़ी गंदी होती है। 20-20 रुपये में खुद को बेचना पड़ता था। अस्‍पताल में विरोध होने लगा तो किराये पर एक कमरा ले लिया। फिर एक बिजनेस मैन जिंदगी में आया उसने कपड़े दिये, घर का इंतजाम किया। किन्‍नरों को कोई किराये पर घर नहीं देता है। खुद के खर्च के लिए पीसीएल इंटरनेशनल कॉल सेंटर में काम शुरू किया। ट्रेनी से ट्रेनर की भूमिका निभाई। चार साल काम करने के दौरान ही जामिया मिलिया से स्‍नातक किया। कुछ दोस्‍तों ने कहा एमबीए कर लो तो और बेहतर पद मिल जायेगा। सिंबोसिस, पुणे से मैनेजमेंट के लिए सालाना चार लाख रुपये की जरूरत थी, कहां से आता। तब मुंबई में चार साल तक बार डांसर और सेक्‍स वर्कर के रूप में काम किया। मुंबई-पुणे लगभग रोज का सफर था। एचआर, मार्केटिंग में एमबीए के बाद मध्‍य प्रदेश के अल्‍पेश से मेरी नजदीकियां बढ़ीं। घर से भागे हुए थे मैंने सपोर्ट किया था। शादी कर ली मगर सिलसिला सात साल से आगे नहीं चला। अल्‍पेश बहाना बनाकर अलग हो गया।

अमृता लंबी सांस खींचती है, कंधे पर बाल फैलाती है फिर आगे कहती है मुंबई के कल्‍याण में बार डांसर थी उसी दौरान बांर से मुझे उठा 13 लोगों ने सामूहिक दुष्‍कर्म किया। उसी के बाद मैं एचआइवी पॉजिटिव हो गई। ... दवा अभी भी चल रही है। एमबीए पूरा हो गया मगर किन्‍नर होने के कारण जॉब नहीं मिला। ट्रेन और ट्रैफिक सिग्‍नल पर मांगती थी। उसके बाद कोल्‍हापुर में पहचान प्रोजेक्‍ट के तहत कंडोम देने वाले कर्मी के रूप में मुझे काम मिल गया। कंप्‍यूटर आता था। मॉनीटरिंग इवोल्‍युशन अफसर बनी फिर काउंसिलर बन गई। एक साल के भीतर जिला प्रोग्राम मैनेजर के पद तक पहुंचने के बाद काम छोड़ दिया। फिर यूएनडीपी के अधीन पाथ फाइंडर इंटरनेशनल के साथ कंसल्‍टेंट के रूप में काम शुरू किया। ट्रांस जेंडर मैपिंग आदि का काम किया। यहां भी एक साल काम किया। वर्ष 2013 में छत्‍तीसगढ़ में हिंदुस्‍तान लेटेक्‍स फैमिली प्‍लानिंग प्रमोशन ट्रस्‍ट में एडवोकेसी अफसर, छत्‍तीसगढ़ के रूप में ज्‍वाइन किया। देश में पहली किन्‍नर एडवोकेसी अफसर थी। जहां मेरी भूमिका एचआइवी पी‍ड़‍ित के साथ भेदभाव को कम करना, सरकार की नीति बदलवाना, मौजूदा कानून को लागू कराना आदि था। 2013 के अंत में चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब में एडवाकेसी अफसर बनी। 2014 में सुप्रीम कोर्ट का किन्‍नरों के मामले में माइल स्‍टोन जजमेंट आया। तब छत्‍तीसगढ़ में एड्स कंट्रोल सोसाइटी में नोडल अफसर बनाया गया। देश की पहली किन्‍नर बनी जिसे सरकारी अधिकारी बनाया गया। दो साल काम किया। के बाद 2014 में इंटरनेशनल ट्रांस हेल्‍थ कॉफ्रेंस फेलेडेल्फिया ( अमेरिका) में इंडिया को रिप्रेजेंट किया। ट्रांस जेंडर पर रिसर्च पेपर सबमिट किया। इसके बाद से इंटरनेशनल कॉफ्रेंस में शामिल होती रही। सिर के बाल को पीछे झटकते हुए जिंदगी के बीते हुए पन्‍ने पलटते हुए कहती हैं नवंबर 2015 में एनसीपीआइ (नेशनल कॉलिशन ऑफ पीपुल्‍स लिविंग विथ एचआइवी इन इंडिया) में स्‍टेट प्रोग्रामर के रूप में ज्‍वाइन किया। यह विहान का प्रोजेक्‍ट था। 2017 में अर्बन ट्रीज चेन्‍न्‍ई ने पावरफुल वुमेन ऑफ इंडिया से सम्‍मानित किया। 2015 में बिहार आई। 2016 में एक अनाथ बच्‍चे अर्जुन को गोद लिया। अभी वह 17 साल का हो चुका है।

2018-19 के दौरान बिहार, झारखण्‍ड, बंगाल, सिक्किम में स्‍टेट एड्स कंट्रोल में टेक्निकल सपोर्ट यूनिट फॉर केयर एंड सपोर्ट ट्रीटमेंट अंडर बिहार प्रोजेक्‍ट रीजनल मैनेजर कें रूप में काम किया। बीच में 2016 में पटना सचिवालय में काम करने वाले विकास सिंह से निकटता बढ़ी। मार्च 2019 में बखोरापुर मंदिर में शादी कर ली। जिंदगी बेहतर चल रही थी। शादी के कुछ माह ही बाद विकास का इगो हर्ट होने लगा कि वह क्‍लर्क है और मैं मैनेजर। शादी बचाने को मैने नौकरी छोड़ दी। पटना में सड़क किनारे बड़ा पाव आदि फास्‍टफूड का काम शुरू किया। इसी दौरान बोलो जिंदगी के कुकिंग कंपिटिशन में किन्‍नर के रूप में पहली बार मल्लिका ए जायका बनी। विकास ने कहा शादी होती तो 25 लाख रुपये और गाड़ी दहेज में मिलते। मैंने दहेज से इन्‍कार किया। 11 नवंबर 2019 में उसने शादी स्‍वीकार न करने का निर्णय किया। हालांकि मैंने उसे समझाया और सितंबर 2019 में ट्राई इंडिया में हेल्‍ड डायरेक्‍टर के पद पर ज्‍वाइन किया। ताकि विकास की मांग पूरी कर सकूं। लोन लेकर उसे दे सकूं। मगर वह नहीं माना और मिलना बंद कर दिया। इसके विरोध में महिला आयोग में दिसंबर 2019 में एक केस फाइल किया ताकि शादी स्‍वीकार करे। अभी एड्स कंट्रोल सोसाइटी झारखण्‍ड में 24 जिलों में ट्रेनिंग पार्टनर की भूमिका में हूं। बिहार स्‍टेट लीगल सर्विसेज ऑथोरिटी के साथ ट्रेनर कंसल्‍टेंट के रूप में भी काम कर रही हूं। यूथ मोटिवेटर हैं, यू ट्यूब पर 12 लाख फॉलोअर्स हैं। बिहार पीपुल्‍स लीविंग विद एचआइवी पॉजिटिव नेटवर्क की उपाध्‍यक्ष हैं। हाल में उन्‍हें लोक अदालत का सदस्‍य बनाया गया, रांची में उन्‍होंने मामलों की सुनवाई भी की। जिस बच्‍चे अर्जुन को गोद लिया था उसकी मां छठ पूजा करती थी। उसके कहने पर चार साल से छठ पूजा कर रही हूं। उनके फूल टीशर्ट के ऊपर चढ़े बांह से दोनों हाथों में टैटू झांक रहे थे। टैटू का राज उन्‍होंने ही खोला। दायें हाथ का टैटू विकास के लिए वेलेंटाइन गिफ्ट था। जब अल्‍पेश से ब्रेकअप हुआ, बायें हाथ में दर्ज कराया 'लव इज पेन'। यही यही उसकी जिंदगी का फलसफा है खुद से प्रेम और दर्द।

ट्राई इंडिया अमृता जहां रीजनल हेल्‍थ डायरेक्‍टर के रूप में काम करती हैं के सचिव उत्‍पल दत्‍त कहते हैं कि ये मेरी कर्मी कम बहन ज्‍यादा हैं। काम के प्रति जुनून और समर्पण के कारण मैं इनके काम से बहुत प्रभावित था। जब ये बड़े संगठन में थीं मैं इनसे काम मांगने गया था। साथ में काम करना चाहता था। ट्रांस जेंडर के प्रोजेक्‍ट को लेकर था कि समाज ने हमें बहुत कुछ दिया हैं इनके लिए कुछ करना चाहिए।

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