सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केन्द्र को निर्देश दिया कि कुष्ठ रोगियों को दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी करने पर विचार किया जाये ताकि वे आरक्षण और दूसरी कल्णणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर सकें।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने कुष्ट रोग के उन्मूलन और ऐसे रोगियों के पुनर्वास के बारे में केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को अनेक निर्देश दिये हैं।
पीठ ने कहा कि निजी और सरकारी अस्पतालों के मेडिकल स्टाफ को संवेदनशील बनाया जाये ताकि कुष्ठ रोगियों को किसी प्रकार के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े। इसके साथ ही सरकार को कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता अभियान शुरू करने का निर्देश भी दिया गया है ताकि कुष्ठरोगी अलग थलग नहीं हों और वे भी सामान्य वैवाहिक जीवन गुजार सकें।
न्यायालय ने केन्द्र और राज्य सरकारों को नियम तैयार करने का निर्देश दिया है ताकि कुष्ठरोग से प्रभावित परिवारों के बच्चों के साथ निजी और सरकारी स्कूलों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो।
शीर्ष अदालत ने पांच जुलाई को केन्द्र सरकार को देश से कुष्ठ रोग का उन्मूलन सुनिश्चित करने के लिये व्यापक कार्य योजना पेश करने का निर्देश देते कहा था कि साध्य बीमारी को लोगों को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने अधिवक्ता पंकज सिन्हा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिये। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कुष्ठ रोग के उन्मूलन की दिशा में सरकार पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है।
सिन्हा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि हर साल देश में करीब सवा लाख लोग कुष्ठ रोग से प्रभावित होते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि 1981 से ही देश में इस बीमारी का मेडिकल इलाज उपलब्ध होने के बावजूद सरकार अभी भी इसे समूल खत्म करने में असफल रहीं है।
केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा था कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है और इस पर कोई विरोधात्मक दृष्टिकोण नहीं अपना रही है।