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ये 43 फीसदी लोग कौन हैं जो सुषमा स्वराज को ट्रोल किए जाने का कर रहे हैं समर्थन?

सोशल मीडिया के संसार में ‘ट्रोलिंग’ जैसे हिंसक शब्द को ना सिर्फ ईजाद किया गया बल्कि इस क्रिया को...
ये 43 फीसदी लोग कौन हैं जो सुषमा स्वराज को ट्रोल किए जाने का कर रहे हैं समर्थन?

सोशल मीडिया के संसार में ‘ट्रोलिंग’ जैसे हिंसक शब्द को ना सिर्फ ईजाद किया गया बल्कि इस क्रिया को कइयों ने आत्मसात भी किया है। लोग किसी से असहमत होते ही उनपर ट्रोल के तीक्ष्ण बाण छोड़ देते हैं। पिछले कुछ दिनों से केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ट्रोलरों का शिकार बनीं हैं। उनके खिलाफ ना जाने कितने अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया। हद तो तब हो गई जब ट्रोल करने वालों ने उनके पति से कहा गया कि जब सुषमा घर आए तो उनकी पिटाई कीजिए। सुषमा से पहले भी कई राजनेता ट्रोल होते रहे हैं। लेकिन ये मामला अलहदा इसलिए है क्योंकि ‘ट्रोलर’ कोई और नहीं बल्कि उसी राजनीतिक विचारधारा वाले हैं जहां से सुषमा स्वराज की पार्टी के समर्थन में आवाज बुलंद होती है।

पासपोर्ट विवाद के बाद ट्रोल करने वालों का एक संगठित जमात सोशल मीडिया पर सुषमा स्वराज के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर देता है। तन्वी सेठ को पासपोर्ट दिये जाने पर ट्विटर यूजर्स का कहना है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तन्वी को पासपोर्ट जारी किया गया। विकास मिश्रा की दलील नहीं सुनी गई। इस तर्क के साथ कई ट्विटर यूजर्स ने सुषमा स्वराज पर भद्दे कमेंट्स करना शुरू कर दिए।

सुषमा के सवाल पर बेशर्म सा जवाब

सुषमा स्वराज ने  पहले तो ट्रोलर्स के आपत्तजिनक ट्वीट्स को लाइक किया। उसके बाद उन्होंने ट्विटर पर एक पोल शेयर किया। इस पोल में उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या आप ऐसे ट्वीट को उचित मानते हैं? इस पोल में 1 लाख 24 हजार 305 लोगों ने हिस्सा लिया था, इसमें 57 प्रतिशत लोगों ने सुषमा स्वराज का समर्थन किया तो 43 फीसदी लोगों ने ट्रोल्स का समर्थन किया। इन नतीजों में ट्रोल को समर्थन नहीं करने वालों की तादात भले ही ज्यादा हो लेकिन हैरानी की बात है कि ट्रोल के समर्थन में भी 43 फीसदी हाथ उठे हैं। यानी ये ना सिर्फ विरोध के हिमायती हैं बल्कि अभद्र भाषा और अपशब्द के भी पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं।

आखिरकार सुषमा स्वराज को कहना पड़ा, ‘‘लोकतंत्र में मतभिन्नता स्वाभाविक है। आलोचना अवश्य करो, लेकिन अभद्र भाषा में नहीं। सभ्य भाषा में की गई आलोचना ज्यादा असरदार होती है।’’

सुषमा स्वराज के पति कौशल स्वराज ने भी अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए ट्वीट किया, ‘‘आपके शब्दों ने हमें असहनीय दुख दिया है। आपको एक बात बता रहा हूं कि मेरी मां का 1993 में कैंसर से निधन हो गया। सुषमा एक सांसद और पूर्व शिक्षा मंत्री थीं। वह एक साल तक अस्पताल में रहीं। उन्होंने मेडिकल अटेंडेंट लेने से मना कर दिया और मेरी मां की खुद देखभाल की।’’

आपकी ही पार्टी के ट्रोलर्स ने आपके खिलाफ मैसेज किए हैं

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे हैरान करने वाली बात सामने आई कि अभी तक भाजपा या सरकार के किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति ने इस रवैये पर अपना विरोध दर्ज नहीं कराया है। आखिरकार सुषमा स्वराज को खुद इस पर पलटवार करना पड़ा। जब कि कांग्रेस ने उनके के पक्ष में ट्वीट किया। कांग्रेस ने सुषमा स्वराज के समर्थन में लिखा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिस्थिति या कारण क्या है लेकिन किसी के लिए धमकी या आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता। सुषमा स्वराज जी हम आपके निर्णय का समर्थन करते हैं, आपकी ही पार्टी के ट्रोलर्स ने आपके खिलाफ मैसेज किए हैं।

43 फीसदी लोग कौन?


ये 43 फीसदी कोई आंकड़ा नहीं बल्कि एक संदेश है। ये संदेश भाजपा की आंतरिक राजनीति के भीतर सुषमा स्वराज को अलग-थलग करने को लेकर भी हो सकता है। ट्रोलर्स अपनी अमर्यादित भाषा, अपशब्द, और अपमानजनक वाक्य विन्यासों से किसी की भी छवि तार-तार कर सकते हैं। विरोधियों से लेकर अपनों तक पर वे हमलावर हो सकते हैं। इसी कड़ी में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के खिलाफ भी ट्रोलरों का संगठित अभियान चल पड़ा है। इस पूरे प्रकरण में अंतरधार्मिक दुर्भावना के पुट तो नजर आए ही। साथ ही कई सवाल भी खड़े हुए। भाजपा को सोशल मीडिया में एजेंडा सेट करने वालों का पुरोधा माना जाता है लेकिन सुषमा स्वराज के ट्रोल होने पर वे ढाल के तौर पर काम करने से कैसे चूक गई? दरअसल सियासत ने ही एक भीड़ बनाकर उसके दिमाग में ट्रोल का जहर भरा है। अब भीड़ अपना अभ्यास कर चुकी है। वह असहमत होगी तो अपनी पार्टी को भी नहीं छोड़ेगी। ट्रोल करने वालों में अधिकतर वही आईडी इस्तेमाल हुए जो मोदी का गुणगान किया करते हैं। ऐसे में ये संगठित हमलावर अब कहां रुकने वाले हैं? अगला निशाना कोई और होगा...

 

 

 

 

 

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