माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद चार साल तक शान्त पड़े रहने के बाद माओवादियों ने अपनी सक्रियता बढ़ानी शुरू की है। माओवादी गुरिल्लों ने किशनजी का उत्तराधिकारी चुन लिया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, सीपीआई (एमएल) की पोलित ब्यूरो का सदस्य और पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) के प्रधान (कमांडर इन चीफ) मिसिर बेसरा को बंगाल के जंगलमहल के तीन जिलों- पुरुलिया, बांकुड़ा और पश्चिम मेदिनीपुर के साथ ही वीरभूम में गुरिल्ले तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। अलग- अलग राज्यों में उसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
मिसिर बेसरा 23 जून 2009 को बिहार के लखीसराय में अदालत में पेशी के दौरान हिरासत से भाग निकला था। उसके बाद से उसे सात राज्यों की पुलिस खोज रही है। उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, असम और बिहार में वह सक्रिय है। इन इलाकों में माओवादियों के स्क्वायड तैयार करने, प्रशिक्षण देने और ध्वंसात्मक कार्रवाई की जिम्मेदारी मिसिर बेसरा के पास है। उसके सिर पर एक करोड़ रुपए का ईनाम है।
तीन साल से मिसिर बेसरा उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और महाराष्ट्र के इलाकों में सक्रिय है। इन इलाकों में उसने सुरक्षा बलों पर हमले की कई वारदातों को नेतृत्व दिया है। इन राज्यों में उसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है- कहीं सुनिर्मल, कहीं विवेक और कहीं सुनील। बंगाल में नए सिरे से अपना संगठन खड़ा करने के लिए मिसिर बेसरा ने स्वयंसेवी संगठनों का चोला ओढ़ना शुरू किया है। ग्राम पंचायत स्तर पर संगठन खड़े किए जा रहे हैं। जंगलमहल के बेलपहाड़ी, बिनपुर, नयाग्राम, गोपीबल्लभपुर, बांदवान, रघुनाथपुर, राईपुर समेत कई जगह एनजीओ खड़े किए गए हैं। गिरिडीह के मादुनडीह का रहने वाला मिसिर बेहर 1985 में माओयिस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) का सदस्य बना। 2003 में वह सेंट्रल कमिटी का सदस्य बना। 2004 में सीपीआई (एमएल) बनने के बाद उसे पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया।