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वेब भी खा रहा भारत की बेटियां

एक क्लिक और बेटी को गर्भ में खत्म करने का सॉल्यूशन आपकी स्क्रीन पर। देश-विदेश की कंपनियां खुलेआम अपने उत्पादों को वेब पर बेच रही हैं। बेटियों को गर्भ के जाल से निकालने के लिए पूरा बाजार, पूरा कारोबार, सारे सर्च इंजन मुस्तैद बैठे हैं।
वेब भी खा रहा भारत की बेटियां

 उनकी तैयारी मुकम्मल है। बेटा पैदा करने के लिए मंत्र से लेकर, खाने-पाने की लिस्ट से लेकर, संभोग करने के समय से लेकर आधुनिक तकनीक के औजार, यूट्यूब पर वीडियो, इमेज, सामग्री—सब एकसाथ।

एक के बाद एक क्लिक के जरिये ऐसा संसार तैयार हो रहा है जिसमें बेटियों के लिए नफरत को भ्रूण हत्या में तब्दील किया जा रहा है। साइट पर जाकर आपको कुछ की-वर्ड टाइप करने हैं, फिर बेटियों को मारने का पूरा तंत्र आपके सामने बिना किसी विस्फोट से साथ खुल जाएगा। यह सब आपके निजी स्पेस में हो रहा है, घर बैठे सर्च इंजनों की मदद से थाईलैंड, हॉन्गकॉन्ग, अमेरिका में कन्या भ्रूण हत्या की दुकानदारी चल रही है।

पढ़ते हुए हो सकता है कि आप भी सोच रहे हों कि जब देश में कन्या भ्रूण हत्या गैर-कानूनी है, तब ऐसा कैसे और क्यों चल रहा है। यह एक बड़ा सवाल है। इससे बचने के लिए गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसे इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और सर्च इंजन कह रहे हैं कि इस सामग्री को रोक पाना उनके बस में नहीं है। यह विज्ञापन और ये सामग्री लड़कियों के खिलाफ दिमाग तैयार करने का काम कर रहे हैं। धड़ल्ले से इनका इस्तेमाल हो रहा है। तभी तो बेटी बचाने के अभियानों पर जितना पैसा खर्च होता जा रहा है, उतने ही बड़े पैमाने पर बेटियों का संहार हो रहा है। यूनिसेफ के अनुसार, गर्भपात के जरिये भारत में रोजाना 7,000 बच्चियां मारी जा रही हैं। यानी ये सारी हत्याएं लिंग परीक्षण के बाद हो रही हैं। देश के कानून की धज्जी उड़ाते हुए बेटियों का मारने की दुकानें इंटरनेट पर सजी हुई हैं। वह भी ऐसे समय जब अमेरिका में 33 वर्षीय भारतीय मूल की अमेरिकन नागरिक पूर्वी पटेल को भ्रूण हत्या के मामले में 30 साल की सजा सुनाई गई। पूर्वी पटेल ने भ्रूण को मारने के लिए इंटरनेट से ही दवाएं मंगाई थीं। बेटियों को मारने की दुकानें विदेशों में भी जबर्दस्त ढंग से फल-फूल रही हैं और वहां जाने वालों में बड़ी संख्या में भारतीय ही हैं। भ्रूण हत्या के खिलाफ निजी जीवन में लंबा संघर्ष चला रहीं डॉ. मित्तु खुराना ने आउटलुक को बताया कि इंटरनेट पर इस तरह की सामग्री गैर-कानूनी है लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही, यह दुखद है। मित्तु खुराना ने ऐसी दर्जनों वेबसाइट खोलकर दिखाईं, जिनमें पुत्र प्राप्ति के तरीकों, मंत्रों, क्लीनिकों का प्रचार छाया हुआ है। ये तमाम गैरकानूनी हैं लेकिन कोई रोक-टोक नहीं। अपनी दो जुड़वा बेटियों को जन्म देने के लिए मित्तु ने अपने पति और ससुराल से निर्णायक लड़ाई लड़ी और बच्चियों को जन्म दिया।

देश ही नहीं, विदेशों में भी भारतीय या भारतीय मूल के लोगों पर बेटे की चाह में बेटी को कुर्बान करने की घटनाएं सामने आ रही हैं। भारत से विदेश जाकर गर्भपात कराने की घटनाएं भी संपन्न परिवारों में बढ़ी हैं। अमेरिका में यह मामला  जुलाई 2013 में सामने आया था जब पूर्वी पटेल बहुत रक्तस्राव के साथ अस्पताल में भर्ती हुई। बाद में पूछताछ के दौरान यह सामने आया कि उसने गैर कानूनी ढंग से गर्भ समाप्त किया था। पड़ताल में पता चला कि गर्भ समाप्त करने के लिए पटेल ने हॉन्गकॉन्ग से दवाई मंगाई थी। भ्रूण हटाने के बाद भारी रक्तस्राव होने की स्थिति में वह अस्पताल आई थी। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर इंटरनेट की दुनिया में भ्रूण हत्या के क्रूर कारोबार की ओर ध्यान खींचा।

भारत में स्थिति इतनी खराब है कि लिंग परीक्षण रोधी कानून होने के बावजूद खुलेआम पुत्र प्राप्ति के विज्ञापन और नुस्खे इंटरनेट पर भरे पड़े हैं। यह सारी सामग्री बेटियों के राष्ट्रव्यापी संहार का ही हिस्सा है। वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव पारेख कहते हैं, यह सारी सामग्री गैर-कानूनी है क्योंकि यह लिंग परीक्षण को बढ़ावा देने वाली और उसके लिए रास्ता बताने वाली है। सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए। जिस तरह  विदेशों में बाल पोर्नोग्राफी प्रतिबंधित है और उससे संबंधित किसी भी तरह की सामग्री कोई भी सर्च इंजन पर नहीं उपललब्‍ध हो सकती है, वैसा ही प्रतिबंध कन्या भ्रूण हत्या से जुड़ी सामग्री पर होना चाहिए, जो नहीं है। ऐसा तब है जब 1994 के कानून के अलावा इस वर्ष जनवरी में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस सामग्री को हटाने के स्पष्ट आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में स्पष्ट आदेश दिया था कि सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जन्म से पूर्व गर्भ निर्धारण संबंधी विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगाएं। अदालत ने अपने आदेश में साफ-साफ कहा था कि देश के तमाम राज्यों में लिंग अनुपात की स्थिति बेहद खतरनाक होती जा रही है और इसे ठीक करने के लिए बड़े कदम फैसले में अदालत ने कहा कि गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट के प्लेटफॉर्म पर आ रहे विज्ञापन और सामग्री सीधे-सीधेलिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या रोधी कानून पीसी-पीएनडीटी कानून 1994 की धारा 22 का उल्लंघन है और इन्हें हटाया जाए। गौरतलब है कि लिंग परीक्षण निषेध कानून 1994 के अंतर्गत लिंग निर्धारण और लिंग चयन अपराध है। कोई भी अगर ऐसा करता है इससे संबंधित जानकारी देता है या भ्रूण के बारे में जानकारी देता है या उसे खत्म करने में किसी भी प्रकार की मदद करता है तो वह अपराधी है। वर्ष 2009 में यह जनहित याचिका लिंग परीक्षण को बढ़ावा देने वाले तमाम तरह के विज्ञापनों को रोकने के मुद्दे पर लंबे समय से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता साबू जॉर्ज ने दाखिल की थी। इसी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया लेकिन अभी गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। हालांकि इस मुद्दे पर काम करने वाले संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेटियों को मारने का प्रचार-प्रसार थोड़ा छिपा कर चल रहा है।

महाराष्ट्र की सामाजिक कार्यकर्ता वर्षा देशपांडे ने बताया कि गांव-देहात में ये कंपनियां लिंग परीक्षण की सामग्री मुहैया करा रही हैं। किताबें भेजी जा रही हैं, जिनमें शर्तिया बेटा होने के तरीके बताए गए हैं (देखें बॉक्स)। यह लड़कियों के खिलाफ चलाया जा रहा संगठित अपराध है, जिसके दलाल देश-विदेश में बैठे हुए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई की अगली तारीख 30 अप्रैल को है, जिसमें यह उम्मीद की जा रही है कि सर्च इंजन वाली कंपनियां इस संबंध में अपना स्पष्ट करेंगी। लेकिन अभी तक उनका रवैया भारतीय कानून को ठेंगा दिखाने का ही रहा है। इन कंपनियों की दलील है कि इसे रोक पाना उनके लिए संभव नहीं है। लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि भारत में काम करने वाली तमाम कंपनियों को भारतीय कानून के तहत ही काम करना होता है और गूगल, याहू तथा माइक्रोसॉफ्ट इसमें कोई अपवाद नहीं हैं। लेकिन सवाल प्राथमकिता का है। जो चीज अमेरिका में प्रतिबंधित है, उसे तमाम सर्विस प्रोवाइडर और सर्च इंजन प्रतिबंधित रखते हैं, जैसे बाल पोर्नोग्राफी और तंबाकू से संबंधित कोई सामग्री। इनके विज्ञापन नेट पर नहीं मिल सकते। गूगल को सन 2011 में 50 करोड़ डॉलर का नॉन प्रोसिक्यूशन एग्रीमेंट साइन करना पड़ा क्योंकि उसने एक दवा कंपनी के ऑनलाइन खरीद के विज्ञापन को जगह दी थी। ऐसे में यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के कानून के खिलाफ सजा के सख्त प्रावधानों से ये सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां बंधी हुई हैं। बस भारत में ही इनका पालन नहीं हो रहा है।

 इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि नारे के तौर पर जरूर बेटी बचाओ का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन बेटियों का संहार रोकने के लिए जो दृढ राजनीतिक, प्रशासनिक और न्यायिक इच्छाशक्ति की जरूरत है, वह सिरे से नदारद है। बेटियों का संहार करने वाले इस देश में जिस तेजी से इंटरनेट जैसे आधुनिक माध्यमों से हत्या के लिए नागरिकों को मानसिक रूप से तैयार किया जा रहा है, वह डरावने भविष्य की ओर इशारा कर रहा है।

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