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जानिए, निर्भया कांड के बाद कैसे बदले देश के कायदे-कानून?

पूरे देेेेश को शर्मसार करने वाले निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पूरे देश में नई चेतना आई। जिसके बाद बलात्कारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाने और ऐसे जघन्य अपराध में लिप्त नाबालिगों को भी कड़ी सजा दिलवाने की मुहिम छिड़ी।
जानिए, निर्भया कांड के बाद कैसे बदले देश के कायदे-कानून?

 

निर्भया कांड को लेकर सड़क से लेकर संसद तक महिला सुरक्षा के सवाल पर केंद्र सरकार को भी हरकत में आना पड़ा। बलात्कार और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की समीक्षा की गई और उन्हें सख्त बनाया गया। जघन्य अपराधों में लिप्त नाबालिगों को कड़ी सजा दिलानेे लिए भी केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन का फैसला किया। 

16 दिसम्बर, 2012 को हुए निर्भया कांड के बाद 3 फरवरी 2013 को क्रिमिनल लॉ अम्नेडमेंट ऑर्डिनेंस आया। जिसके तहत आईपीसी की धारा 181 और 182 में बदलाव किए गए। इसमें बलात्‍कार से जुड़े नियमों को कड़ा किया गया। रेप करने वाले को फांसी की सजा भी मिल सके, इसका प्रावधान किया गया। 22 दिसंबर 2015 में राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ। इस एक्ट में प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के बालक को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाएगा।

बलात्‍कार, बलात्‍कार से हुई मृत्यु, गैंग रेप और एसिड-अटैक जैसे महिलाओं के साथ होने वाले अपराध जघन्य अपराध की श्रेणी में लाए गए। इसके अलावा वे सभी कानूनी अपराध जिनमें सात साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, जघन्य अपराध की श्रेणी में शामिल किए गए।

निर्भया गैंगरेप केस के बाद देश में मचे बवाल के बीच महिलाओं के साथ अपराध को लेकर एक नई बहस भी शुरू हुई। देश में सख्त कानून बनाने से लेकर दोषियों को मौत की सजा दिए जाने की मांग होने लगी। नतीजन नए एंटी-रेप कानून पर मुहर लगी। इसके अंतर्गत पहली बार बलात्कार करने वाले अपराधियों को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया।

रेप और यौन शोषण से जुड़े कानून को बेहतर बनाने का सुझाव देने के लिए जस्टिस जे. एस. वर्मा कमिटी का गठन किया गया। कमिटी ने सरकार से अपनी सिफारिशों को पेश करते हुए कहा कि इस तरह के अपराध कानून की कमी की वजह से नहीं बल्कि सुशासन की कमी की वजह से होते हैं। कमिटी ने रेप और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अन्य अपराधों के लिए कानून के प्रावधान सख्त करने की जरूरत बताई।

इस दौरान जस्टिस वर्मा कमिटी ने एक अन्य सुझाव दिया कि महिलाओं को घूरने, उनका पीछा करने जैसे अपराधों पर भी सजा का प्रावधान होना चाहिए। कमिटी ने सांसदों और विधायकों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि सांसदों और विधायकों पर किसी भी तरह का रेप का मामला दर्ज है, तो उन्हें आरोप तय होते ही इस्तीफा दे देना चाहिए।

कमेटी ने सरकार को यह रिपोर्ट 29 दिन में सौंपी थी। इसमें समाज के हर वर्गों के साथ ही विदेशों से भी सुझाव मिले थे। देशभर से करीब 80 हजार सुझाव कमिटी को मिले थे, जिसमें यौन हिंसा, लिंगभेद, राजनीति का आपराधीकरण रोकने के उपाय हैं। इन्हीं सुझावों के आधार पर कमिटी ने सरकार को सिफारिशें सौंपी।

वर्मा कमेटी की सिफारिशें

-महिला के कपड़े फाड़ने की कोशिश पर 7 साल की सजा मिले

-बदनीयती से देखने, इशारे करने पर 1 साल की सजा मिले

-इंटरनेट पर जासूसी करने पर 1 साल की सजा दी जाए

-मानव तस्करी के मामले में पीड़ित की सहमति गैरजरूरी

-मानव तस्करी में मिले कम से कम 7 साल की सजा

-अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाई जाए

-पुलिस के ढांचे और काम करने के तरीके में सुधार हो

-बच्चों की तस्करी के मामले में सरकार ठोस कदम उठाए और डेटाबेस बनाए

-कानून का पालन करने वाली एजेंसियां नेताओं के हाथ का खिलौना न बनें

-सरकारी संस्थाओं के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही लाई जाए

-दिल्ली की कानून व्यवस्था में जवाबदेही को लेकर असमंजस की स्थिति खत्म हो

-सभी शादियां रजिस्टर हों, दहेज लेनदेन पर निगरानी मजिस्ट्रेट करें

-बलात्कार मामले दर्ज करने में नाकाम या देरी करने वाले अफसरों पर कार्रवाई हो

-पीड़ित की मेडिकल जांच के लिए दिया गया प्रोटोकॉल लागू किया जाए

-सैन्य बलों की तरफ से यौन हिंसा को सामान्य कानून के तहत लाया जाए

-आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट की समीक्षा की जाए

-हिंसाग्रस्त इलाकों में महिला अपराध की जांच के लिए स्पेशल कमिश्नर तैनात हों

 

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