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मनमोहन बोले, नोटबंदी का फैसला मौलिक कर्त्‍तव्‍य का उपहास

पीएम मोदी के कालेधन के खिलाफ नोटबंदी के फैसले पर अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी के प्रतिष्ठित दैनिक 'द हिंदू' में बड़ी ही बेबाकी से विचार रखे हैं। मनमोहन सिंह ने अपने संपादकीय लेख में कहा, ऐसा कहा जाता है, 'पैसा एक विचार है जो आत्मविश्वास को प्रेरित करता है।' लेकिन 8 नवंबर को एक झटके ने करीब 125 करोड़ लोगों के विश्वास को बर्बाद कर रख दिया है। इस फैसले के चलते एक रात में ही 500 और 1000 रुपये के रूप में मौजूद देश की 85 फीसदी मुद्रा बेकार हो गई।
मनमोहन बोले, नोटबंदी का फैसला मौलिक कर्त्‍तव्‍य का उपहास

मनमोहन ने आगे लिखा कि फर्जी नोट और कालाधन ठीक उसी तरह से भारत के लिए खतरा हैं जैसा आतंकवाद और सामाजिक बंटवारा। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का 500 और 1000 के नोटों को अवैध करार देने से ठीक ऐसा लगता है जैसे सभी पैसे कालाधन है और सभी काला धन पैसों के रूप में है। मनमोहन सिंह के अनुसार देश के करीब 90 फीसदी श्रमिक अब भी अपनी मजदूरी पैसों में ही ले रहे हैं। इन लोगों में करोड़ों लोग खेती से जुड़े कामगार और निर्माणाधीन श्रमिक शामिल हैं। हालांकि, 2001 के बाद से ग्रामीण इलाकों में बैकों की शाखाएं करीब दोगुनी हो गई हैं, उसके बावजूद भारत के करीब 60 करोड़ गांव और शहर में रह रहे लोग अब भी बैंकों से नहीं जुड़े हैं। इन लोगों को अपना जीवन जीने के लिए नोटों की करेंसी ही एक मात्र जरिया है।

अधिकतर भारतीय वैध तरीके से अपनी आय, लेनदेन और बचाना भी पैसों में ही करते है। ऐसे में संप्रभु राष्ट्र की किसी भी लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई सरकार का यह मौलिक कर्तव्य बनता है कि वे अपने नागरिकों के अधिकार और उनकी जीविका की रक्षा करे। नोटबंदी का फैसला मौलिक कर्तव्य का उपहास है।

काला धन चिंता का विषय है। यह वो धन है जो कई वर्षों के दौरान गुप्त आय के संसाधनों से जुटाया गया है। गरीबों के विपरीत कालाधन जमा करनेवालों का धन कई रूपों में है जैसे जमीन, सोना और विदेशी लेनदेन। इससे पहले कई सरकारों ने अवैध धन को निकलवाने का प्रयास किया है। लेकिन, ऐसी कार्रवाई सिर्फ उन्हीं लोगों पर की गई जिन पर शक होता था कि उनके पास काला धन जमा है न कि सभी नागरिकों पर। सरकार ने 2000 रुपये का नोट लाकर भविष्य में गुप्त धन को बनाने के तरीके और आसान कर दिए हैं।

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