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मोदी का एक सालः जानकारियों पर ताला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की उपलब्धियों में इसे किस तरह शामिल करेंगे कि उनके शासनकाल में पिछले नौ महीने से प्रधान सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है। करीब 15 हजार शिकायतें और अपीलें मुख्य सूचना आयुक्त के दफ्तर में धूल खा रही हैं।
मोदी का एक सालः जानकारियों पर ताला

प्रधान सूचना आयुक्त को नियुक्त करने के लिए जो सर्च समिति बनी हैं, उसके ब्यौरे तक सरकार सूचना के अधिकार के तहत नहीं दे रही है।आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस  में जो मिनी पीएमओ कार्यालय खोला गया था, वहां आने वाली 90 फीसदी शिकायतों का निपटारा ही नहीं हुआ है। कुल मिलाकर पूरे देश में स्थिति पूरी तरह से अपारदर्शिता की बन गई है। जिसके लिए सूचना का अधिकार कानून लाया गया था, वह मकसद ही पिछले एक साल में विफल होता नजर आ रहा है। इस बात से चिंतित होकर सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, निखिल डे और अमृता जौहरी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रधान सूचना आयुक्त की नियुक्ति चल रहे मामले एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल करके अदालत से इस नियुक्ति में पारर्दशिता की गारंटी करने की अपील की है।

इसमें अदालत से यह कहा गया है कि प्रधान सूचना आयुक्त के पास चूंकि इस कानून के तहत अहम जिम्मेदरियां है, लिहाजा आयोग के कामकाज को पटरी पर लाने के लिए जल्द से जल्द इस पद को भरा जाए। साथ ही पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता की गारंटी की जाए। सूचना के अधिकार कानून के तहत जनता को नियुक्ति प्रक्रिया के रिकॉर्ड जानने का हक है।

देश भर के सूचना के अधिकार कार्य़कर्ता इस बात से बहुत चिंतित है कि 22 अगस्त 2014 को प्रधान सूचना आयुक्त के सेवानिवृत्त होने के बाद से अभी तक यह पद खाली पड़ा हुआ है। उच्च न्यायालय में दखिल की गई हस्तक्षेप याचिका में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि यह पद रिक्त होने से प्रधानमंत्री कार्यालय पूरी तरह से सूचना के अधिकार से बाहर हो गया है। प्रधान सूचना आयुक्त के अभाव में किसी और आयुक्त को भी अधिकार हस्तांतरित नहीं किए गए हैं। इसके चलते प्रधानमंत्री कार्यालय, कैबिनेट, ऊर्जा, स्टील, रक्षा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, कैग, सुप्रीम कोर्ट, सारे उच्च न्यायालय आदि से संबंधित सूचनाएं जनता को नहीं मिल पा रही हैं। और न ही  इनसे संबंधित शिकायतों का कोई पुरसाहाल है।

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