फिर वही 'फेरा’। तीन साल पहले स्वीडिश अखबार की रिपोर्ट पर्दे और राजनीति के 'शहंशाह’ अमिताभ बच्चन के लिए बड़ा सिरदर्द लेकर आई थी। अब भारत के एक अंगे्रजी अखबार के साथ दुनिया के करीब 350 पत्रकारों की खोजपूर्ण रिपोर्ट ने 'बिग बी’ को विचलित किया है। 'फेरा’ यानी विदेशी मुद्रा नियंत्रण कानून के तहत अवैध रूप से परदेश में विदेशी मुद्रा के उपयोग और कंपनी बनाने के आरोपों की जांच कई नामी गुमनामी भारतीयों और विदेशी नेताओं की जांच का नया सिलसिला। यों अमिताभ बच्चन ने स्पष्ट कर दिया है, 'उन्हें आरोपित कंपनियों की कोई जानकारी नहीं है और उनके नाम का दुरुपयोग हुआ है।’ लेकिन सरकार 1986-87 में उनके बचपन के साथी राजीव गांधी की रही हो या उनके राजनीतिक मुरीद नरेंद्र भाई मोदी की, अन्य लोगों के साथ पनामा में अमिताभ बच्चन के नाम को प्रबंध मंडल में रखने वाली जहाज कंपनियों में वैध-अवैध डॉलर लगाने के आरापों की जांच की घोषणा तत्काल हो गई है।
अमिताभ के बाल सखा राजीव गांधी को भी 1987 में जब बोफोर्स तोप खरीदी में कमीशन लिए जाने की स्वीडिश रेडियो की सूचना मिली थी तो वह सकते में आ गए थे। उन्होंने परिवार और पार्टी के बहुत करीबी रहे वरिष्ठ नेता को बुलाकर अपना दु:ख व्यक्त किया और पहला वाक्य बोला- 'लगता है, हमारे ही किसी मित्र ने धोखा देकर गड़बड़ी की है।’ बोफोर्स कांड में 64 करोड़ रुपये की दलाली के इसी आरोप और अरुण नेहरू के साथ विश्वनाथ प्रताप सिंह के विद्रोह के कारण राजीव और कांग्रेस पार्टी की पराजय हुई। अमिताभ बच्चन तो यह विवाद गर्माते ही संसद से इस्तीफा देकर विदेश चले गए थे। लेकिन वी.पी. सिंह ही नहीं, भाजपा के कई नेताओं ने गांधी परिवार और अमिताभ बच्चन के रिश्तों का हवाला देते हुए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। यह रहस्य अब तक बरकरार है कि ऐसे गंभीर संकट के बाद दोनों परिवारों के बीच गहरी खाई ञ्चयों खुद गई? अमिताभ या सोनिया गांधी ने आज तक इस राज को सार्वजनिक नहीं किया। अमिताभ ने सक्रिय राजनीति छोड़ दी, लेकिन पिछले वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मधुर संबंधों को देखकर शत्रुघ्न सिन्हा ने यह सुझाव तक दे दिया कि 'राष्ट्रपति पद के लिए 2018 में होने वाले चुनाव में अमिताभ बच्चन उम्मीदवार हो सकते हैं?’
मगर इस बार अमिताभ और उनके साथ उनकी बहू ऐश्वर्य राय बच्चन का नाम पनामा दस्तावेज नाम से प्रसिद्ध हो रहे वित्तीय लेन-देन के अंतरराष्ट्रीय खुलासे में सामने आया है जिसे अंजाम दिया है दुनिया के कुछ चुनिंदा पत्रकारों के संगठन 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट’ ने। यह दस्तावेज दरअसल पनामा की एक कानूनी कारपोरेट फर्म मोसेक फोंसेका की है। इस फर्म के करीब एक करोड़ 15 लाख पृष्ठ के दस्तावेज किसी अज्ञात स्रोत ने पत्रकारों के इस संगठन को मुहैया कराए हैं। भारत में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की वरिष्ठ खोजी पत्रकार ऋतु सरीन के नेतृत्व में पत्रकारों की एक पूरी टीम इस कंसोर्टियम के साथ मिलकर काम कर रही है। इन दस्तावेजों में भारतीयों के नामों का खुलासा ऋतु सरीन और उनकी इसी टीम ने किया है।
इन दस्तावेजों में खुलासा किया गया है मोसेक फोंसेका ने पूरी दुनिया के अपने प्रभावशाली ग्राहकों के पैसे को किन-किन कंपनियों में निवेश किया है। दस्तावेजों में सभी कंपनियों के नाम और फर्म के जरिये इन कंपनियों में पैसे निवेश करने वाले उसके प्रभावशाली ग्राहकों के नाम शामिल हैं। इन्हीं नामों में अमिताभ और ऐश्वर्य का नाम भी शामिल है। दस्तावेजों के अनुसार अमिताभ बच्चन भारत में अपनी कंपनी एबीसीएल का गठन करने से भी पहले वर्ष 1993 में चार विदेशी कंपनियों के डायरेक्टर थे। ये चारों जहाजरानी से जुड़ी कंपनियां थीं जिनमें से एक ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड और तीन बहामास में सूचीबद्ध थीं। ये दोनों की देश कर चोरों का स्वर्ग कहे जाते हैं। यही नहीं, अमिताभ जिन कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल थे उनकी सूचीबद्ध पूंजी 5 हजार डॉलर से लेकर 50 हजार डॉलर तक ही थी मगर ये लाखों डॉलर कीमत वाले जहाजों का संचालन करती थीं? जहां तक उनकी बहू ऐश्वर्य का सवाल है तो खुद ऐश्वर्य, उनके पिता केआरआर कृष्णा राय, मां वृंदा कृष्णा राज राय और भाई आदित्य राय ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड में सूचीबद्ध कंपनी एमिक पार्टनर्स में डायरेक्टर थे। इन सभी को 14 मई, 2005 को डायरेक्टर बनाया गया था और इस कंपनी की पूंजी भी सिर्फ 50 हजार डॉलर ही थी। यह कंपनी 2008 में भंग हो गई थी।
भले ही दस्तावेजों में बच्चन परिवार का नाम हो मगर खुद अमिताभ बच्चन का कहना है कि जिन कंपनियों का डायरेक्टर उन्हें बताया जा रहा है उससे कभी उनका कुछ लेना-देना नहीं रहा है। यही नहीं, उन्होंने विदेश में जो पैसे खर्च किए उन सभी पर देश में कर चुकाया गया था। उन्होंने आशंका जताई हो सकता है कि उनके नाम का गलत इस्तेमाल किया गया हो।
हालांकि अमिताभ के नाम का गलत इस्तेमाल होने की उम्मीद कम ही दिखती है क्योंकि इन करोड़ों दस्तावेजों में सिर्फ उनका नहीं, दुनिया के सैकड़ों प्रभावशाली लोगों के नाम हैं। इनमें यूएई के राष्ट्रपति खलीफा बिन जाएद अल नाहयान, यूके्रन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको, सऊदी अरब के किंग सलमान, आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमुंदर शामिल हैं। रूस के
राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का नाम भी पहले इस सूची में बताया जा रहा था मगर बाद में पाया गया कि लिस्ट में उनका नहीं उनके बेहद करीबियों का नाम है। इसी प्रकार चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के करीबी रिश्तेदारों का नाम इस सूची में पाए जाने पर चीन में पनामा लीक से जुड़ी खबरें ही इंटरनेट पर ब्लॉक कर दी गईं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बच्चों का नाम इस सूची में पाए जाने के बाद वहां हंगामा मचा हुआ है और विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ा है। आइसलैंड के प्रधानमंत्री ने तो विपक्ष के दबाव में इस्तीफा दे भी दिया। भारत में अमिताभ केअलावा जो बड़े नाम इस सूची में हैं उनमें इंडिया बुल्स के प्रमोटर समीर गहलोत और उनका परिवार, डीएलएफ समूह के मुखिया के.पी. सिंह और उनके परिवार के कई लोग, मेहरासंस ज्वैलर्स के मालिक अश्विनी कुमार मेहरा और उनका परिवार, उद्योगपति गौतम एवं करन थापर तथा अन्य कई छोटे नाम शामिल हैं। हालांकि समीर गहलोत का कहना है कि विदेशों में उनकी जिन भी कंपनियों का जिक्र है उन सभी की जानकारी पहले से भारतीय रिजर्व बैंक के पास है और इन कंपनियों में लगा उनका सारा पैसा कर चुकाया हुआ है। गहलोत यह भी कहते हैं कि सिर्फ विदेश में कंपनी होने से किसी काम को गैरकानूनी नहीं करार दिया जा सकता।
वैसे खास बात यह है कि जिन भी लोगों का नाम इन दस्तावेजों में आया है उनमें से किसी ने इस बात से इनकार नहीं किया है कि उन्होंने मोसेक फोंसेका के जरिये निवेश किया है। अब तक सिर्फ अमिताभ बच्चन का ही यह बयान आया है कि वह कभी इन कंपनियों में नहीं रहे और उनके नाम का गलत इस्तेमाल किया गया हो सकता है। ऐसे में उनका यह बयान इस मामले में उनका कितना बचाव कर पाएगा यह देखने वाली बात होगी। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का गठन होने के बाद काले धन की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एमबी शाह की अध्यक्षता में जो एसआईटी गठित की गई थी उसने इन खुलासों का खुद संज्ञान ले लिया है और कहा है कि इसकी भी जांच की जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा है कि इन खुलासों की सरकारी एजेंसियों से जांच कराई जाएगी मगर सवाल है कि इतनी सारी जांच कहीं आपस में टकराव का कारण तो नहीं बन जाएंगी
क्योंकि भारत में सरकारी एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल का इतिहास बेहद खराब रहा है। जहां तक अमिताभ बच्चन से जुड़े विवादों की बात है तो यह पहली बार नहीं है कि वह कानूनी झमेले में पड़े हैं। अपने बाल सखा राजीव गांधी के करीबी होने का खामियाजा वह बोफोर्स तोप दलाली मामले में नाम सामने आने के रूप में भुगत चुके हैं। हालांकि बाद में अदालत ने उन्हें उस मामले में क्लीन चिट दे दी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला प्रशासन द्वारा उनके नाम जमीन करने का विवाद भी लंबा चला और आखिरकार वह जमीन वापस करके उन्होंने उस विवाद से पल्ला छुड़ाया। राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी और उनके बच्चों से उनकी नहीं पटी लिहाजा वह सत्ता से दूर हो गए। ऐसे में वह अमर सिंह के जरिये मुलायम के करीब आए मगर बाद में अमर सिंह से भी उनकी नहीं पटी। तब अमिताभ ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी बढ़ाई। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी यह करीबी बनी हुई है। मगर यह शायद अमिताभ का दुर्भाग्य है कि जब भी ऐसा लगता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है तभी कोई न कोई विवाद उन्हें जकड़ लेता है और एक बार फिर ऐसा ही होता दिख रहा है।
साथ में दीपक रस्तोगी और कुमार पंकज