राजनीतिक पार्टी के खाते से कितने निकाले या बांटे जाएंगे, चंदे के नाम पर कितना खर्च होगा, समाजसेवी संगठन क्या-क्या खर्च करेंगे और मंझोले कारोबारियों के जिम्मे क्या काम दिया जाना है- इसका पुख्ता रोडमैप तैयार कर रखा गया है। इस दफा चुनाव आयोग, एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट और आर्थिक अपराध की जांच से जुड़ी एजेंसियों से बचने के रास्ते पहले से ही तैयार रखे गए हैं। एक अनुमान के अनुसार, बंगाल के चुनाव में राजनीतिक पार्टियां दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने की तैयारी में हैं।
चुनाव आयोग ने प्रति विधानसभा उम्मीदवार 28 लाख रुपए खर्च करने की सीमा निर्धारित कर रखी है। तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी- तीनों ही अपने उम्मीदवारों को पार्टी फंड से इतनी रकम जारी करेंगी। हर पार्टी ने अपने कद्दावर नेताओं को इलाके के हिसाब से कार्य सौंप रखा है। तृणमूल कांग्रेस के दो नेताओं को शिल्पांचल इलाकों का जिम्मा सौंपा गया है। इन दिनों जेल में बंद एक पूर्व मंत्री को राज्य भर में चुनाव अभियान के लिए वाहनों का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसी तरह वाममोर्चा, कांग्रेस और भाजपा ने भी अपने -अपने चुनाव डेस्क पर चुनिंदा नेताओं को काम सौंप रखा है।
वाममोर्चा का बजट प्रति उम्मीदवार 18 लाख रुपए का है। तृणमूल कांग्रेस की ओर से चुनाव डेस्क की जिम्मेदारी संभालने वाले महासचिव और राज्य के वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, हम अपने सभी 294 उम्मीदवारों को पार्टी के केंद्रीय फंड से चुनाव लड़ने के लिए धन जारी कर रहे हैं।
यह बजट प्रति विधानसभा सीट के हिसाब से है। इसमें तृणमूल कांग्रेस की ओर से आयोजित की जाने वाली केन्द्रीयकृत जनसभाओं का खर्च शामिल नहीं है। तृणमूल कांग्रेस की चुनाव डेस्क पर पार्थ चटर्जी के सहयोगी और पार्टी के एक महासचिव के अनुसार, चुनाव के दौरान हर दो विधानसभा सीट पर एक जनसभा आयोजित की जा रही है, जिसमें केंद्रीय नेतृत्व का कोई नेता शामिल रहेगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कम से कम दो जनसभाएं हर जिले में कराने की तैयारी है। ऐसी जनसभाओं के आयोजन पर 30 से 50 लाख रुपए का खर्च आने की संभावना है। महानगर कोलकाता में उनकी पदयात्राएं निकालने की तैयारी है, जिनका प्रत्यक्ष खर्च कुछ भी नहीं है, लेकिन सुरक्षा इंतजामों का खर्च तो राज्य सरकार के मत्थे जाएगा ही।
ऐसे में जाहिर है, अकेले तृणमूल कांग्रेस का खर्च प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 90 करोड़ रुपए आएगा, जिसका हिसाब चुनाव आयोग को दिया जाएगा। हालांकि, जिस तरह से तैयारियां हैं, उनपर खर्च चार सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा का बैठेगा। इसका हिसाब कैसे रखा जाएगा, इसकी तैयारी की गई है। पांच साल में आठ हजार से ज्यादा नए क्लब आस्तित्व में आए हैं। क्लब, यानी स्थानीय लोगों द्वारा गठित मुहल्ला कमेटियां। पहले से लगभग छह हजार ऐसे क्लब आस्तित्व में हैं। अधिकांश क्लबों के संरक्षक या कर्ता-धर्ता तृणमूल कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता हैं। जानकारों के अनुसार, बेहद सधे अंदाज में ऐसे क्लबों को रणनीतिक अंदाज में सामूहिक रूप से चुनाव अभियान से जुड़ने को कहा गया है। जनसभाओं के आयोजन का खर्च इन क्लबों के खाते में दिखाया जाएगा। ये सभी वही संगठन हैं, जिन्हें राज्य सरकार ने हर साल युवा कार्यक्रम, खेल, सामाजिक कार्यक्रम, सांस्कृतिक आयोजन के नाम पर 50 हजार से एक लाख रुपए की रकम बतौर अनुदान में दी है। ये अपने खाते में अच्छी-खासी रकम बतौर चंदा जमा दिखाते हैं। सूत्रों के अनुसार, फंड का फ्लो ऐसे क्लबों के खातों में दिखाने की तैयारी है।
खर्च दिखाने की तो पूरी तैयारी है, लेकिन फंड आएगा कहां से? वर्ष 2011 के चुनाव में चिट फंड कंपनियों के जरिए राजनीतिक पार्टियों को अच्छी खासी रकम मिली थी। कालाधन की बाजीगरी की गई थी। केन्द्र सरकार की कई जांच एजेंसियां तब की गई गड़बडिय़ों की तह तक पहुंचने के प्रयास में हैं। सारधा घोटाले में हासिल की गई रकम का बड़ा चुनाव में इस्तेमाल किया गया था। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस के साथ ही वाममोर्चा भी कठधरे में है। इस दफा क्या तैयारी है फंड लाने की? इस बार मंझोले कारोबारियों पर राजनीतिक दलों की निगाह है। कॉरपोरेट फंडिंग पूरे हिसाब-किताब के साथ ली जाएगी। लेकिन छोटे बिल्डर, जमीन जायदाद के कारोबारी, मछली, अनाज और सब्जियों के आढ़तियों से खूब चंदा उगाहा गया है। कोलकाता के एक नामी वस्त्र विक्रेता ब्रांड कंपनी के संचालकों का दावा है कि उनलोगों को 35 करोड़ रुपए कैश का इंतजाम कर रखने को कहा गया है। यह रकम विभिन्न इलाकों में उन्हें 25 और 35 लाख की शक्ल में पहुंचानी है। हावड़ा के एक लोहा कारोबारी का दावा है कि उन्हें पांच लाख छतरियां और इतनी ही टोपियां तैयार कराने को कहा गया है।
दमदम सीट से तृणमूल कांग्रेस की उक्वमीदवार और अभी मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य का कहना है, मैं अपने विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और सहकर्मियों को छाते और टोपियां बंटवा रही हूं। गर्मी के मौसम में प्रचार के दौरान इनकी जरूरत पड़ेगी। दक्षिण दमदम की सीट से ब्रात्य बसु चुनाव लड़ रहे हैं, जो पर्यटन मंत्री हैं। वे अपने इलाके में हैट बंटवा रहे हैं। मंत्री पार्थ चटर्जी बेहाला पश्चिम सीट से लड़ रहे हैं। वे शॉपिंग बैग बंटवा रहे हैं। हाबरा सीट से लड़ रहे मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक अपने इलाके में पांच लाख कलम बंटवा रहे हैं। इस तरह के आयटम नेताओं के संरक्षण वाले क्लब या मुहल्ला कमेटियां बंटवा रही हैं।
आधिकारिक रूप से केंद्रीय स्तर पर तृणमूल कांग्रेस ने अपनी वेबसाइट पर चंदा जुटाने के लिए नया चैनल जारी किया है- डोनेट फंड टू द पार्टी टु बिल्ड अ ब्राइट फ्यूचर फॉर ऑल। इस दफा 20 हजार रुपए से ज्यादा दान करने वालों को अपना पैन कार्ड नंबर पार्टी को बताना होगा। इस बार तृणमूल कांग्रेस इस बात की पूरी सतर्कता बरत रही है कि 2011 की तरह का कोई विवाद न खड़ा हो जाए।
तब पार्टी को मिली फंडिंग की सीबीआई जांच चल रही है। तब त्रिनेत्र कंसलटेंसी नाम की कंपनी से करोड़ों का चंदा मिला दिखाया गया था। उस कंपनी का प्रॉफिट ही लगभग 13 सौ रुपए था। उसी चंदे का सूत्र पकड़कर सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ 20 करोड़ रुपए हवाला के जरिए मंगाने का मामला दर्ज किया था।
इस बार भी माकपा विवाद खड़ा करने की ताक में है। माकपा की केंद्रीय कमेटी के नेता गौतम देव कहते हैं, तृणमूल कांग्रेस को अपनी वेबसाइट पर यह दानदाताओं की सूची भी छापनी चाहिए। उनका दावा है कि तृणमूल कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के 28 लाख रुपए दे ही रही है। साथ ही, इस बार सामान खरीदने के कूपन भी दिए गए हैं। एक-एक उम्मीदवार को 15-15 लाख रुपए के कूपन। जवाब में तृणमूल कांग्रेस के पार्थ चटर्जी वाममोर्चा और कांग्रेस के द्वारा चुनाव घोषणा से पहले दीवाल लिखने और जनसभाएं करने में किए गए खर्च को लेकर सवाल उठाते हैं। उनका दावा है कि मध्य कोलकाता के कई बड़े हवाला डीलर इन पार्टियों के लिए फंडिंग का इंतजाम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी किसी गठबंधन में नहीं है। अपने अंदाज में अकेले लडऩे की तैयारी में है।
विपक्ष और सत्ताधारी नेताओं के द्वारा उछाले जा रहे आरोप-प्रत्यारोपों में सचाई चाहे हो या न हो, यह दिख ही रहा है कि बंगाल में इस बार मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई धन की चिन्ता नहीं करने जा रहा। धन जुटाने और उन्हें खर्च करने के रास्ते ढूंढे जा चुके हैं।